अमरनाथ श्राइन बोर्ड से जुड़े भूमि विवाद के लंबा खींचने से कश्मीर के सेब उत्पादक और दिल्ली के थोक कारोबारी दोनों अपने संभावित घाटे को लेकर काफी परेशान हैं।
हालांकि सेब उत्पादक और कारोबारी अब तक नहीं समझ पा रहे हैं कि इससे कितने का नुकसान होगा। पर इतना तो तय है कि इसकी भरपाई के लिए उन्हें अगले साल अच्छी फसल का इंतजार करना पड़ेगा। दूसरी ओर हड़ताल के चलते बबूगोसा के सैकड़ों उत्पादकों को करोड़ों रुपये की चपत लग चुकी है।
कश्मीरी सेब व्यापारी संघ के मुताबिक, कश्मीर घाटी में कर्फ्यू और जम्मू में चल रहे आंदोलन के बावजूद सेब की आवक भले ही जारी हो लेकिन सामान्य दिनों के मुकाबले इसकी आवक 40 फीसदी तक गिर चुकी है। सोमवार को कश्मीर से 90 ट्रक सेब की आवक हुई, जबकि रविवार को यह संख्या 40 थीं।
आंकड़ों के मुताबिक, हालात अच्छे होने पर रोजाना 100-110 ट्रकों की आवक होती है। संघ के अध्यक्ष आर. एस. कृपलानी के मुताबिक, पिछले 15 दिनों से स्थिति ठीक नहीं चल रही है और आवक आधी रह गयी है। इससे निश्चित रूप से उत्पादक और कारोबारियों को नुकसान उठाना पड़ेगा। वे कहते हैं कि जिन सेबों की आवक नहीं हो पायी है, वे सब हालात सामान्य होते ही मंडी में भेज दिए जाएंगे।
ऐसी हालत में काफी मात्रा में सेबों के सड़ने की आशंका पैदा हो जाएगी। साथ ही, उनकी कीमत में भी जोरदार गिरावट होगी। उन्होंने बताया कि कश्मीर में सेबों के उत्पादन के मुकाबले उसे स्टोर करने की क्षमता काफी कम है। उन्होंने जानकारी दी कि दिल्ली के तकरीबन 300 सेब कारोबारी किसी न किसी रूप में उत्पादन में अपना पैसा लगाते हैं। इन सभी को मौजदा संकट से तगड़ा नुकसान होने की पूरी संभावना है।
कारोबारियों का कहना है कि भूमि विवाद खत्म होने की जगह और गरम होते जाने से उन्हें नुकसान तो होगा ही। लेकिन यह नुकसान कितना होगा, यह आंदोलन की अवधि पर निर्भर करेगा। जानकारों के अनुसार, कश्मीर से सेब की आवक दिसंबर तक होती है। पर उत्पादकों और कारोबारियों को असली कमाई सीजन के आरंभ में ही होती है। इस समय आपूर्ति कम होती है जिससे उन्हें अच्छी कीमत मिल जाती है।
दूसरी ओर, बबूगोसा के उत्पादकों को भी भूमि विवाद के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। गौरतलब है कि बबूगोसा का उत्पादन मुख्य रूप से कश्मीर में ही होता है और दिल्ली में सिर्फ कश्मीर से ही इसकी आवक होती है।