हमें प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने यह अवसर दिया है कि हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी बहस के सबसे पुराने प्रश्नों में से एक को उठाएं या खंगालें। वह यह कि आजाद भारत के इतिहास का सबसे खतरनाक दशक कौन था?
पिछले दिनों संसद में अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा इतिहास के दो महत्त्वपूर्ण, विवादास्पद और त्रासद मोड़ों की दोबारा याद दिला दी।
पहली घटना मार्च 1966 की है जब भारतीय वायुसेना के विमानों ने आइजोल (जो उस समय एक जिला मुख्यालय था और आज मिजोरम की राजधानी है) पर हवाई हमले किए थे ताकि विद्रोहियों को खदेड़ा जा सके। दूसरी घटना थी ऑपरेशन ब्लू स्टार जिसके कारण स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित सिखों की आध्यात्मिक और लौकिक शक्ति के केंद्र अकाल तख्त का विध्वंस हुआ था।
इसे कठोर राजनीति ही कहेंगे और प्रधानमंत्री को इस बात का पूरा अधिकार है कि वे अपनी सहूलियत से इतिहास के किसी हिस्से को उद्धृत करें या तर्क तैयार करें। यहां तक कि ऐसे तर्क भी जो उन्हें ऐसा उदार दर्शाएं जो उनकी पार्टी पसंद नहीं करती, खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर।
बहरहाल, यह बात हमें भी अवसर देती है कि हम हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा की बहस के सबसे पुराने सवालों में से एक को उठाएं और खंगालें यानी आजादी के बाद से भारत के लिए सबसे खतरनाक दशक कौन सा रहा है? सर्वाधिक खराब दशक की प्रतिस्पर्धा हमेशा सन 1960 और 1980 के दशक के बीच रही है। इनमें से पहले दशक में मिजोरम पर हवाई हमले हुए और दूसरे में ऑपरेशन ब्लू स्टार।
मेरे लिए हमेशा से सबसे संकटग्रस्त दशक 1960 का ही रहा है। हालांकि क्रम को लेकर आपत्ति हो सकती है। सन 1980 के खतरों को कोई कम करके नहीं आंक रहा है। हमारी मौजूदा दो पीढि़यां उस दौर से गुजरी हैं।
पंजाब में जबरदस्त उग्रवाद और बगावत का माहौल था, कश्मीर में आतंक की वापसी हो चुकी थी, दोनों राज्यों में हिंदुओं को मारा जा रहा था, उसी दौर में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ, सेना की सिख टुकड़ियों में बगावत हुई, दिल्ली तथा अन्य स्थानों पर सिखों का जनसंहार हुआ, भोपाल गैस त्रासदी हुई।
ब्रासटैक्स युद्धाभ्यास को लेकर हम पाकिस्तान के साथ जंग के मुहाने पर जा पहुंचे, समदोरोंग चू को लेकर चीन के साथ गतिरोध की स्थिति बन गई जिसे हल करने में एक दशक लगा, श्रीलंका में भारतीय शांति सेना भेजी गई और बोफोर्स प्रकरण के बाद हमारी आंतरिक राजनीति भी अस्थिर बनी रही।
हालांकि सन 1960 के दशक के अत्यधिक कमजोर भारत के लिए हालात कहीं अधिक मुश्किल थे। उस दशक को अत्यधिक कठिनाइयों से भरा दशक माना जा सकता है। उस दशक के मध्य में मिजो विद्रोह का अचानक उभार संभवत: सर्वाधिक बुरे समय पर हुआ था।
जनवरी 1966 में ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था। इंदिरा गांधी ने उसी महीने प्रधानमंत्री पद संभाल लिया। वह अनुभवहीन थीं और तैयार भी नहीं थीं। भारत छह महीने पहले पाकिस्तान के साथ युद्ध से उबरा ही था कि मिजो नैशनल फ्रंट ने संप्रभुता की घोषणा कर दी। 11 जनवरी को शास्त्री का निधन होने के दो महीने के भीतर यानी 6 मार्च को विद्रोहियों ने आइजोल में असम राइफल्स के मुख्यालय पर हमले शुरू कर दिए।
हम उस प्रकरण के बारे में बात करते रहेंगे क्योंकि उसमें न केवल आंतरिक और बाहरी राष्ट्रीय सुरक्षा के सबक छिपे हैं बल्कि यह भी पता चलता है कि हमारे नेताओं ने उससे किस प्रकार निपटने का प्रयास किया। सबसे महत्त्वपूर्ण यह सबक है कि आखिर आंतरिक राजनीति हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा, स्थिरता आदि के लिए कितनी अहम है।
जवाहरलाल नेहरू को अंग्रेजों से विरासत में जो देश, सीमाएं और पड़ोसी मिले थे, वे अस्थिर और अनिर्धारित थे।
पाकिस्तान सन 1947 से ही सैन्य शत्रु था। चीन ने एक दशक के भीतर सामरिक दृष्टि से अहम इलाके पर मंडराना शुरू कर दिया। सन 1950 के दशक के मध्य तक नगा विद्रोह शुरू हो गया। नेहरू ने सेना भेजने में बहुत देर कर दी। दरअसल वे बातचीत से मसला हल करना चाहते थे। ऐसे में सन 1947 से 1952 के बीच संकट बढ़ गया।
सन 1957 तक लड़ाई चलती रही और आदिवासियों को दूरदराज की बसावटों से लाकर सेना की टुकड़ियों के करीब सुरक्षित गांवों में बसाने का सिलसिला शुरू हो गया। सुरक्षित और प्रगतिशील गांव बसाने के नाम पर यही मूल अत्याचार था। उस दौरान खूब अतियां हुईं और मानवाधिकारों का भी जमकर हनन हुआ, हालांकि तत्कालीन सेनाध्यक्ष ने एकदम विपरीत बात कही। उन्होंने कहा कि वे सब हमारे लोग हैं।
चीन के साथ रिश्ते खराब होते गए और दलाई लामा भारत आ गए। ऐसे में चीन नगा विद्रोहियों का संरक्षक बन गया और 21 अक्टूबर,1959 को भारत और चीन की सेना के बीच पहली सशस्त्र झड़प हुई। यह पूर्वी लद्दाख के उसी इलाके में हुआ जहां आज माहौल गर्म है। इसके साथ ही आने वाले दशक की पृष्ठभूमि तैयार हो गई।
सन 1960 में नगा विद्रोहियों और भारतीय सेना के बीच छापामार युद्ध चरम पर था। लड़ाई उस समय चरम पर पहुंच गई जब पूर गांव में विद्रोहियों के अधीन होती जा रही असम राइफल्स की टुकड़ी के लिए आपूर्ति गिराने गए भारतीय वायु सेना के डकोटा विमान को मार गिराया गया। पायलटों ने धान के खेत में क्रैश लैंडिंग की और उन्हें बंदी बना लिया गया।
विमान में पीछे बैठे पांच सैनिकों को छोड़ दिया गया लेकिन वायुसेना के चार अधिकारियों को 21 महीने तक बंदी बनाकर रखा गया। नगा इतना दबदबा रखते थे कि वे द ऑब्जर्वर समाचार पत्र के ब्रिटिश पत्रकार गेविन यंग को भी वहां ले जाने में कामयाब रहे। उन्होंने फ्लाइट लेफ्टिनेंट ए एस सांघा के नेतृत्व वाले विमान चालक दल का साक्षात्कार किया। सांघा फिल्म अभिनेता देव आनंद की पत्नी के भाई थे।
सेना चीन के साथ हिंसक लड़ाई में उलझी हुई थी और खतरा बढ़ता ही जा रहा था। इस बीच नेहरू ने अगले वर्ष दिसंबर में गोवा को आजाद कराने के लिए तीनों सेनाओं का ऑपरेशन शुरू कर दिया। यह संकटपूर्ण दशक में 1961 की घटना है। 1962 में हमें चीन के साथ जंग और शिकस्त का सामना करना पड़ा।
भारत का कमजोर और परास्त देखकर पाकिस्तान ने कश्मीर में दिक्कत शुरू कर दी। 1963 में घाटी में कथित हजरतबल घटना (पवित्र अवशेषों की चोरी) ने उबाल ला दिया। सन 1964 में नेहरू का अचानक निधन हो गया। उनके उत्तराधिकार की कोई योजना नहीं थी।
शास्त्री को प्रधानमंत्री चुना गया और हम भूल नहीं सकते कि महज 19 महीने के शासन में उन्हें तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करा पड़ा। अगले वर्ष 1965 में अप्रैल में कच्छ में विवाद हुआ और उसके बाद कश्मीर में छिड़ी 22 दिन की जंग पंजाब में समाप्त हुई। सन 1966 के आरंभ में शास्त्री का निधन हो गया। उस समय तक नगा विद्रोह अपने चरम पर था। इंदिरा गांधी को कमजोर माना जा रहा था और मिजो विद्रोह शुरू हो चुका था।
उधर पंजाबी सूबे को लेकर छिड़े आंदोलन में भी एक कट्टरपंथी पहलू था। सन 1966 में एक समझौता हुआ और पंजाब को भाषाई आधार पर बांट दिया गया। इससे पहले मास्टर तारा सिंह और संत फतेह सिंह (बाद में दर्शन सिंह फेरुमान) द्वारा कई भूख हड़ताल और विरोध प्रदर्शन करने के बाद। यह वही समय था जब द्रविड़ राजनीति में भी तगड़ा अलगाववादी रुख था। यह बात स्वयं एम करुणानिधि ने मुझे एक साक्षात्कार में बताई थी।
यह सब उस दशक में हो रहा था जब कई अकाल पड़े, फसलें नाकाम हुईं और प्राय: शत्रु माने जाने वाले अमेरिका से पीएल-480 खाद्य मदद लेने की शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। 1967 में भी कोई राहत नहीं मिली। नाथुला में चीन के साथ तगड़ी झड़प हुई और अच्छी बात यह है कि भारतीय सेना उन झड़प में बेहतर साबित हुई। उस वर्ष हुए आम चुनाव में कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ और इंदिरा गांधी और कमजोर हुईं।
अगले वर्ष तक कांग्रेस के भीतर संकट खड़ा हो गया। 1969 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को विभाजित कर दिया। उन्होंने वामपंथी रुख अपनाया और एक मुश्किल दशक को सटीक तरीके से समाप्त किया। पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति के संकट और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में भारत के नेतृत्व में हुई गतिविधियों के कारण उस वर्ष के अंत में एक और जंग छिड़ गई।
इन तमाम संकटों के कारण ही अमेरिकी राजनीति विज्ञानी सेलिग हैरिसन ने अपनी प्रख्यात (कुख्यात?) किताब ‘इंडिया: द मोस्ट डेंजरस डेकेड्स’ लिखी। उन्होंने लिखा था कि भारत इन दबावों को झेल नहीं पाएगा और टूट जाएगा। बाद के 50 वर्षों में हम भारतीयों ने न केवल उन्हें पूरी तरह गलत साबित किया, बल्कि हम और मजबूत होकर उभरे। 1980 जैसे दशकों को भूल जाइए और सन 1966 में मिजोरम के उस बदकिस्मत सप्ताह को भी।