Union Budget 2024: आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने रुचिका चित्रवंशी और असित रंजन मिश्र के साथ बातचीत में बजट की बारीकियों के बारे में जानकारी दी। संपादित अंश…
भारतीय रिजर्व बैंक के अतिरिक्त लाभांश से आपको जीडीपी के 0.4 फीसदी के बराबर की गुंजाइश मिल गई, जिसे व्यय व राजकोषीय घाटा कम करने में बराबर-बराबर बांट दिया गया। क्या यह सोची-समझी रणनीति है?
हम राजकोषीय विवेक की दिशा में बढ़ रहे हैं। साथ ही प्राथमिकता वाले व्यय के लिए भी पर्याप्त धन की व्यवस्था कर रहे हैं। हमने करीब 50,000 से 60,000 करोड़ रुपये आवश्यक व्यय पूरा कर लिया है। वहीं अन्य 50,000-60,000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल महंगे ऋण चुकाने व राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए किया जाएगा। हमें 2025-26 तक राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 फीसदी से नीचे लाना है। हम इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
कोई निश्चित आंकड़ा देने की जगह इस दृष्टिकोण में ध्यान रखा गया है कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और आगे और तेज वृद्धि की क्षमता वाली अर्थव्यवस्था में अधिक ऋण की जरूरत होगी। साथ ही वह सतत ऋण प्रोफाइल के साथ ज्यादा ऋण को समाहित कर सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए हमें विश्वास है कि आने वाले वर्षों में वृद्धि की मौजूदा दर टिकाऊ बनी रहेगी।
भारत की अर्थव्यवस्था में ज्यादा सार्वजनिक निवेश की जरूरत होगी और इस दौरान अगर हम टिकाऊ ऋण प्रोफाइल की ओर बढ़ रहे हैं तो यह बेहतर काम करेगा। यह कहना कि राजकोषीय घाटा जीडीपी के इतने फीसदी रहेगा, यह सिर्फ प्रवाह का मसला है। हमें राजकोषीय नीति में जीडीपी की तुलना में भी ऋण भंडार को देखना है। हम इसे हर साल नीचे ला रहे हैं। ऐसे में हम ज्यादा से ज्यादा निरंतरता के साथ टिकाऊपन की मजबूत स्थिति में पहुंच रहे हैं। वहीं साथ ही आपात स्थिति के लिए कुछ सुरक्षा संबंधी उपाय भी किए गए हैं। ऐसे में अब हर साल जो भी मजबूती आएगी, वह उस साल की परिस्थितियों पर निर्भर होगा।
यह फैसला अगले साल लिया जाना है। वित्त मंत्री ने 2 साल पहले ही वैकल्पिक तरीके को लेकर प्रतिबद्धता जताई है। हमें लगता है कि यह हमारी जरूरत और तेज वृद्धि की क्षमता को देखते हुए राजकोषीय मजबूती के लिए बेहतर तरीका है।
एक कंपनी जो भारत में विकसित होकर एक वैश्विक कंपनी बन गई, वह कई अन्य देशों में निवेश करने के लिए पर्याप्त बड़ी है और फिर भारत में भी निवेश करना चाहती है, तो ऐसी स्थिति में उस प्रक्रिया को कैसे सुगम बना सकते हैं? ऐसी स्थिति में यह रास्ता बहुत सरल नहीं होगा है।
दूसरा मसला एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) का है, जिसकी सीमा 10 फीसदी है। अगर कोई उस सीमा पर पहुंच जाता है तो सेबी के दिशानिर्देशों के मुताबिक उसे यह निवेश कम करना होगा। अगर कोई निवेशक शेयर बाजार के माध्यम से हिस्सेदारी रखता है और वह इसे एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) में तब्दील करना चाहता है तो क्या होगा। इस तरीके को मना नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसे एफडीआई मंजूरी की प्रक्रिया से गुजरना होगा। फिलहाल हमने यह रास्ता नहीं खोला है। हमने दो अलग-अलग खंड बनाए हैं। सुरक्षा के उपाय लागू किए जाने चाहिए।
बचत वह होती है, जिसे खर्च नहीं किया जाता। वह धन बैंक में जमा किया जाए या कर्ज या इक्विटी के रूप में किसी को दिया जाए, दोनों ही निवेश के वित्तीय तरीके हैं। क्या राजकोषीय नीति ऐसी बनाई जानी चाहिए, जिससे कि लोग खास संपत्ति श्रेणी में जाएं? इसे लेकर विचार है कि ऐसा नहीं होना चाहिए।
यह चयन निवेशक द्वारा किया जाना चाहिए, जिसने बचत की है। इसे लेकर कोई राजकोषीय प्रोत्साहन या हतोत्साहन नहीं होना चाहिए। ऐसे में ऋण व इक्विटी को लेकर राजकोषीय रुख तटस्थता का होना चाहिए। व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि वृहद आर्थिक हिसाब से सोना सबसे ज्यादा अनुत्पादक निवेश है। इसमें कोई रिटर्न नहीं है। इसमें रिटर्न केवल व्यक्ति को ही मिलता है। राजकोषीय रुख यह है कि उसमें सभी परिसंपत्ति वर्ग के साथ समान व्यवहार किया जाए।
व्यापक तौर पर देखा जाए तो पिछले 3 साल से पूंजीगत व्यय में वृद्धि करीब 30 से 35 फीसदी रही है और हम अब जीडीपी के 3.4 फीसदी पर पहुंच गए हैं। अभी 8 महीने बचे हैं और हमें पूरा भरोसा है कि अंतिम आंकड़े बजट के अनुरूप ही होंगे।
बजट में 1,000 करोड़ रुपये के आरऐंडडीफंड और राज्यों को ब्याज मुक्त ऋण देने के बारे में घोषणा की गई है। दोनों मामलों में नियम-शर्तों को सार्वजनिक कब किया जाएगा?
जहां तक 1.5 लाख करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त दीर्घावधि ऋण का सवाल है, हम करीब एक महीने के भीतर अगस्त के पहले सप्ताह तक दिशानिर्देश आने की उम्मीद कर सकते हैं। आरऐंडडी फंड जटिल कवायद है। सरकार के भीतर और बाहरी सभी पक्षों के साथ इस पर चर्चा हुई है। यह चर्चा काफी आगे तक हो चुकी है, फिर भी इसमें कुछ महीने लग सकते हैं।
हमारा आकलन है कि भारत की अर्थव्यवस्था की ताकत रेटिंग की तुलना में कहीं ज्यादा है, जो अब तक की जाती रही है। हमारी कवायद यह रही है कि उन्हें अर्थव्यवस्था की मजबूती के बारे में समझाया जा सके। पिछले डेढ़ साल में परिदृश्य बदलकर सकारात्मक की ओर बढ़ा है। हम उम्मीद करते हैं कि आने वाली तिमाहियों और आने वाले वर्षों में रेटिंग में बदलाव होगा। फैसला लेना उनका काम है, उन्हें समझाना हमारा काम है।