मौजूदा लोक सभा चुनाव में घटते मतदान प्रतिशत ने निवेशकों को चुनाव परिणाम के बारे में आशंकित कर दिया है। कोटक महिंद्रा ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (Kotak Mahindra Asset Management) के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह ने पुनीत वाधवा के साथ जूम कॉल के दौरान शुरुआती कम मतदान प्रतिशत से बाजार में पैदा हुई चिंताओं और इससे संबंधित निवेश रणनीतियों पर विस्तार से बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:
क्या ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा कारगर हो पाएगा? क्या बाजार की चाल प्रभावित होगी?
बाजारों में सरकार और मौजूदा सुधारों की निरंतरता का असर मौजूदा कीमतों में दिखा है। लोकसभा में 400 से ज्यादा या कुछ कम सीटों के साथ भले ही सरकार बनी रहे, लेकिन मेरा मानना है कि जब तक सरकार की निरंतरता बनी रहेगी, इसका बाजार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
बाजार की दीर्घावधि सेहत के लिए, सुधार की रफ्तार बनाए रखना जरूरी है। भारत ने बड़ी प्रगति की है और वह 10वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था से बढ़कर तीसरे पायदान पर आना चाहता है। विश्व अर्थव्यवस्था में महज एक ‘कोच’ से विकसित होने के बाद, भारत अब ‘इंजन’ के रूप में मजबूत हुआ है। हालांकि, वृद्धि की इस राह को बनाए रखने के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता है।
अगर, सुधारों व सरकार की निरंतरता में भरोसा है तो बाजारों में बेचैनी क्यों है?
बाजार ने अक्सर आगामी घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए आशावादी नजरिया प्रदर्शित किया है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दर कटौती टालने के बावजूद बाजार धारणा जल्द ही दर कटौती की उम्मीद से जुड़ी हुई है।
इसके अलावा, पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने से तेल कीमतों के लिए संभावित खतरा पैदा हुआ है, फिर भी बाजार लगातार कम तेल कीमतों में विश्वास बनाए हुए है। इसके अलावा, इसे लेकर भरोसा बना हुआ है कि कॉरपोरेट नतीजे अगली 6 से 8 तिमाहियों के लिए अच्छे रहेंगे।
मौजूदा लोक सभा चुनावों के बीच (सरकार और सुधारों की निरंतरता की उम्मीद के साथ) बाजार सकारात्मक परिदृश्य की उम्मीद कर रहा है। इस उत्साह ने सेंसेक्स को 75,000 के आंकड़े तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित किया। हालांकि ऐसे उत्साह से बाजार में उतार-चढ़ाव को बढ़ावा मिलता है।
बाजारों में अभी भी किन चीजों का असर नहीं दिखा है?
बाजार इस बात से इनकार नहीं कर रहा है कि सुधारों को ऐसे तरीके से लागू किया जा सकता है जो भारत की वृद्धि की स्थिति को ऊंचे एक अंक से दो अंकों में बदल सकता है। बाजार में अभी इस तरह की वृद्धि दर की संभावना नहीं दिखी है। भारत को प्रतिस्पर्धी या खासकर चीन के मुकाबले ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनने की जरूरत होगी।
क्या बाजार में इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं कि राजग की पकड़ ढीली पड़ रही है?
बाज़ार के पास चुनाव पूर्व बयानबाजी और चुनाव के बाद के हालात को परखने की क्षमता है। हालांकि मेरा मानना है कि बाजार प्रदर्शन में मामूली उतार-चढ़ाव को गिरावट या घबराहट का संकेत नहीं माना जाना चाहिए। पिछले साल माइक्रोकैप में 60-70 प्रतिशत की तेजी आई। इस तरह का प्रतिफल आमतौर पर एक साल के बजाय पांच साल की अवधि में देखा जाता है। बाजार में मौजूदा उतार-चढ़ाव के लिए सिर्फ चुनाव संबंधित गतिविधि अनिश्चितता को जिम्मेदार बताना उचित नहीं है।
स्मॉलकैप व मिडकैप पर आपका नजरिया?
लार्जकैप ऊंचे मूल्यांकन पर कारोबार कर रहे हैं। मिडकैप, स्मॉलकैप और माइक्रोकैप का भी मूल्यांकन ऊंचा है। हालांकि अब हालात में बदलाव आ रहा है। माइक्रोकैप का मूल्यांकन अब ज्यादा ऊंचाई पर है। यह मूल्यांकन स्मॉलकैप और स्मॉलकैप के लिए औसत से ऊपर है जबकि लार्जकैप औसत स्तर पर हैं। अगले 12-24 महीनों में, माइक्रो, स्मॉल, मिड और लार्जकैप के बीच प्रतिफल अंतर घटने की संभावना है।
क्या इसका मतलब यह है कि माइक्रो, स्मॉल और मिडकैप के लिए अपनी पसंद को देखते हुए छोटे निवेशक पीछे हट सकते हैं?
अनुभवी निवेशक गुणवत्तायुक्त निवेश को प्राथमिकता देते हैं, जबकि अनुभवहीन निवेशक गति का पीछा करते हैं।