भारत के मसाला निर्यातक अमेरिका के शुल्क में रियायतों के बावजूद भविष्य में ऐसे जोखिमों से बचने के लिए रूस और अफ्रीका जैसे नए देशों में बाजार को तलाश रहे हैं।
वर्ल्ड स्पाइस ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएसओ) के चेयरमैन राम कुमार मेनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हालिया स्थिति के मद्देनजर भारत को एक या दो बाजार की जगह अन्य बाजार तक पहुंच बनाना व तलाशना अनिवार्य हो गया है। अभी भारत का बाजार अमेरिका और चीन पर केंद्रित है। लिहाजा भारत को अन्य बाजार जैसे रूस, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया को तलाशना जरूरी हो गया है।’ कुल खेती और उससे संबंधित गतिविधियों के निर्यात में मसाला ही ऐसा खंड है जिसमें अक्टूबर 2025 और अप्रैल से अक्टूबर 2025 तक की दोनों अवधियों में निर्यात मूल्य में गिरावट आई है।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत का अक्टूबर में मसालों का निर्यात करीब 3,210.7 लाख डॉलर था और यह बीते साल की इस अवधि की तुलना में 15.81 प्रतिशत कम था। भारत का मसालों का निर्यात अप्रैल से अक्टूबर 2025 में 24,679.7 लाख डॉलर था और यह बीते साल की अवधि की तुलना में 0.10 प्रतिशत कम था।
डब्ल्यूएसओ गैर लाभकारी संगठन है। इसकी स्थापना मुख्य रूप से मसाला उद्योग को खाद्य सुरक्षा और स्थिरता के मुद्दों से निपटने में सहयोगात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई है। डब्ल्यूएसओ ने हाल ही में आंध्र प्रदेश के गुंटूर में अपना चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन में मुख्य रूप से भारत के निर्यात बाजार के विविधीकरण पर चर्चा की गई थी। रूस उर्वरक, सोया तेल, रक्षा और ऊर्जा के बाद जिंस मसालों में साझेदार बन गया है।
मेनन ने बताया, ‘सोवियत युग में रुपये से कारोबार करने के दौर में भारत के समालों का प्रमुख बाजार रूस था। मुझे याद है कि हम इस क्षेत्र के अलावा पौलैंड, हंगरी और चेकोस्लाविया को 15,000 से 18,000 टन काली मिर्च का निर्यात करते थे। हम इस व्यापारिक मार्ग को फिर से शुरू करने को योजना बना रहे हैं और हमारे बाजार को विविधीकरण की जरूरत है।’
उन्होंने बताया कि दक्षिण पूर्व एशिया मसालों और सीजनिंग के लिए बड़ा बाजार है लेकिन वैश्विक सीजनिंग खंड में भारत की हिस्सेदारी बेहद कम 0.6 अरब डॉलर से 14.2 अरब डॉलर है। मसाला बोर्ड से अभी इन अनछुए क्षेत्रों में निर्यात संवर्धन प्रयासों को बढ़ाने का आग्रह किया जा रहा है। व्यापार के सूत्रों के अनुसार भारत के मसालों का निर्यात बीते 10 वर्षों में जबरदस्त ढंग से बढ़ा है। हमने वित्त वर्ष 25 में सर्वाधिक 40,000 करोड़ रुपये, करीब 4.7 अरब डॉलर का निर्यात किया था। इस उछाल के कारण देश वित्त वर्ष 26 में 5 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात का लक्ष्य निर्धारित कर रहा था लेकिन अमेरिका के बाजार में सुस्त के कारण योजनाओं पर पानी फेर दिया।
भारत के लिए अमेरिका के अलावा चीन दो बड़े बाजार है। इसमें कुल निर्यात में अकेले अमेरिका की हिस्सेदारी 15-16 प्रतिशत है। भारत इन बाजारों में साबुत मसालों और मूल्यवर्धित मसालों (जैसे ओलियोरेसिन और पिसे हुए मसाले) दोनों का निर्यात करता है।
भारत में सालाना लगभग 1.18 करोड़ टन मसालों का उत्पादन होता है और देश में मसाला उत्पाद सालाना लगभग 3-4 प्रतिशत प्रतिशत बढ़ रहा है। भारत से लगभग 18 लाख टन मसालों का निर्यात किया जाता है जबकि भारत से मसालों के निर्यात में बीते 10 वर्षों में लगभग 4-6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
भारत से निर्यात किए जाने वाले प्रमुख मसाले इलायची, काली मिर्च, मिर्च, हल्दी, जीरा और यहां तक कि लहसुन हैं। इनका घरेलू स्तर पर उत्पादन होता है और निर्यात किया जाता है। भारत में मसालों का घरेलू बाजार कहीं बड़ा है। यह अनुमानों के अनुसार एक लाख करोड़ से 1.5 लाख करोड़ रुपये के बीच है।
मेनन ने शुल्कों में हालिया राहत और इसके मसालों के निर्यात के प्रभाव के बारे में कहा कि मसालों के तेल और और ओलियोरेसिन जैसी वस्तुओं को इस छूट का लाभ नहीं मिला है।
मेनन ने कहा, ‘भारत ने वित्त वर्ष 2025 में सालाना 18.5 करोड़ डॉलर मूल्य के तेल व ओलियोरेसिन का निर्यात किया जबकि अमेरिका को मसालों के निर्यात का कुल मूल्य लगभग 71.1 करोड़ डॉलर था। इसका अर्थ है कि तेल और ओलियोरेसिन खंड का अमेरिका को निर्यात में लगभग 26 प्रतिशत का महत्त्वपूर्ण योगदान है।’