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Opinion: राष्ट्रीय शोध संस्थान एक महत्त्वपूर्ण पहल

भारतीय उद्योग जगत घरेलू आरऐंडडी में जीडीपी का 0.25 प्रतिशत निवेश करता है, जबकि वैश्विक औसत 1.4 प्रतिशत है।

Last Updated- July 28, 2023 | 9:42 PM IST
भारत का शोध एवं विकास पर खर्च चीन, अमेरिका की तुलना में बहुत कम, Economic Survey 2024: India's expenditure on research and development is much less than China, America

राष्ट्रीय शोध संस्थान (एनआरएफ) में उच्च शिक्षा और तकनीकी शोध दोनों में बड़े बदलाव लाने की क्षमता है। बता रहे हैं नौशाद फोर्ब्स

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय शोध संस्थान (एनआरएफ) की स्थापना के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है और अब यह विधेयक के रूप में संसद में प्रस्तुत किया जाएगा। एनआरएफ की घोषणा चार वर्ष पहले हुई थी। हालांकि, इसके काम करने के
तौर-तरीकों पर अब भी चर्चा चल रही है, मगर उत्साह जगाने वाले कुछ बिंदु जरूर हैं, साथ ही कुछ मोर्चों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

क्या करने की आवश्यकता हैः भारत की तुलना दूसरे देशों से करने पर कुछ बातें तो साफ दिख जाती हैं। शोध एवं विकास (आरऐंडडी) पर भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र 0.6 प्रतिशत खर्च करता है, जो बेहद कम है। यह पिछले 40 वर्षों से एक ही स्तर पर है। इसकी तुलना में दक्षिण कोरिया, ताइवान, इजरायल, सिंगापुर और विशेषकर चीन काफी आगे निकल चुके हैं।

भारत सरकार आरऐंडडी पर खर्च करती है जीडीपी का 0.3 प्रतिशत 

भारतीय उद्योग जगत घरेलू आरऐंडडी में जीडीपी का 0.25 प्रतिशत निवेश करता है, जबकि वैश्विक औसत 1.4 प्रतिशत है। भारत सरकार आरऐंडडी पर जीडीपी का 0.3 प्रतिशत खर्च करती है, जो वैश्विक मानकों के दृष्टिकोण से ठीक ही माना जा सकता है।

समस्या यह है कि दुनिया के अन्य देशों से उलट भारत में शोध विश्वविद्यालयों में नहीं होकर स्वायत्त सरकारी संस्थानों में होते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि उच्चतर शिक्षा प्रणाली में भारत शोध के लिए जीडीपी का मात्र 0.4 प्रतिशत हिस्सा आवंटित करता है। इन बातों पर विचार करने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि हमें क्या दुरुस्त करना चाहिए।

आरऐंडडी में निवेश कम से कम पांच गुना बढ़ाने की जरुरत

भारतीय उद्योग जगत को स्थानीय स्तर पर आरऐंडडी में अपना निवेश कम से कम पांच के गुणक जितना बढ़ाना चाहिए (मैं अपने पिछले तीन मासिक स्तंभों में चर्चा कर चुका हूं कि यह कैसे किया जा सकता है)। इसके अलावा उच्च शिक्षा प्रणाली में सार्वजनिक वित्त पोषित शोध में आठ गुना की अनिवार्य बढ़ोतरी होनी चाहिए। एनआरएफ यहां महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

क्या है एनआरएफः एनआरएफ वैज्ञानिक शोध के लिए एक कोष है, मगर तकनीकी शोध के लिए इसकी स्थापना का प्रस्ताव नहीं दिया गया है। केंद्र सरकार की तीन एजेंसियां- रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष- मुख्यतः तकनीकी शोध के लिए हैं। यह विषय इस स्तंभ का का हिस्सा नहीं है।

आरऐंडडी का 20 प्रतिशत हिस्सा वैज्ञानिक शोध में खर्च 

केंद्र सरकार आरऐंडडी पर जितना धन खर्च करती है उसका लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा वैज्ञानिक शोध में जाता है। उच्च शिक्षा प्रणाली के बजाय सार्वजनिक वित्त पोषित शोध स्वायत्त प्रयोगशालाओं में रखकर हम अपार संभावनाओं का लाभ उठाने का मौका गंवा रहे हैं। इन संभावनाओं का लाभ उठाने की दिशा में एनआरएफ एक अच्छी शुरुआत है।

एनआरएफ में कुछ आवश्यक प्रावधान किए गए हैं। इनमें अगले पांच वर्षों के दौरान 50,000 करोड़ रुपये (सालाना 10,000 करोड़ रुपये) उच्चतर प्रयोगशालाओं में शोध कार्यों के लिए दिए जाएंगे। स्वायत्त राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में काम करने वाले वैज्ञानिक उसी शर्त पर इस धन का लाभ उठा पाएंगे जब शोध कार्य एक शिक्षाविद् शोधकर्ताओं के साथ मिलकर होंगे। यह एक आवश्यक शर्त है।

एनआरएफ प्रभावशाली बनाने के लिए इस शर्त को बिल्कुल कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। सार्वजनिक एवं निजी उच्चतर संस्थानों में काम करने वाले शिक्षाविद् दोनों ही इसके योग्य हैं। मगर एक बार फिर यह गंभीर प्रश्न है। अमेरिका में नैशनल साइंस फाउंडेशन और नैशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ की तरफ से मिलने वाली रकम सार्वजनिक या निजी संस्थानों में अंतर नहीं करती है और इससे दुनिया की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ है।

वित्त पोषण के तहत दी जाने वाली सालाना 10,000 करोड़ रुपये रकम उच्च शिक्षा प्रणाली में होने वाले शोध कार्यों को दोगुना कर देगी जिससे इसका हिस्सा जीडीपी का 0.04 प्रतिशत से बढ़कर 0.1 प्रतिशत हो जाएगा। इससे अंतर कम होता है मगर 0.35 प्रतिशत तक पहुंचने के लिए इसे और लंबा सफर तय करना होगा।

अंतर का ध्यान रखना जरूरीः एआरएफ के कुछ प्रावधान समस्याएं खड़ी कर सकते हैं। जब नई शिक्षा नीति एवं वित्त मंत्री के विभिन्न बजट भाषणों में 50,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किए जाने की घोषणा की गई थी तब इस पूरी रकम का इंतजाम सरकार को ही करना था। ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि दुनिया भर में उच्च शिक्षा में बड़े शोध कार्यों के लिए सरकार रकम मुहैया करा रही है।

मेरा पसंदीदा उदाहरण मेरा पसंदीदा विश्वविद्यालय स्टैनफर्ड है, जो एक निजी विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय ने 2022-23 में 2 अरब डॉलर खर्च किए थे। भारत में सभी उच्च शिक्षण संस्थान शोध कार्यों पर जितनी रकम खर्च करते हैं यह रकम उसके बराबर है। इनमें तीन चौथाई रकम अमेरिका की संघीय सरकार देती है। हमें भारतीय उद्योग जगत से यह अपेक्षा रखनी चाहिए कि आंतरिक आरऐंडडी पर वह अधिक से अधिक निवेश करें और इसके बाद ही वैज्ञानिक शोध पर व्यय के बारे में सोचे।

भारतीय उद्योग जगत के अपने संस्थानों में शोध कार्यों पर अधिक ध्यान देने के बाद बाहर वित्त पोषण का दायरा बढ़ाना संभव हो सकता है। मगर स्टैनफर्ड के उदाहरण के अनुसार दीर्घ अवधि में भी ज्यादातर वैज्ञानिक शोध के लिए वित्त केंद्र सरकार को मुहैया कराना होगा।

तो क्या हम 50,000 करोड़ रुपये सार्वजनिक वित्त पोषण का वहन कर सकते हैं?

हमें इसका वहन करना होगा और हम कर सकते हैं। सरकार ने सेमीकंडक्टर विनिर्माण के लिए 85,000 करोड़ रुपये के उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन की घोषणा की है। गुजरात में सेमीकंडक्टर पैकेजिंग संयंत्र लगाने के लिए ही हमने केवल एक कंपनी माइक्रॉन को 17,500 करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। एनआरएफ का सालाना बजट 68,000 करोड़ रुपये और राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान का बजट 3.3 लाख करोड़ डॉलर है। इन आंकड़ों के अनुरूप हमें रकम का इंतजाम करने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए।

संचालन नहीं, उत्तरदायित्व पर होना चाहिए ध्यानः अब आखिरी महत्त्वपूर्ण बात यह रह जाती है कि एनआरएफ का संचालन कैसे होना है। प्रस्ताव के अनुसार इसका संचालन एक उच्च-स्तरीय बोर्ड करेगा जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे और शिक्षा मंत्री और विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री इसके उपाध्यक्ष होंगे।

पहली नजर में स्वयं प्रधानमंत्री का इसका प्रमुख होना एनआरएफ का महत्त्व दर्शाता है। मगर मैं एक वैकल्पिक संचालन संरचना का सुझाव दूंगा। किसी भी संस्थान के प्रभावी रूप से काम करने के लिए दीर्घकालिक संचालन की आवश्यकता होती है। मैं यह सोचकर हैरान होता हूं कि क्या भारत जैसे पेचीदा एवं विविधता वाले देश में प्रधानमंत्री या किसी मंत्री के लिए एक शोध कोष का लगातार संचालन एवं इस पर निगरानी संभव है!

इसके बजाय एक समर्पित एवं सक्षम पेशेवर की अध्यक्षता में एक पूर्ण पेशेवर बोर्ड (अफसरशाह नहीं) के माध्यम से इस कोष का संचालन कहीं अधिक प्रभावी होगा। हां, बोर्ड प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल के प्रति उत्तरदायी हो तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।

एनआरएफ एक क्रांतिकारी बदलाव

एनआरएफ एक क्रांतिकारी बदलाव है। अगर यह ठीक ढंग से काम करे तो हमारी उच्चतर शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता में बड़ा सुधार हो सकता है। इसके साथ ही वैज्ञानिक शोध से आवश्यक नतीजे भी सामने आ सकते हैं। एनआरएफ में निहित क्षमता का पूर्ण लाभ उठाने के लिए हमें पर्याप्त एवं तेजी से बढ़ती सार्वजनिक वित्त की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।

इसके साथ ही सार्वजनिक एवं निजी दोनों शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षाविदों के लिए इसे विशेष रूप से सुरक्षित रखा जाना चाहिए। इन दोनों की जवाबदेही तय कर हम इसकी क्षमता का पूर्ण लाभ उठा पाएंगे। इस आलेख के अगले हिस्से में इस बात पर चर्चा होगी कि भारत में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एनआरएफ को किन विशेष कार्यों के लिए वित्त मुहैया करना चाहिए।

(लेखक फोर्ब्स मार्शल के सह-चेयरमैन और सीआईआई के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

First Published - July 28, 2023 | 9:42 PM IST

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