देश में अगले कुछ महीनों में विधानसभाओं से लेकर लोकसभा तक के चुनाव होने हैं। इसे देखते हुए शीर्ष सोशल मीडिया कंपनियां किसी खास मकसद पर केंद्रित चुनाव प्रचार अभियान, फर्जी खातों का असर एवं भारत में भ्रामक सामग्री का प्रसार रोकने के लिए कमर कस रही हैं।
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) आने के बाद तो फर्जी खातों की पहचान कर पाना और मुश्किल हो गया है। इससे गूगल, एक्स और मेटा नियंत्रित फेसबुक जैसी सोशल मीडिया कंपनियों के लिए सामग्री नियंत्रित करने की राह में पेश आने वाली चुनौतियां कई गुना बढ़ गई हैं।
मगर ये कंपनियां भी काट खोजने में जुट गई हैं। वे नई नीतियों, तथ्यों की जांच एवं पुष्टि (फैक्ट चेकिंग) के लिए नई पहल और सूचना के विश्वसनीय स्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उपाय करने में जुट गई हैं।
वीडियो स्ट्रीमिंग कंपनी यूट्यूब ने कहा है कि वह भारत में 2023 की अंतिम तिमाही में समाचारों के लिए नया पेज तैयार करेगी, जिस पर 11 भाषाओं में सामग्री उपलब्ध होगी। इस पृष्ठ पर समाचारों के विविध एवं विश्वसनीय स्रोत उपलब्ध रहेंगे। यूट्यूब ने कहा कि यह व्यवस्था खासकर उन लोगों के लिए की गई है, जो सुर्खियों से इतर किसी खबर का बारीक विश्लेषण करना चाहते हैं।
गूगल में ट्रस्ट ऐंड सेफ्टी उपाध्यक्ष-प्रमुख, एशिया-प्रशांत, सैकत मित्रा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हम पुख्ता एवं भरोसेमंद सामग्री लोगों तक पहुंचाने के लिए काफी मेहनत करते रहते हैं। कोविड महामारी के दौरान आपने देखा होगा कि हमने किस तरह स्वास्थ्य एजेंसियों से मिलने वाली जानकारी लोगों तक सधे तरीके से पहुंचाई थी।’
उन्होंने कहा, “दूसरी अहम बात यह है कि एआई के बढ़ते दौर में वास्तविकता की परिभाषा काफी चुनौतीपूर्ण हो गई है। इसे ध्यान में रखते हुए हम तथ्यों की जांच करने पर विशेष जोर दे रहे हैं।’
गूगल (Google) ने जो नीतियां तय कर रखी हैं उनके अनुसार चुनाव विज्ञापनों के लिए उपयुक्त लेबल या निशान प्रदर्शित करना जरूरी है।
मेटा के अनुसार दुनिया में किसी भी जगह चुनाव पर उसका एकसमान नजरिया रहता है। मेटा ने कहा कि वह चुनावों के दौरान अपने अस्थायी चुनाव केंद्रों की मदद से भ्रामक खबरों, सुरक्षा, मानवाधिकारों और साइबर सुरक्षा के मामलों से प्रभावी तरीके से निपटती है। भारत में कंपनी ने तथ्यों की जांच करने वाली एक बड़ी एवं प्रभावी टीम तैयार कर रखी है।
सांसदों ने जब से भ्रामक खबरों के खिलाफ कड़ रुख अपनाया है तभी से ये सोशल मीडिया कंपनियां हरकत में आई हैं। हाल में ही इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कई डिजिटल प्लेटफॉर्म से पूछा था कि भ्रामक खबरों का प्रसार रोकने के लिए उन्होंने क्या कदम उठाए हैं। मंत्रालय ने 10 दिनों के भीतर उनसे इस संबंध में जवाब मांगा था।
विपक्षी गठबंधन इंडिया ने भी मेटा के मुख्य कार्याधिकारी मार्क जुकरबर्ग और अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने सोशल मीडिया मंचों के दुरुपयोग की आशंका जताई थी।