सरसों किसान को इस साल उम्मीद के मुताबिक कीमत मिलने की फिलहाल कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है।
खाद्य तेल में गिरावट और सरसों की बंपर फसल के कारण सरसों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी नीचे जाने की आशंका है। ऐसे में किसानों को राहत देने के लिए सरकार को सरसों की अधिकतम खरीदारी करनी पड़ सकती है।
मंडियों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक सरसों की कीमतें आवक के आरंभ में 2300-2400 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास थी। लेकिन दो चार दिनों में ही यह कीमतें धराशायी हो गयी और यह 1900 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ चुकी है। राजस्थान की कई मंडियों में तो यह कीमत 1800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गयी है जो कि एमएसपी से 30 रुपये प्रति क्विंटल कम है।
हालांकि कुछ तेल कारोबारी इस बात की भी आशंका जाहिर कर रहे हैं कि कीमत में छायी मंदी को देखते हुए सरसों किसान भी सोयाबीन किसान की तरह आवक में कमी कर सकते हैं। सोयाबीन की कीमत 1800 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच जाने के बाद मध्य प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन की आवक पिछले साल के मुकाबले 25 से अधिक कम हो गयी थी।
फिलहाल सोयाबीन की कीमत 2300-2350 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है। किसानों के मुताबिक इस साल 70 लाख टन से अधिक सरसों के उत्पादन का अनुमान है जो पिछले साल के मुकाबले 5 लाख टन से अधिक है। आरंभ में यह माना जा रहा था कि सरकार के पास सरसों का स्टॉक नहीं बचा है लिहाजा किसानों को सरसों की अच्छी कीमत मिलेगी।
खाद्य तेलों में लगातार गिरावट और तेलों के आयात में बढ़ोतरी के कारण सरसों के भाव में उठाव की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। बीते दिनों सरसों किसान ने खुद को बदहाली से बचाने के लिए सरकार से क्रूड पाम ऑयल (सीपीओ) के आयात पर 20 फीसदी का शुल्क लगाने की मांग भी की।
फिलहाल सीपीओ के आयात पर कोई शुल्क नहीं है और कांडला पोर्ट पर इसकी कीमत 28-30 रुपये प्रति किलोग्राम है। चुनाव की तारीख का ऐलान हो जाने के कारण सरकार अब मई तक आयात शुल्क लगाने का फैसला भी नहीं ले सकती है। ऐसे में किसानों को इस बात का भय सता रहा है कि सरसों की कीमत 1600 रुपये प्रति क्विंटल से भी कम हो सकती है।
इस साल मौसम में छायी गर्मी के कारण सरसों की आवक समय से 15 दिन पहले शुरू हो गयी। सरसों का उत्पादन मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात व हरियाणा में होता है।