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सियासी हलचल: अनिश्चित है शिवराज सिंह चौहान का भविष्य

मोदी कार्यकर्ताओं की एक बैठक के लिए भोपाल आए तो उन्होंने अपने भाषण में एक बार भी शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं लिया।

Last Updated- October 27, 2023 | 11:23 PM IST
Modi's tough attack on opposition, laid foundation stone of various projects in Madhya Pradesh and Chhattisgarh

MP Assembly Elections:  वह जीत की उम्मीद के साथ चुनाव मैदान में हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए जारी उम्मीदवारों की पांचवीं सूची में उन्हें बुधनी से उम्मीदवार बनाया। जब शुरुआती चार सूचियों में उनका नाम नहीं नजर आया तो उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में जनता से पूछा, ‘बताइए चुनाव लड़ूं या नहीं? यहां से लड़ूं या नहीं?’

एक अन्य स्थान पर जनसभा में उन्होंने जनता से पूछा, ‘बताइए मोदी जी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए या नहीं?’ इन सवालों पर जनता के जवाब ने नहीं बल्कि खुद इन सवालों ने कई की भृकुटियां टेढ़ी कर दी हैं। सीहोर में आंसू बहाते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरी बहिनों, ऐसा भैया नहीं मिलेगा। जब मैं चला जाऊंगा तब तुम्हें याद आऊंगा।’

उनकी पीड़ा अन्य घटनाओं से भी सामने आई। यहां दो ऐसे अवसरों का उल्लेख करना उचित होगा। चुनावों की घोषणा के पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्यकर्ताओं की एक बैठक के लिए भोपाल आए तो उन्होंने अपने भाषण में एक बार भी शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं लिया।

उन्होंने लाड़ली बहना योजना (एक तय स्तर से कम आय वाली महिलाओं को प्रति माह 1,250 रुपये देने की घोषणा जिसे बढ़ाकर 3,000 रुपये तक किया जाएगा) जैसी शिवराज सरकार की प्रमुख योजनाओं का भी जिक्र नहीं किया। ये ऐसी योजनाएं हैं जिन्हें मुख्यमंत्री अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि मानते हैं।

एक विरोधाभासी बात यह है कि कुछ दिन पहले ग्वालियर में सिंधिया स्कूल की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने भाजपा में अपेक्षाकृत नए आए ज्योतिरादित्य सिंधिया की तारीफों के पुल बांध दिए। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को याद दिलाया कि सिंधिया गुजरात के दामाद हैं और उनके दिल में खास जगह रखते हैं।

उन्होंने सिंधिया परिवार, खासकर माधवराव सिंधिया की भी तारीफ की जिन्होंने शताब्दी ट्रेन शुरू की थी जिसे वर्तमान में चल रही वंदे भारत ट्रेनों की पूर्वज माना जाता है। शिवराज सिंह चौहान और कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर दोनों विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं और दोनों खड़े यह सब खामोशी से सुनते रहे।

तोमर के प्रभाव वाला इलाका ग्वालियर से लगा हुआ है और अभी कुछ वर्ष पहले तक उनके समर्थक महाराज को निशाने पर लेते रहे हैं। लेकिन अब वह उनके मूल्यवान सहयोगी हैं और प्रधानमंत्री की बात भला कौन काट सकता है?

कई और ऐसे वाकये हैं जो बताते हैं कि केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश सरकार की अनदेखी की है। देश में सोयाबीन के कुल उत्पादन में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 60 फीसदी है। यह खरीफ की एक महत्त्वपूर्ण फसल है। इस वर्ष असमान वर्षा ने उत्पादन पर बुरा असर डाला है और इसकी क्षतिपूर्ति देने की प्रक्रिया बहुत धीमी है।

इसके अलावा केंद्र सरकार ने गत वर्ष अक्टूबर में हर प्रमुख खाद्य तेल के आयात पर शुल्क को घटाकर शून्य कर दिया। सोयाबीन सहित आयातित कच्चे खाद्य तेल पर प्रभावी कर दर केवल 5.5 फीसदी है। यानी तेल मिल और सॉल्वेंट निकालने वालों के पास कई सस्ते विकल्प हैं और उन पर किसानों से सोयाबीन खरीदने का कोई दबाव नहीं है। इस बात ने किसानों को हताश किया है।

ऐसे में अगर शिवराज सिंह चौहान आगे देखने के बजाय मुड़कर पीछे देख रहे हैं यह उनके और उनके समर्थकों के मन में घर कर चुकी नाउम्मीदी के अनुरूप ही है। यह बात पोस्टरों और चुनावी होर्डिंग में देखी जा सकती है। उनमें नरेंद्र मोदी की बड़ी सी तस्वीर है जबकि भाजपा के अन्य नेताओं की छोटी सामूहिक तस्वीर है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री चौहान नेताओं की भीड़ में एक और चेहरा भर हैं। इस सामूहिक तस्वीर में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा, सिंधिया, तोमर तथा कई अन्य नेता हैं। अतीत में ऐसा नहीं होता था।

दिल्ली से संचालित इस रणनीति के पीछे क्या वजह हो सकती है? शिवराज सिंह चौहान चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह पहली बार तब मुख्यमंत्री बने थे जब वह 46 वर्ष के थे। वह राज्य के ग्रामीण इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं लेकिन भोपाल, इंदौर, जबलपुर और उज्जैन जैसे शहरी इलाकों में उनकी उतनी पकड़ नहीं है।

इसकी एक वजह तो सत्ताविरोधी माहौल है। यही वजह है कि न केवल मुख्यमंत्री पद के दावेदार को लेकर कुछ नहीं कहा जा रहा है बल्कि विधानसभा चुनाव में कई केंद्रीय नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा गया है ताकि वर्तमान अलोकप्रिय नेताओं को बदला जा सके। चौहान के नेतृत्व में जो जन आशीर्वाद यात्रा निकला करती थी अब उसमें दूसरे कई नेता शामिल हो रहे हैं और उनका नेतृत्व कर रहे हैं। इनमें प्रह्लाद पटेल, नरेंद्र तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता शामिल हैं।

चौहान ने मतदाताओं के लिए नकद सहायता योजनाओं की बौछार कर दी है। मोटा-मोटी अनुमान लगाया जाए तो एक खास आय और आकार वाला परिवार बिना कुछ किए केवल सरकारी मदद की बदौलत महीने में 15,000 से 20,000 रुपये पा सकता है।

चौहान की सफाई यह है कि एक बार जब लोगों के पास पैसा पहुंचता है तो वह बाजार में जाता है और रोजगार तथा कारोबार तैयार करता है। वह प्रतिपक्षियों के ‘रेवड़ी’ बांटने के आरोप के जवाब में कई बार यह सफाई दे चुके हैं। परंतु लोगों को और भी बहुत कुछ चाहिए।

भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या है, खासतौर पर सरकार के निचले स्तर पर। व्यवस्था सही ढंग से काम नहीं करती है और जब इन कमियों की वजह से लोगों को उनकी पात्रता का लाभ नहीं मिलता है तो वे नाराज होते हैं।

मध्य प्रदेश में भाजपा ने सबसे बढ़िया प्रदर्शन 2003 के चुनाव में किया था जब उसे 230 सदस्यीय विधानसभा में 173 सीट पर जीत मिली थी। भाजपा को 2018 में 109 सीट पर जीत मिली थी और सिंधिया के अपने समर्थकों के साथ पाला बदलने के बाद चौहान एक बार और मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे थे। परंतु इस बार कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है।

First Published - October 27, 2023 | 11:23 PM IST

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