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गिग अर्थव्यवस्था में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, घर की आर्थिक धुरी बन रहीं महिलाएं

दिल्ली एनसीआर में सर्वेक्षण में शामिल की गई कुल महिलाओं में से 16.3 प्रतिशत ने स्वीकार किया कि वे घर में एकमात्र कमाने वाली हैं।

Last Updated- September 11, 2025 | 8:49 AM IST
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देश में घरेलू निर्भरता पैटर्न में अब बदलाव आ रहा है, जहां महिला गिग कामगारों की संख्या बढ़ रही है। हाल ही में एक सरकारी थिंक-टैंक द्वारा महिला गिग कामगारों पर किए गए शोध से पता चलता है कि लगभग 83 प्रतिशत महिला गिग वर्कर्स ऐसी हैं जो घर में एकमात्र कमाने वाली हैं और विवाहित हैं। यानी घर का खर्च उनकी कमाई से चल रहा है। ऐसा पुरुषों की नौकरी छूटने, प्रवासन या महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट की वजह से हो सकता है।

गिग अर्थव्यवस्था में महिलाओं की स्थिति का पता लगाने के लिए किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि एकमात्र कमाने वाली ये महिलाएं अपने घरों की वित्तीय स्थिरता के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होती जा रही हैं। दिल्ली एनसीआर में सर्वेक्षण में शामिल की गई कुल महिलाओं में से 16.3 प्रतिशत ने स्वीकार किया कि वे घर में एकमात्र कमाने वाली हैं। बदलते सामाजिक मानदंडों और गिग कामों में बढ़ते लचीलेपन के कारण भी ऐसा हो सकता है। गिग अर्थव्यवस्था में अब माहौल ऐसा बनता जा रहा है कि महिलाएं काम और परिवार दोनों की जिम्मेदारी निभाते हुए आम जीवन में संतुलन बनाने में सक्षम हैं।

श्रम मंत्रालय से संबद्ध वीवी गिरी नैशनल लेबर इंस्टीट्यूट के अध्ययन में कहा गया है, ‘एकमात्र कमाने वाले पैटर्न और वैवाहिक स्थिति के बीच बड़ा ही दिलचस्प संबंध देखने को मिलता है। खास बात यह है कि जो एकमात्र कमाने वाली महिलाएं हैं, उनमें से 82.7 प्रतिशत अभी भी विवाहित हैं। इससे घरेलू निर्भरता पैटर्न में बदलाव का पता चलता है। भले ही परिवर्तन धीरे-धीरे हो रहा है, लेकिन यह हो रहा है। यह संभावित रूप से पुरुषों की नौकरी छूटने, पलायन या महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट को दूर करने के लिए भी हो सकता है।’

वीवी गिरी इंस्टीट्यूट की फेलो धन्या एमबी का कहना है कि महिलाएं तेजी से गिग वर्क को आर्थिक स्वतंत्रता के रास्ते के रूप में उपयोग कर रही हैं, जिसमें खासकर पारंपरिक नौकरियों के विकल्प के रूप में काम की कोई बाध्यता नहीं है। लेकिन, डिजिटल साक्षरता, प्रौद्योगिकी तक पहुंच, डिलिवरी से जुड़े काम की सार्वजनिक प्रकृति, अज्ञात स्थानों पर जोखिम और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू इसमें महिलाओं की भागीदारी को जरूर प्रभावित कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘लेकिन महिलाएं मुख्य रूप से परिवार के आर्थिक सहारे के लिए द्वितीयक कमाने वाले की भूमिका निभाती हैं। कम अनुपात में ही महिलाएं खुद को एकमात्र कमाने वाली और घरेलू आय के लिए महत्त्वपूर्ण बताती हैं।’

इस बीच, एकमात्र कमाने वाली महिलाओं में शेष 17 प्रतिशत ऐसी हैं जो विधवा, तलाकशुदा या अलग रहती हैं। यह श्रेणी उन महिलाओं को दर्शाती है, जिनके पास पति या पत्नी का समर्थन नहीं है और उन्हें पूरी आर्थिक जिम्मेदारी स्वयं उठानी पड़ती है।

शोध में यह भी पाया गया है कि एकमात्र कमाने वालों में अविवाहित महिलाओं की संख्या न के बराबर है। यह युवा, अविवाहित महिलाओं का परिवारों पर निरंतर आर्थिक निर्भरता का संकेत हो सकता है। ऐसा समाज में महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता के बारे में सांस्कृतिक बाधाओं के कारण भी हो सकता है।

कमाई के मामले में लगभग 57 प्रतिशत महिला कामगार प्रति माह 20,000 रुपये से अधिक कमाती हैं। इनमें आधे से अधिक महिलाएं 20,000 से 35,000 रुपये के बीच कमा लेती हैं। अध्ययन में कहा गया है, ‘गिग और प्लेटफॉर्म वर्क महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण जरिया बनकर उभरे हैं। अध्ययन में शामिल कुल महिला कामगारों में से 37 प्रतिशत 15,000 से 20,000 रुपये के बीच कमा पाती हैं। लेकिन, केवल 0.3 प्रतिशत को ही 35,000 रुपये से अधिक मेहनताना मिल पाता है।’

First Published - September 11, 2025 | 8:49 AM IST

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