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वर्ष 2023 के सबक और 2024 के लिए संकेत

जलवायु परिवर्तन सहित 2023 को लेकर जो वादे किए गए हैं उनकी शुरुआत 2024 में होनी चाहिए लेकिन इसे लेकर अनिश्चितता का माहौल रहेगा और कुछ कहा नहीं जा सकता है।

Last Updated- December 20, 2023 | 9:30 PM IST

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और भूराजनीतिक बदलाव के इस दौर में नया वर्ष करीब आ चुका है, इसलिए हम 2023 को लेकर पुरानी यादों में खो सकते हैं। बता रहे हैं श्याम सरन

अब जबकि हम 2023 के समापन की ओर बढ़ रहे हैं, दुनिया भर के देशों और लोगों में यह भावना प्रबल है कि वे निर्णय लेने में कमजोर पड़ रहे हैं और नियंत्रण गंवा रहे हैं। यह विरोधाभासी स्थिति है क्योंकि अधिकांश सरकारें यही कह रही हैं कि वे अपने देश की तकदीर का नियंत्रण वापस हासिल कर रही हैं। उनके नागरिकों ने देश की लगाम ऐसे नेताओं के हाथ में सौंप दी है जो संकीर्ण राष्ट्रवाद और प्रांतीयता में उलझे हुए हैं। इस रुख ने जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के क्षेत्र में न्यूनतम सहयोग की संभावनाओं को भी क्षति पहुंचाई है।

कोविड-19 महामारी के दौरान देखने को मिला ‘टीका राष्ट्रवाद’ आत्मघाती अदूरदर्शिता का जबरदस्त उदाहरण था और उसने दिखाया कि हम साथी मनुष्यों के कष्ट और पीड़ा के प्रति कितनी बेरुखी की भावना रख सकते हैं। हम संवेदनशून्य हो गए हैं।

गाजा और पश्चिमी तट पर रहने वाले असहाय लोगों को रोज जिस भयावहता का सामना करना पड़ रहा है वह भी हमारी सामूहिक चेतना को झकझोर नहीं सकी है। हम आने वाले वर्ष को इस पूर्वाभास के साथ ही देख रहे हैं कि यू्क्रेन और गाजा में छिड़ी जंग का विस्तार हो रहा है और दुनिया भर में नए-नए संकट सामने आ रहे हैं। इस प्रकार असीमित हिंसा को अपनाना युद्ध के नए हथियारों से मेल खाता है। इसमें तकनीकी उन्नति के चमत्कार शामिल हैं जो हमें उन्मत्त और चकित दोनों करते हैं।

इस वर्ष मार्च में ओपनएआई ने जीपीटी-4 जारी किया। इसने हकीकत और आभासी के बीच के अंतर को मिटाना शुरू कर दिया जो निंदनीय है। हमारे मस्तिष्क इस डिजिटल हकीकत से किस तरह निपटेंगे। यह 2023 का सबसे उल्लेखनीय विकास हो सकता है जो 2024 और उसके बाद हमारे जीवन को ऐसे बदल सकता है जिसमें कोई परिवर्तन संभव न हो।

इसका असर भूराजनीति पर पड़ेगा। जैसा कि एक विश्लेषक ने कहा, ‘हालांकि तकनीक ने अक्सर भूराजनीति को प्रभावित किया है लेकिन आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के लिए संभावनाओं का अर्थ है कि तकनीक स्वयं भूराजनीतिक कारक बन सकती है।’

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस कई चुनौतियां पेश करती है जो विभिन्न सीमाओं के पार आसानी से प्रसारित होती हैं। हालांकि उसका नियंत्रण चुनिंदा शक्तिशाली परिचालकों के हाथ में रहता है और वे सभी सरकारी नहीं हैं। तकनीक का विकास चुनिंदा बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियों के हाथों में हुआ। सरकारों के पास न तो इनके नियमन का ज्ञान है और न ही क्षमता। नियमन के लिए भी उन्हें इन्हीं कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है।

चीन जैसे देशों ने ऐसे किसी भी तकनीकी विकास पर सख्त नियंत्रण रखा है जो उसकी सत्ता की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। चीन आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के नियंत्रण के मामले में बेहतर स्थिति में हो सकता है लेकिन फिर आशंका यह भी है कि इसका इस्तेमाल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की अत्यधिक महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किए जाने की आशंका हमेशा बनी रहेगी। ऐसी संभावना प्रतिस्पर्धा को जन्म दे सकती है और इसके भयावह भूराजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।

यह हमारे समय का विरोधाभास ही है कि जब हमारी बेहतरी के समक्ष मौजूदा अधिकांश चुनौतियां और खतरे वैश्विक हो चुके हैं तो उसी समय हमारा दृष्टिकोण अत्यधिक संकीर्ण रूप से राष्ट्रीय हो चुका है। शासन के सशक्त अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और बहुपक्षीय प्रक्रियाओं के माध्यम से काम करने वाले वास्तव में वैश्विक और सहयोगी प्रतिक्रियाओं का कोई विकल्प नहीं हैं जिसका मार्गदर्शक सिद्धांत दरअसल समानता है।

हिंसा के सबसे शक्तिशाली उपकरण राज्य और गैर राज्य कारकों के लिए उपलब्ध हैं। इजरायल के खिलाफ हमास का हमला कमजोर की ताकत का प्रतीक है। यह बताता है कि कमजोर और वंचित किस तरह भीषण क्षति पहुंचा सकते हैं। 2023 ने यह दिखाया कि आतंक के खिलाफ लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है।

सरकारों की तकनीकी उन्नति की तलाश ने इसकी संभावनाओं को असंगत रूप से बढ़ा दिया है। सभी देशों को यह समझना चाहिए कि इस बात को लेकर कभी आश्वस्त नहीं रहा जा सकता है कि आरंभिक विद्रोहों को हमेशा के लिए शांत कर दिया गया है। वे दोबारा अचानक भड़क सकते हैं और अपूरणीय क्षति पहुंचा सकते हैं।

हिंसा को राजनीतिक उपकरण के रूप में वैधता नहीं प्रदान की जानी चाहिए। कोई भी काम चाहे कितना भी पवित्र क्यों न हो अगर वह मासूम स्त्री-पुरुषों और बच्चों की हत्या करता है तो उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है। हिंसा अगर एक बार शुरू हो गई तो वह अनचाहे ढंग से बढ़ती है। इजरायल इसका उदाहरण है।

महात्मा गांधी इस हकीकत को समझ चुके थे। उनका अहिंसा का विचार इसी जागरूकता का परिणाम था। हम उनकी विरासत से जितनी दूर जाएंगे यह संभावना उतनी ही बढ़ती जाएगी व्यवस्था में मौजूद दिक्कतें जो हमारे बहुलतावादी समाज को और अधिक ध्रुवीकृत कर सकती हैं, वे भारतीय राज्य के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती हैं। उनको दबाना संभव है लेकिन ऐसा केवल अस्थायी रूप से ही हो सकता है और वह भी लोकतंत्र को त्यागकर।

बहरहाल, 2023 में वैश्विक और अस्तित्व से जुड़े मसलों पर एक सकारात्मक विकास भी हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन संबंधी फ्रेमवर्क कन्वेंशन की 28वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप 28) में कुछ ऐसे निर्णय हुए जिनसे उम्मीद की जा सकती है। अगर उनका क्रियान्वयन किया जा सका तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को दोबारा टिकाऊ भविष्य की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकेगा। पहली बार इसे स्वीकार किया गया है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दुनिया को जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाकर नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में बढ़ना होगा।

यह अवसर है जब हम आर्टिफिशल इंटेलिजेंस समेत शक्तिशाली नई तकनीकों का लाभ लें और कम समय सीमा के भीतर बड़े पैमाने पर इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए काम करें लेकिन इससे जुड़ी प्रतिक्रिया को वैश्विक तथा समता और सहयोग आधारित होना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन सहित 2023 को लेकर जो वादे किए गए हैं उनकी शुरुआत 2024 में होनी चाहिए लेकिन इसे लेकर अनिश्चितता का माहौल रहेगा और कुछ कहा नहीं जा सकता है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं और डॉनल्ड ट्रंप के जीतने की संभावना है। इससे देश में एक नए तरह की स्थिति बनेगी।

वैश्विक चुनौतियों से निपटने के क्रम में अमेरिका की भूमिका और उसकी क्षमता महत्त्वपूर्ण है। इजरायल और हमास के बीच का हिंसक संघर्ष निरंतर जारी है और यूक्रेन युद्ध समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा। इससे भूराजनीति और ध्रुवीकृत होगी। व्लादीमिर पुतिन ने यह महसूस कर लिया है कि अमेरिका का ध्यान बंट रहा है और यूक्रेन को पश्चिम का समर्थन कम हो रहा है। उन्हें ट्रंप की सरकार बनने से उम्मीद होगी।

अमेरिका दो युद्धों से निपट रहा है और हिंद प्रशांत क्षेत्र में खतरा बढ़ रहा है ऐसे में वह चीन के साथ प्रतिस्पर्धा कम करने पर ध्यान दे सकता है। इसके संकेत पहले ही नजर आ रहे हैं। जो बाइडन ने निर्णय लिया है कि वह जनवरी में गणतंत्र दिवस पर भारत नहीं आएंगे।

क्वाड शिखर बैठक के समय में बदलाव भी अमेरिका की बदली रणनीति का संकेत हो सकता है। यह पन्नुन मामले और भारतीय अधिकारियों द्वारा कथित हत्या के आरोपों की जांच का असर भी हो सकता है।

भारत की अध्यक्षता वाले जी20 शिखर बैठक की सफलता अब धूमिल पड़ रही है हालांकि आगामी आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को तीसरा कार्यकाल मिल सकता है और भारत राजनीतिक स्थिरता वाले प्रमुख देशों में से एक रह सकता है। 2024 में जटिल कूटनीति की दरकार वाले समय में यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।

*(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो हैं)

First Published - December 20, 2023 | 9:28 PM IST

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