आलू की कीमतों में उछाल के साथ उत्तर प्रदेश में किसानों के सामने बुआई के सीजन में बीज का संकट खड़ा हो गया है। जहां खुले बाजार में आलू का बीज 60 रुपये किलो तक मिल रहा है, वहीं सरकारी कोल्डस्टोरों में इसका दाम 32 रुपये किलो चल रहा है। आलू बीजों की बड़ी कीमतों के चलते इस साल फसल का रकबा घटने का अंदेशा जताया जा रहा है।
बुआई सीजन में सबसे ज्यादा मांग चिप्सोना, कुफरी लालिमा, चंद्र्रमुखी और कुफरी बादशाह प्रजाति के आलू बीजों की है जो 55 से 60 रुपये किलो की कीमतों में मिल रहे हैं। किसानों का कहना है कि बीते साल उन्होंने 10-12 रुपये किलो बीज खरीद कर बुआई की थी जबकि इस बार लागत कई गुना बढ़ गई है। सरकारी कोल्डस्टोर में जरूर सामान्य प्रजाति के आलू के बीज की कीमत 32 रुपये किलो रखी गई है पर इसका बहुत कम फायदा किसानों को पहुंच रहा है। खुले बाजार तक में सामान्य प्रजाति का आलू बीज 40 रुपये किलो मिल रहा है। खुद उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ढुलाई, भाड़े और उपलब्धता के चलते दूर-दराज के किसान सरकारी बीज नहीं खरीद पाते हैं और स्थानीय बाजारों पर निर्भर रहते हैं। आलू किसान मोहित सिंह का कहना है कि सामान्य दशा में देखा गया है कि जिस साल आलू का बीज महंगा होता है उस साल फसल के दाम अच्छे नहीं मिलते हैं। उनके मुताबिक इस साल आलू की पैदावार की लागत खासी ज्यादा हो जाएगी जबकि उस हिसाब से दाम नहीं मिलेंगे। बीते तीन सालों से उत्तर प्रदेश में आलू की बंपर पैदावार हो रही है। पिछले साल ही आलू का उत्पादन उत्तर प्रदेश में 165 लाख टन से ज्यादा रहा था। फसल के बाजार में आने के बाद दाम गिरने के चलते प्रदेश सरकार ने इसकी सरकारी खरीद भी शुरू की थी। प्रदेश सरकार ने खरीद केंद्र खोल कर दो लाख क्विंटल आलू की खरीद सीधे किसानों से की थी जबकि बाहरी प्रदेशों को माल भेजने वाले किसानों को भाड़े में सब्सिडी भी दी गई थी। कृषि वैज्ञानिक डा. एसके सिंह बताते हैं कि एक बीघा आलू की बुआई के लिए कम से कम चार क्विंटल बीज की जरूरत होती है। इसके बाद मजदूरी, खाद व सिंचाई की लागत को जोड़ दें तो पैदावार खासी महंगी हो जाती है। उनका कहना है कि इस बार नयी फसल के बाजार में आने के बाद किसान को क्या कीमत मिलेगी यह कहा नहीं जा सकता है। इन आशंकाओं के चलते इस बार प्रदेश में आलू की खेती का रकबा घटना तय है।
