वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज बजट सेशन के अंतिम दिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र (White Paper on the Indian Economy) को लोकसभा में पेश किया। 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करते हुए उन्होंने मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से होने वाले असर को गिनाया था और कहा था कि वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के 10 सालों के कार्यकाल (2004-14) में हुए ‘आर्थिक कुप्रबंधन’ (economic mismanagement ) पर ‘श्वेत पत्र’ जारी करेंगी।
वित्त मंत्री ने आज सदन में श्वेत पत्र रखते पेश करते हुए कहा, ‘मैं भारतीय अर्थव्यवस्था पर ‘श्वेत पत्र’ हिंदी और अंग्रेजी वर्जन में पेश करती हूं।’ वित्त मंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने पहले श्वेतपत्र इसलिए नहीं पेश किया क्योंकि उस समय देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही थी। अगर उस समय पेश कर देती तो देश में नकारात्मक स्थिति बन जाती और निवेशकों का भरोसा डगमगा जाता।
उन्होंने श्वेत पत्र पेश करते हुए कहा कि UPA सरकार के दौरान, विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेक्स रिजर्व) जुलाई 2011 में लगभग 294 अरब अमेरिकी डॉलर से घटकर अगस्त 2013 में लगभग 256 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया था।
महंगाई दर पर बोलते हुए वित्त मंत्री ने मनमोहन सरकार को घेरा और कहा कि 2009 से 2014 के बीच महंगाई चरम पर रही और इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ा। इस दौरान सीतारमण ने कहा कि ‘आर्थिक कुप्रबंधन (इकनॉमिक मिसमैनेजमेंट) ने विकास की संभावनाओं में रुकावट पैदा कर दी और भारत एक कमजोर अर्थव्यवस्था बन गया। UPA सरकार में बार-बार नेतृत्व का संकट था।
सीतारमण ने कहा कि ‘आर्थिक कुप्रबंधन ने विकास की संभावनाओं में रुकावट पैदा कर दी और भारत एक कमजोर अर्थव्यवस्था बन गया। UPA सरकार में बार-बार नेतृत्व का संकट था।
लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा रखे गए ‘भारतीय अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र’ में कहा गया कि UPA सरकार को अधिक सुधारों के लिए तैयार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था विरासत में मिली, लेकिन अपने दस सालों में इसे भी बिगाड़ दिया। 2004 में, जब UPA सरकार ने अपना कार्यकाल शुरू किया था, तो ग्लोबल लेवल पर भी आर्थिक माहौल बेहतर था और उसके बीच भारत की अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की दर से बढ़ रही थी।
उन्होंने कहा, ‘उद्योग और सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर 7 फीसदी से ज्यादा थी और वित्त वर्ष 2004 में कृषि क्षेत्र (agriculture sector) की वृद्धि दर 9 फीसदी से ज्यादा थी।’
इसका नतीजा यह हुआ कि देश में बुरे लोन (bad loans) काफी बढ़ गए। UPA सरकार को घेरते हुए सीतारमण ने कहा कि बहुत कुछ छिपाने के बाद भी भारत की उच्च राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit), उच्च चालू बचत घाटा (high current account deficit) और दोहरे अंकों में महंगाई दर का असर सामने आया और इसका असर भारत के लोगों की जेब पर देखने को मिला। उन्होंने कहा कि UPA सरकार के दौरान तमाम घोटाले हुए थे जिनसे सरकारी खजाने को बड़ी राजस्व क्षति हुई। इसके साथ ही राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा बढ़ गया।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के पहले तक यानी 2013 में भारत की अर्थव्यवस्था को फैजाइल फाइव क्लब में रखा जाता था।
इन्वेस्टमेंट बैंक मॉर्गन स्टैनली (Morgan Stanley) द्वारा भारत को इस क्लब में रखा गया था। भारत के साथ फ्रैगाइल फाइव में तुर्किये, ब्राजील, साउथ अफ्रीका और इंडोनेशिया भी शामिल थे। कथित तौर पर ऐसा माना जाता है कि भारत अपने ग्रोथ को पूरा करने के लिए विदेशी निवेश पर बहुत ज्यादा निर्भर था, जिसके कारण यह शब्द इसके लिए यूज किया गया।
वित्त मंत्री ने श्वेत पत्र में कहा कि 2014 के बाद से मोदी सरकार ने टेलीकॉम मार्केट की स्थिति को सुधारने और क्षेत्र में नियमों में स्पष्टता की कमी के कारण सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसने स्पेक्ट्रम नीलामी, व्यापार और साझाकरण के पारदर्शी तरीके लाए जिससे स्पेक्ट्रम का ज्यादा से ज्यादा उपयोद संभव हो सका।
वित्त मंत्री ने कहा कि उनकी सरकार का विजन देश को प्राथमिकता पर रखना है। जिसके लिए Nation First के तहत उनकी सरकार के दृष्टिकोण ने भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम की गुणवत्ता को बदल दिया है, जो देश के लिए निवेश आकर्षित करने और ग्लोबल वैल्यू चेन में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अहम होगा।
वित्त मंत्री ने श्वेत पत्र में कहा कि UPA गठबंधन वाली सरकार जब थी, तो निवेशक देश में व्यापार करने से बच रहे थे। श्वेत पत्र में कहा गया कि UPA गठबंधन सरकार ने ‘न केवल अर्थव्यवस्था में गतिशीलता लाने में विफल रही’ बल्कि उसने ‘अर्थव्यवस्था को इस तरह लूटा’ कि हमारे उद्योगपतियों ने रिकॉर्ड पर कहा कि वे ‘भारत के बजाय विदेश में निवेश करेंगे।’ वित्त मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार के बाद निवेशकों का भरोसा जीतना काफी कठिन काम रहा।