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अगले दौर में 75 खदानों की वाणिज्यिक नीलामी

Last Updated- December 12, 2022 | 8:08 AM IST

वाणिज्यिक खनन के लिए कोयला खदानों की दूसरे दौर की नीलामी और कोयले की बिक्री के तहत 75 खदानें होंगी। पहले दौर में 38 खदानों की पेशकश की गई थी, जिनमें से 19 का सफलतापूर्वक आवंटन किया गया।
75 खदानों में से 70 कोकिंग कोल खदानें हैं, जो ताप बिजली उत्पादन क्षेत्र में इस्तेमाल होता है और 5 गैर कोकिंक खदानें स्टील और धातु क्षेत्र के लिए हैं। इनमें 40 खदानें ऐसी हैं, जिनका पहले ही अन्वेषण हो चुका है और शेष का आंशिक अन्वेषण हुआ है।
सबसे ज्यादा खदानें छत्तीसगढ़ से हैं, जबकि उसके बाद झारखंड और ओडिशा से हैं। पहले दौर में सबसे ज्यादा खदानें मध्य प्रदेश से थीं।
केंद्र सरकार ने 2020 में कोयला खनन क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया था और खदानों का राष्ट्रीय करण किए जाने के 47 साल बाद निजी क्षेत्र को वाणिज्यिक खनन और बिक्री में प्रवेश करने का मौका मिला। सरकार ने कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 में मई महीने में संशोधन किया था, जिससे गैर खनन, एमएसएमई और विदेशी कंपनियों के लिए यह क्षेत्र खुल गया था। दो हिस्से में नीलामी नवंबर में पूरी हुई।  
वाणिज्यिक कोयला खनन में छोटी और मझोली खनन कंपनियों की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए कोयला मंत्रालय नीलामी के दूसरे दौर में सिर्फ छोटी व मझोली कोयला खदानों की पेशकश कर रहा है। पेशकश में शामिल ज्यादातर खदानों का मूल्यांकन किया गया है, जिससे वे पर्यावरण के प्रति संवेदनशीन इलाके में न हों।
कोयला मंत्रालय ने मंगलवार को हिस्सेदारों के साथ चर्चा में कहा कि 40 प्रतिशत ग्रीन कवर वाली ब्लॉक/खदानें इससे बाहर रखी गई हैं। मंत्रालय की प्रस्तुति में कहा गया, ‘छत्तीसगढ़ के गैर अधिसूचित लेमरू हाथी अभयारण्य, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के वन्यजीव प्रवास, किन्नेरसनी ईएसजेड, टाइगर रिजर्व/कॉरिडोर, ज्यादा निर्माण वाले इलाके आदि में आने वाले ब्लॉक/खदानों को इससे बाहर रखा गया है।’ अधिकारियों ने यहभी सूचित किया कि जिन ब्लॉक/खदानों पर याचिका दायर हैं, उन्हें भी नीलामी में शामिल नहीं किया गया है।
पिछले महीने एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा था, ‘खदानों के नजदीक और आसपास वन क्षेत्र चिह्नित करने के लिए हमने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन (एमओईएफसीसी) के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस) का इस्तेमाल किया है। जो खदानें घने वन क्षेत्र में हैं और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में आती हैं, उन्हें छोड़ दिया गया है। अभी हम छोटी खदानों की पेशकश कर रहे हैं, जिनके बड़े भूमि बैंक व वन क्षेत्र नहीं हैं।’
डीएसएस भौगोलिक सूचना व्यवस्था (जीआईएस) आधारित है, जिससे सैटेलाइट के माध्यम से वन क्षेत्र व इकोलॉजी की जानकारी मिलती है। इससे उस क्षेत्र में परियोजना की गतिविधियों की निगरानी करने में भी मदद मिलती है।
वाणिज्यक कोयला नीलामी के पहले दौर में महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ ने कुछ खदानों को लेकर विरोध जताया था, जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में थीं। महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ की एक-एक खदानें पहले दौर की नीलामी की प्रक्रिया से बाहर कर दी गई थीं क्योंकि वे क्रमश: टाइगर रिजर्व और नदी के किनारे थीं। केंद्रीय कोयला मंत्रालय नई खदानों की भी पेशकश करेगा, जे 205 खदानों की मूल सूची में नहीं थीं, जिनका आवंटन उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया था।
अधिकारियों ने कहा कि कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 और खदान एवं खनिज (नियमन एवं विकास) अधिनियम, 1975 के तहत आने वाली खदानों की पेशकश की जाएगी।

First Published - February 17, 2021 | 11:11 PM IST

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