फिच (Fitch Ratings) की तरफ से अमेरिका की रेटिंग घटाए जाने का असर वैश्विक इक्विटी बाजारों पर लगातार दूसरे दिन बरकरार रहा।
ज्यादातर एशियाई बाजार मसलन हॉन्ग-कॉन्ग, शांघाई और जापान के बाजारों ने गुरुवार को करीब एक फीसदी तक गंवा दिए।
भारत में एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स (BSE Sensex) और निफ्टी भी कमजोर रहे। मॉर्गन स्टैनली ने भारत को अपग्रेड कर ओवरवेट कर दिया है, जिससे हालांकि गिरावट को थामने में मदद मिली।
इससे पहले 2011 में घटी थी अमेरिका की रेटिंग
इस बीच, अमेरिका ने पिछली बार किसी अहम एजेंसी की तरफ से रेटिंग में कमी का सामना करीब एक दशक पहले 2011 में किया था और तब स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स (एसऐंडपी) ने रेटिंग एएए से घटाकर एए प्लस किया था।
आंकड़े बताते हैं कि तब इन दोनों बाजारों ने अपने पांव वापस जमाने में एक महीने से ज्यादा का वक्त लिया था। डाउनग्रेड के एक महीने बाद एसऐंडपी 500, डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवेरज (डीजेआईए) और नैसडेक ने क्रमश: 2.8 फीसदी, 2.7 फीसदी व 2.3 फीसदी गंवा दिए थे। एक्सचेंज के आंकड़ों से यह जानकारी मिली।
इस अवधि में एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी-50 ने क्रमश: 3.4 फीसदी व 3.7 फीसदी गंवाए थे। निफ्टी बैंक इंडेक्स हालांकि इस दौरान 7.2 फीसदी गिरा था।
डाउनग्रेडिंग से उबरने में कितना लंबा समय लगेगा ?
ऐसे में सवाल उठता है कि वैश्विक इक्विटी बाजारों,खास तौर से अमेरिका व भारत को फिच की हालिया डाउनग्रेडिंग से उबरने में कितना लंबा समय लगेगा या फिर यह एकतरफा मामला होगा क्योंकि आर्थिक दबाव बढ़ रहा है। साथ ही क्या रूक-रूककर होने वाली बढ़ोतरी बिकवाली के दबाव को पूरा कर देगी?
विश्लेषकों ने कहा, शेयर बाजार अप्रत्याशित घटनाक्रम से प्रभावित होते हैं और उनमें तात्कालिक प्रतिक्रिया नजर आती है। जब बाजार का मूल्यांकन ऊंचा हो तो बिकवाली तेज होगी।
जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा, महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या यह वैश्विक बाजारों में तेजी लाने वाले फंडामेंटल कारकों को प्रभावित करेगा। इसका जवाब है, नहीं। मौजूदा वैश्विक तेजी को आगे ले जाने वाला अमेरिकी अर्थव्यवस्था का सॉफ्ट लैंडिंग नरेटिव न सिर्फ बरकरार है बल्कि मजबूत हो रहा है।
अमेरिका में जीडीपी की रफ्तार मजबूत है और महंगाई घट रही है। अमेरिका की 80 फीसदी कंपनियों ने उम्मीद से बेहतर तिमाही नतीजे घोषित किए हैं। फिच की डाउनग्रेडिंग आर्थिक हालात को नहीं बदल सकती। रेटिंग डाउनग्रेड का सेंटिमेंटल असर जल्द ही धुंधला पड़ सकता है।
सेंट्रम ब्रोकिंग के मुख्य कार्याधिकारी (इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज) निश्चल माहेश्वरी के मुताबिक, फिच की तरफ से अमेरिकी रेटिंग में कटौती की प्रकृति ज्यादातर सांकेतिक है और एजेंसी ने जिन कारणों का हवाला दिया है वह पहले से ही सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है।
उन्होंने कहा, वैश्विक इक्विटी बाजारों खास तौर से अमेरिका व भारत में गिरावट पिछले दो-तीन महीने की अच्छी तेजी के बाद आई है। इस घटनाक्रम ने महज मुनाफावसूली का एक और दौर शुरू कर दिया। बाजार यहां से 200-300 अंक और गिर सकता है और फिर पलट सकता है। अमेरिका में वृद्धि के ज्यादातर मानक बेहतर हैं। अगर आगामी आर्थिक आंकड़े अच्छे रहते हैं तो बाजार जल्द ही यू-टर्न ले सकता है और आगे बढ़ सकता है।