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सियासी हलचल: कर्नाटक में भाजपा की धुरी बने विजयेंद्र येदियुरप्पा

विजयेंद्र येदियुरप्पा 2019 में उस समय चर्चा में आए थे जब येदियुरप्पा चौथी बार मुख्यमंत्री बने थे और कांग्रेस एवं जनता दल (सेक्युलर) के कई विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे।

Last Updated- November 21, 2023 | 10:42 PM IST

बुकानाकेरे येदियुरप्पा विजयेंद्र (48) ने पिछले सप्ताह ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) की कर्नाटक इकाई का अध्यक्ष पद संभाला है। भाजपा के मल्लेश्वरम कार्यालय में आयोजित समारोह में मौजूद एक पूर्व वरिष्ठ मंत्री ने मौके को भांपते हुए कहा, ‘पहले जो कार्यालय कब्रिस्तान की तरह नजर आता था, अब वहां उत्सवी माहौल दिखाई देता है।’

विजयेंद्र के एक अन्य समर्थक ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह समारोह अपने आप में सब कुछ कह रहा है। विजयेंद्र पार्टी के सभी नेताओं को एक मंच पर लाने में कामयाब होंगे।

भाजपा को एकजुट करना पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धलिंगप्पा येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र के समक्ष खड़ी बहुत सारी चुनौततियों में से एक है। नई जिम्मेदारी संभालते ही सबसे पहला संदेश उन्होंने सख्त और मुखर होने का दिया है।

अपनी नियुक्ति के लिए गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का धन्यवाद करते हुए विजयेंद्र ने भाजपा के राष्ट्रीय संगठन सचिव बोम्माराबेट्टू लक्ष्मी जनार्दन संतोष के प्रति भी आभार व्यक्त किया।

कर्नाटक में प्रमुख राजनीतिक पर्यवेक्षक और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की जीवनी लिखने वाले सुगत श्रीनिवासराजू कहते हैं कि संतोष को 2006 में राज्य में संगठन सचिव नियुक्त किया गया था। उन्हें प्रदेश भाजपा में अन्य पिछड़े वर्ग से वैकल्पिक नेतृत्व तैयार करने और येदियुरप्पा का विकल्प तलाशने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

हालांकि स्थानीय स्तर पर उनका प्रभाव बहुत सीमित था। वह मुश्किल से येदियुरप्पा के कड़े आलोचक रहे स्व. अनंत कुमार की जगह ले पाए। संतोष लगातार पार्टी के राष्ट्रीय संगठन सचिव ही नहीं, कर्नाटक भाजपा में शक्ति केंद्र भी बने रहे। केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री शोभा करंदलाजे कभी येदियुरप्पा का दाहिना हाथ समझी जाती थीं।

विशेषकर उस समय जब येदियुरप्पा ने केंद्रीय नेतृत्व से गहरे मतभेदों के चलते 2012 में भाजपा से अलग होकर कर्नाटक जनता पक्ष का गठन किया। करंदलाजे भी उनके साथ चली गईं और जब 2014 में येदियुरप्पा भाजपा में लौटे तो वह भी साथ-साथ आ गईं।

वोकालिंगा समुदाय से ताल्लुक रखने वाली करंदलाजे उडुपी चिकमंगलूरु सीट से सांसद हैं। करंदलाजे कभी स्वयं को भाजपा में येदियुरप्पा की राजनीतिक पूंजी की उत्तराधिकारी समझती थीं, परंतु अब लगता है कि कहीं वह दिल्ली की राजनीति में सिमट कर न रह जाएं।

श्रीनिवास राजू कहते हैं कि कभी येदियुरप्पा के कड़े विरोधियों में गिने जाने वाले केएस ईश्वरप्पा और पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं दलित नेता गोविंद मकतप्पा जैसे नेताओं की समारोह में मौजूदगी से यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि विजयेंद्र के नेतृत्व की स्वीकार्यता बढ़ी है, क्योंकि वह युवा होने के साथ-साथ तेजतर्रार भी हैं।

विजयेंद्र येदियुरप्पा 2019 में उस समय चर्चा में आए थे जब येदियुरप्पा चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे और कांग्रेस एवं जनता दल (सेक्युलर) के कई विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे।

विजयेंद्र को उस समय सत्ता के पीछे की ताकत समझा जाता था। जब भाजपा हाईकमान ने येदियुरप्पा को मार्गदर्शक मंडल में शामिल करने का ऐलान किया और उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए कहा, तो वह विजयेंद्र ही थे, जिन्होंने अपने पिता येदियुरप्पा के लिए लिंगायत मठ के जरिये समर्थन जुटाया। इस मठ का कर्नाटक की राजनीति में बहुत अधिक प्रभाव है।

भाजपा हाईकमान इस बात को समझता है कि यदि मठ की उपेक्षा की गई तो यह समुदाय कांग्रेस की तरफ लौट जाएगा। विजयेंद्र की नियुक्ति के पीछे इस कारक ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

विजयेंद्र ने 2019 में उसी समय अपने आप को साबित कर दिया था जब पुराने मैसूर के मांड्या जिले में कृष्णराजा पेटे सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा को जीत दिलाई थी, जहां भाजपा कभी भी जीतने की हालत में नहीं रही थी। इसके बाद कई अन्य उपचुनाव में भी पार्टी को जीत मिली।

राजनीतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि उपचुनावों में जीत येदियुरप्पा की ओर से बेटे विजयेंद्र को तोहफा कही जा सकती है। राज्य में मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और येदियुरप्पा के बीच रणनीतिक राजनीतिक दोस्ती जगजाहिर है। देवेगौड़ा और उनके बेटे को पीछे धकेलने के लिए दोनों नेता पर्दे के पीछे एकजुट हो जाते हैं।

विजयेंद्र की चुनौती

सिद्धरमैया और येदियुरप्पा की यही रणनीतिक दोस्ती अब नई भूमिका में आए विजयेंद्र का काम मुश्किल बना सकती है। भाजपा ने हाल ही में जनता दल (सेक्युलर) के साथ गठबंधन किया है। ऐसे में जनता दल (सेक्युलर) से तालमेल बैठाते हुए सिद्धरमैया से संबंध बनाए रखना उनके लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

कर्नाटक में विपक्ष की भूमिका में भाजपा को कभी दिक्कत नहीं हुई, लेकिन जनता दल (सेक्युलर) से दोस्ती के लिए विजयेंद्र सिद्धरमैया से दूरी बना सकते हैं, लेकिन वह लंबे समय तक ऐसा नहीं कर पाएंगे।

विजयेंद्र ने शिमोगा जिले की शिकारीपुरा सीट से 2023 में विधानसभा चुनाव लड़ा था। यह उनके पिता की परंपरागत सीट है। उन्हें यहां 49 फीसदी मतदाताओं का समर्थन मिला, लेकिन उनकी जीत का अंतर मात्र 11,000 वोट ही रहा। उनके समक्ष इस समय मुद्दों से लेकर उम्मीदवार चयन तक लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार प्रबंधन करना सबसे बड़ी चुनौती है।

उदाहरण के लिए पूर्व रेलमंत्री और मुख्यमंत्री रहे देवरागुंडा वेंकप्पा सदानंद गौडा ने हाल में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान किया। साथ ही उन्होंने जनता दल (सेक्युलर) से गठबंधन करने के लिए खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आलोचना की। इस बार उन्हें उनकी परंपरागत सीट बेंगलूरु उत्तर से टिकट मिलने की संभावना न के बराबर है।

विजयेंद्र को यह तय करना है कि उनकी जगह किसे मैदान में उतारा जाए। बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कर्नाटक की 28 में से 25 सीटें जीती थीं। उन्हें विधानसभा में विपक्ष के नेता को लेकर संतुलन साधना होगा। यद्यपि विधानसभा चुनाव बीते मई में हुए थे और पिछले सप्ताह तक भाजपा विधानसभा में नेता विपक्ष नहीं चुन सकी थी। इससे पार्टी में मतभेद उजागर होते हैं और कांग्रेस ने इस अनिश्चितता का काफी उपहास उड़ाया है।

भाजपा ने विधानसभा चुनाव के चार महीने बाद बीते शुक्रवार को ही वोक्कालिंगा नेता रमैया अशोक को विपक्ष का नेता नियुक्त किया है। भाजपा की जुलाई 2012 से मई 2013 तक चली सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे 59 वर्षीय अशोक सात बार विधायक चुने गए हैं।

विजयेंद्र के समक्ष अपने पिता से विरासत में मिली सकारात्मक और नकारात्मक चुनौतियों के साथ आगामी लोकसभा चुनाव का प्रबंधन करना भी बड़ा काम है।

विजयेंद्र कहते हैं कि वह अपने वरिष्ठों और शुभचिंतकों की सलाह से काम कर रहे हैं और किसी भी कीमत पर उन्हें निराश नहीं होने देंगे। परंतु राजनीति में केवल इतना ही काफी नहीं है।

First Published - November 21, 2023 | 10:14 PM IST

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