मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में रद्दी कागज की कीमतों में 30 से 40 फीसदी की बढ़ोतरी होने से न्यूजप्रिंट उत्पादकों में बेचैनी देखी जा रही है।
जानकारों के मुताबिक, न्यूजप्रिंट बनाने में इस्तेमाल होने वाले लगभग सभी कच्चे मालों मसलन लुग्दी, कोयला और बिजली की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन सबसे ज्यादा वृद्धि रद्दी कागज की कीमतों में ही हुई है जिससे न्यूजप्रिंट उत्पादक काफी परेशान हैं।
फिर भी उत्पादक उम्मीद कर रहे हैं कि अगली तिमाही के लिए न्यूजप्रिंट की कीमतें निर्धारित करने से पहले कच्चे माल की कीमतें नरम पड़ जाएंगी। रमा न्यूजप्रिंट और पेपर्स लिमिटेड (आरएनपीएल) के कार्यकारी निदेशक वी.डी. बजाज के अनुसार, पिछली तिमाही में एक टन रद्दी कागज के लिए 7 से 8 हजार चुकाना पड़ता था।
इस तिमाही का हाल यह है कि एक टन रद्दी कागज की कीमत अब तकरीबन 1.5 गुना होकर 11 से 12 हजार रुपये हो चुकी है। बजाज ने बताया कि एक टन न्यूजप्रिंट तैयार करने में लगभग 1.35 टन रद्दी कागज की खपत होती है। इस तरह, न्यूजप्रिंट की लागत केवल रद्दी कागज के महंगे होने से लगभग 5,400 रुपये प्रति टन तक बढ़ चुकी है।
मालूम हो कि आरपीएनएल हरेक साल लगभग 1.8 लाख टन रद्दी कागज का इस्तेमाल करता है। कंपनी के मुताबिक, रद्दी कागज की कुल खपत के आधे का आयात किया जाता है। हालांकि, अखबार के खरीदारों के लिहाज से मौजूदा स्थिति थोड़ी बेहतर है।
अब जहां पुराने अखबारों के बदले इन्हें 5 से 6 रुपये प्रति किलो की बजाय 8 से 9 रुपये प्रति किलो तक मिल जा रहे हैं, वहीं अखबारों की कीमत में अब तक कोई वृद्धि नहीं हुई है। पिछली तिमाही में विदेश से मंगाए जा रहे एक टन रद्दी की कीमत 240 डॉलर थी तो इस तिमाही में इसके लिए 300 डॉलर चुकाए जा रहे हैं। इस तरह, आयातित रद्दी कागज की कीमत में 25 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है।
फिलहाल इसके आयात पर 5 फीसदी का आयात शुल्क अदा करना पड़ रहा है तो तैयार न्यूजप्रिंट पर 3 फीसदी का कर उत्पादकों को चुकाना पड़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये की तुलना में डॉलर के मजबूत होने से भी इसका उत्पादन थोड़ा महंगा हुआ है।
बजाज ने बताया कि इंडियन न्यूजप्रिंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसियशन ने बजट से पहले सरकार से अनुरोध किया था कि रद्दी कागजों के आयात पर लगने वाले शुल्क को 5 फीसदी से घटाकर शून्य फीसदी कर दिया जाए। लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार ने इस अनुरोध को नहीं माना।