सोमवार को रेल मंत्री लालू प्रसाद ने कांग्रेसी मंत्रियों के साथ एक निजी बातचीत में कहा था, ”ये एनडीए के लोग मुझे अपनी बात कहने का मौका ही नहीं देते, तो ऐसे में उनके राज्यों के लिए ट्रेनें उपलब्ध कराने का क्या मतलब बनता है।” कुछ इसी तरह की भावनाओं की झलक उस समय देखने को मिली जब लालू प्रसाद ने मंगलवार को नई रेल लाइनों की घोषणा की। इस बजट को देखकर साफ लग रहा है कि यह पूरी तरह से राजनीतिक बजट है। बजट भाषण पेश करने के दौरान भी एनडीए के सदस्यों ने कई बार व्यवधान उत्पन्न किया।
बजट भाषण के दौरान एनडीए की ओर से रुकावट पैदा करना तो एक ऐसी घटना है जिसके बारे में पहले से ही अनुमान लगाया जा सकता था, पर एक अप्रत्याशित घटना जो इस दौरान देखने को मिली वामपंथी पार्टियों का नाराज होकर बजट भाषण का बहिष्कार करना। वामपंथी पार्टी के सदस्य पश्चिम बंगाल के साथ भेदभाव का आरोप लगा रहे थे। हालांकि, केरल राज्य के मार्क्सवादी सदस्यों ने अपने अगुआइयों का साथ देने से इनकार कर दिया और भाषण के दौरान उन्होंने रेल मंत्री का साथ दिया।
इस बार रेल मंत्री ने बंगाल को खुश करने के लिए कोई खास कदम उठाना जरूरी नहीं समझा। इससे बेहतर उन्हें केरल के मुख्यमंत्री को रिझाना लगा और उन्होंने राज्य में एक नई रेल कोच फैक्टरी लगाने की घोषणा कर दी। इससे वाम मोर्चे में स्पष्ट दरार देखने को मिली। कांग्रेस वाम गठबंधन में दरार लाने की जिस कोशिश में पिछले चार साल से लगी हुई थी, उसे रेल मंत्री ने एक झटके में ही पूरा कर दिया।
वर्ष 2008-09 के रेल बजट से एक बात जो स्पष्ट हो गई वह यह है कि आगामी लोकसभा के चुनाव को देखते हुए लालू प्रसाद ने यह साफ संकेत दे दिए हैं कि उन्हें वाम दलों की तुलना में कांग्रेस की आवश्यकता अधिक है। भले ही उनके इस बजट से वाम मोर्चे के भौंहे तन गए हों पर बंगाल के दो कांग्रेसी मंत्रियों के चेहरे पर खुशी साफ देखी जा सकती थी। रेल मंत्री ने विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी के जिला हावड़ा के लिए दिल्ली से एक साप्ताहिक एक्सप्रेस ट्रेन की घोषणा की है।
लालू प्रसाद के दो घंटे लंबे बजट भाषण को राजनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। उन्होंने अपने भाषण को पेश करते हुए कविता पढ़ी जिसे उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया था। इसमें उन्होंने कहा, ”इससे पता चलता है कि मैंने काफी काम किया है।” उन्होंने पूर्व रेल मंत्री नीतीश कुमार की खिंचाई का मौका भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा, ”यूपीए शासनकाल के पहले रेलवे की क्या हालत थी यह सब जानते हैं।” उन्होंने कहा कि रेलवे इस दौरान गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा था। भारत सरकार को दिए जाने वाले लाभांश को लेकर भी उस दौरन काफी खामियां रहीं थीं। आज जब स्थितियां पटरी पर आ चुकी हैं तो यही लोग हैं जो सारा श्रेय अपनी झोली में डालने की कोशिश कर रहे हैं।लालू प्रसाद ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मुस्लिम और पिछड़ी जातियों का भी खास तौर पर इस बजट में ध्यान रखा है। गौरतलब है कि इन तबकों से रेल मंत्री को सबसे अधिक वोट कमाने की उम्मीद रहती है। पंजीकृत कुली और गैंगमैन की भर्तियों के बारे में उन्होंने कहा, ”कुली के तौर पर काम करने वाले अधिकांश लोग अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग होते हैं जो बाहर से आते हैं।” उन्होंने रेलवे बोर्ड में अल्पसंख्यक कल्याण सेल के गठन की घोषणा की। रेलवे की हर समिति और नियुक्ति बोर्ड में कम से कम एक सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय का होना अनिवार्य कर दिया गया है।
रेल मंत्री ने सोनिया गांधी को खुश करने के लिए खास तौर पर ‘मां-बच्चा स्वास्थ्य एकसप्रेस’ चलाने की घोषणा की जिसे राजीव गांधी फाउंडेशन के सहयोग से शुरु किया जाएगा। कुल मिलाकर देखें तो उम्मीद के अनुरूप ही रेल मंत्री ने आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक लोकलुभावन बजट पेश किया है।
