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लेखक : टी टी राम मोहन

अंतरराष्ट्रीय, आज का अखबार, लेख

ट्रंप का नया कार्यकाल और बजट निर्माण

आर्थिक नीति बनाते समय अनिश्चितता को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब अनिश्चितता बहुत अधिक होती है। हाल के वर्षों में कोविड-19 महामारी सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आई। यह कहना मुश्किल था कि यह कब तक बनी रहेगी। इस पर नीतिगत प्रतिक्रिया एकदम स्पष्ट थी – राजकोषीय […]

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डॉनल्ड ट्रंप लिखेंगे 2025 की इबारत

हाल फिलहाल के अतीत में तो याद नहीं आता कि नए साल की देहरी पर खड़ी दुनिया का भाग्य किसी एक व्यक्ति पर इतना निर्भर रहा हो, जितना आज है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसा लगा है मानो तमाम देशों के प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक फैसले अगली जनवरी तक के लिए रोक दिए गए हैं, […]

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आखिरकार कामयाब हुए केंद्रीय बैंक…

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के ताजा आर्थिक पूर्वानुमान के अनुसार वर्ष 2024 और 2025 में विश्व अर्थव्यवस्था 3.2 फीसदी की गति से विकसित होगी। यह 3.6 फीसदी की उस वृद्धि दर से भी कम है जो 2006 से 2015 के बीच देखने को मिली। इसके बावजूद वृद्धि अनुमानों को लेकर राहत देखी जा सकती है। […]

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भारत के लिए दो बड़े जोखिम एवं दो बड़ी चुनौतियां…

भारत अपनी अंदरूनी आर्थिक अस्थिरता से निपटने में सफल रहा है मगर अब बाहरी कारक इसकी आर्थिक तरक्की में खलल डाल सकते हैं। चर्चा कर रहे हैं टी टी राममोहन वित्त मंत्रालय ने विश्वास जताया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2025 में 6.5 से 7.0 प्रतिशत वृद्धि दर हासिल कर लेगी, जिसका अनुमान 2023-24 […]

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उचित है जमा वृद्धि पर रिजर्व बैंक की चिंता, ऋण और जमा के बीच संतुलन बनाना अनिवार्य

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने बैंकों से जमा में वृद्धि की गति बढ़ाने को कहा है। उनके इस आह्वान की आलोचना हुई है और कुछ लोगों ने तो इसका मखौल तक उड़ाया है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि जमा की दिक्कत पूरी तरह काल्पनिक है और ऋण देते समय बैंकों के पास जमा […]

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बैंकिंग क्षेत्र ने जारी रखा है हमें चौंकाना

देश का बैंकिंग क्षेत्र लगातार चौंका रहा है। जून 2024 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) के अनुसार 2023-24 में उसका प्रदर्शन उतना ही सुखद है जितना कि बीते वर्षों में उसमें आया बदलाव। कोविड-19 महामारी के पहले वर्ष में यानी 2020-21 में प्रवेश करते समय इस क्षेत्र का फंसा हुआ कर्ज यानी गैर निष्पादित संपत्तियां […]

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प्रतिस्पर्धी राजनीति और उसके परिणाम

देश में काम कर रहे फंड प्रबंधकों और बाजार विश्लेषकों को ‘बड़े सुधारों’ के बारे में चिंता करना बंद कर देना चाहिए। विस्तार से बता रहे हैं टी टी राम मोहन हाल ही में संपन्न हुए आम चुनावों में केवल एक्जिट पोल और स्वयंभू चुनाव विशेषज्ञों के पूर्वानुमान ही बुरी तरह गलत नहीं साबित हुए, […]

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अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन और फैकल्टी की खामोशी

अमेरिकी विश्वविद्यालयों (US Universities) में विरोध प्रदर्शनों के बीच वहां के अकादमिक जगत के लोग खामोश क्यों हैं? बता रहे हैं टीटी राम मोहन अमेरिकी विश्वविद्यालयों (US Universities) के परिसर पिछले महीने गाजा में छिड़ी लड़ाई के विरोध प्रदर्शन से उबल पड़े। फिलिस्तीन के समर्थन में हो रहे ये प्रदर्शन अभी जारी हैं और अब […]

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नब्बे वर्ष के केंद्रीय बैंक का प्रदर्शन सराहनीय, RBI के बीते चार-पांच साल खासा उल्लेखनीय

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) 90 वर्ष की अवस्था में भी न केवल सुस्थिर बल्कि चपल और फुर्तीला नजर आ रहा है। ऐसे में उसे इस अवसर पर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री से उचित ही सराहना मिली। आर्थिक उदारीकरण की पूरी प्रक्रिया के दौरान उसका प्रदर्शन शानदार रहा है। बीते चार-पांच वर्षों में उसका प्रदर्शन खासा […]

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Opinion: ‘बड़े सुधारों’ के बिना हासिल होती वृद्धि

वर्ष 2020-21 में कोविड के झटके के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। भला किसने सोचा होगा कि कोविड के बाद लगातार तीन सालों तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी सात फीसदी से ऊपर के स्तर पर रहेगा? अब यह भी संभव है कि 2024-25 में हम सात फीसदी से भी […]

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