इस साल रेल मंत्री ने रेलवे बजट की एक स्वस्थ तस्वीर पेश की है। उन्होंने इस बजट में जहां एक ओर उम्मीद से ज्यादा बचत की बात की वहीं दूसरी ओर बेहतर परिचालन अनुपात को भी सामने रखा। साथ ही उन्होंने इस बजट में ज्यादा माल ढुलाई की भी परियोजना को प्रस्तुत किया। ठीक इसी समय उन्होंने रेल यात्रियों के किराये में कटौती व नरमी लाने को भी कहा है। इसके अलावा, वह इस रेल बजट में कुलियों के लिए भी खुशियों की सौगात लाए हैं। रेल मंत्री ने अपने बजट में कुलियों की ग्रुप-डी कर्मचारी के रुप में नियुक्ति की बात कही है।
हालांकि इस साल के लोकलुभावन बजट के बावजूद इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि रेलवे में आम कामकाज पर खर्च होने वाली रकम 42,000 करोड़ से बढ़ कर लगभग 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। इस बात की भी पूरी संभावना है कि छठे वेतन आयोग के आ जाने के बाद अतिरिक्त सात से आठ करोड़ रुपये का खर्च बढ़ जाएगा। यहां तक परिचालन अनुपात 76 फीसदी से बढ़कर 81 फीसदी हो गया है। यह भारी बढ़ोतरी है और इससे रेलवे की ढुलाई क्षमता पर काफी सवाल खड़े होते हैं। इसके अलावा बुनियादी ढांचे में कारगर निवेश पर भी सवालिया निशान लगते हैं।
आइये, यात्रियों को दी गई रियायतों पर फिर से बात करें। रेल मंत्री को यह स्पष्ट बताना चाहिए था कि इन रियायतों का क्या मतलब है। उदाहरण के लिए कोच सेवाओं पर कितना घाटा हो रहा है और रेलवे का समूचा वित्त क्या है? यूं कहिए की घाटा 6700-7000 करोड़ रुपये के करीब होगा और बजट अनुमान बढ़ गया है तो वैसे में क्रास सब्सिडी शुरू हो जाएंगे।
तो फिर इन सब रियायतों का बोझ उठाने की रेलवे की कितनी क्षमता है और बुनियादी ढांचे पर वह जो खर्च करेगा, उसका कितना असर होगा। उदाहरण के लिए जर्जर मौजूदा पटरियों पर डिब्बों का अधिकतम इस्तेमाल हो रहा है। अब इसमें और सुधार तभी हो पाएगा, जब पटरियों पर और पैसा झोंका जाए। उम्मीद की जानी चाहिए कि पूर्व और पश्चिम के बीच का माल गलियारा जल्दी ही लाभ देने लगेगा। लेकिन इसके लिए 50 हजार करोड़ रुपये निवेश की दरकार है। बजट में यह नहीं बताया गया है कि पैसा आएगा कहां से। रेलवे में पेंशन की मदमय खर्चा लगातार बढ़ रहा है और यह बढ़ता जाएगा। इस बारे में क्या किसी ने कुछ सोचा है।
दो साल पहले इन्हीं रेल मंत्री अपने भाषण में रेलवे की लेखा परिपाटी को आधुनिक बनाने की बात की थी। पर अभी तक इस दिशा में कुछ नहीं किया गया है। रेलवे में जिस बात से सबसे बड़ा फर्क आएगा, वह है गैर-इंजीनियरिंग का आधुनिकीकरण। बहरहाल, फिर भी सब कुछ ठीक-ठाक। चुनावी साल का रेल बजट मुबारक।
