कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ने एक ऐसी तकनीक विकसित करने का दावा किया है, जिसकी मदद से पेट्रोलियम उत्पादों की लागत कम की जा सकती है, वहीं कच्चे तेल की किल्लत से भी निपटा जा सकता है।
संस्थान के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के मुताबिक, पेट्रोलियम रिफाइनरी उद्योग वर्तमान में जिस तकनीक पर काम कर रहा है, उसमें तेल शोधन में लागत ज्यादा आती है, वहीं पेट्रोलियम पदार्थों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। ऐसे में विभाग ने एक तकनीक विकसित की है, जिसके तहत प्लास्टिक पॉलिमर, मसलन-पॉलिथिन से पेट्रोल बनाया जा सकता है।
विभाग के मुताबिक, नई तकनीक से पॉलिमर पेट्रोल-डीजल के वैकल्पिक स्रोत बन सकते हैं। इससे रिफाइनरी उद्योग को जहां, कच्चे तेल की किल्लत से निबटने में आसानी होगी, वहीं तेल शोधन की लागत भी कम आने का अनुमान है।
विभाग के प्रोफेसर दीपक कुंजरू ने बताया कि ईंधन के प्राकृतिक स्रोत अगले 3-4 दशक में खत्म हो जाएंगे। ऐसे में वैकल्पिक स्रोतों की तलाश जरूरी हो गई है। उनके मुताबिक अगर नई तकनीक को व्यावसायिक तौर पर अपनाया जाता है, तो तेल की किल्लत से बहुत हद तक निजात मिलने की संभावना है।
संस्थान ने एक और तकनीक विकसित की है, जिसके तहत पेट्रोलियम पदार्थों से निकलने वाले अपशिष्ट (तारकोल) को भी ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। वर्तमान में शोधन प्रक्रिया के तहत निकलने वाले इस अपशिष्ट को नष्ट कर दिया जाता है। प्रोफेसर दीपक के मुताबिक, वर्तमान शोधन प्रक्रिया के तहत कच्चे तेल की तकरीबन 30-40 फीसदी मात्रा तारकोल के रूप में बेकार हो जाता है।
विभाग के एक अन्य प्रोफेसर नितिन कायस्थ ने एक ऐसे उपकरण को बनाने में सफलता पाई है, जिससे पेट्रोल-डीजल की गुणवत्ता और बेहतर हो सकती है। उनके मुताबिक, इन उपकरण को शेवरॉन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी कंपनियों ने व्यावसायिक मानकों पर परखा भी है। संस्थान के निदेशक प्रो. दांडे ने बताया कि इस उपकरण से ईंधन की क्षमता और गुणवत्ता बेहतर बनाई जा सकती है।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए अभी इसमें और काम किए जाने हैं, जो करीब दो साल में पूरा होगा। शेवरॉन के निदेशक जीत सिंह बिंद्रा, जो आईआईटी, कानपुर के पूर्व छात्र रह चुके हैं, उन्होंने संस्थान के रसायन विभाग को रिफाइनिंग तकनीक पर काम करने के लिए करीब 50 लाख रुपये का फंड मुहैया कराई है।