सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, उपभोक्ताओं, वकीलों और मरीजों के एक समूह ने भारत सरकार से देश के युवाओं के बीच जंक फूड के बढ़ते उपभोग पर नियंत्रण करने की अपील की है।
ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई) और पोषण नीति पर काम करने वाले एक राष्ट्रीय स्तर के थिंक टैंक, एनएपीआई ने संयुक्त रूप से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है, ‘दि जंक पुश’।
इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत, मोटापे और मधुमेह जैसी बीमारियों के चलते गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है। 2023 की आईसीएमआर-इंडियाबी के अध्ययन से भी पता चलता है कि मधुमेह के 10 करोड़ मामले हैं और हर चार में से एक व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित है या मधुमेह से पहले होने वाली बीमारियों या मोटापे से ग्रस्त है।’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पोषण ट्रैकर के माध्यम से जुटाए गए नए आंकड़ों से पता चला है कि पांच साल से कम उम्र के 43 लाख बच्चे मोटापे का शिकार हो रहे हैं या अधिक वजन वाले हैं। यह ट्रैक किए गए कुल बच्चों के सिर्फ 6 प्रतिशत का आंकड़ा है।’
वयस्क युवाओं और बच्चों में गैर-संचारी बीमारियों की बढ़ती संख्या की प्रमुख वजहों में जंक फूड का सेवन भी एक है। इसकी खपत को रोकने के लिए, रिपोर्ट में सरकार से गुहार लगाई गई है कि वह अधिक चीनी और नमक वाले खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने वाली कंपनियों के विज्ञापनों का संज्ञान ले।
एनएपीआई ने रिपोर्ट में कहा, ‘हमारा मानना है कि ये विज्ञापन भ्रामक हैं। ये विज्ञापन आमतौर पर सेलेब्रिटी करार, भावनात्मक अपील जैसे हथकंडे अपनाते हुए अप्रमाणित स्वास्थ्य दावा करते हैं और बच्चों को लक्षित करते हैं। किसी भी विज्ञापन में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के मुताबिक खाद्य उत्पादों के लिए मांगी गई ‘सबसे महत्वपूर्ण जानकारी’ नहीं दी गई जिनमें चीनी, नमक या संतृप्त वसा की मात्रा शामिल है।’
बाल रोग विशेषज्ञ और एनएपीआई के संयोजक अरुण गुप्ता ने कहा, ‘मौजूदा नियामक नीतियां जंक फूड के किसी भी विज्ञापन को नियंत्रित करने में प्रभावी नहीं हैं क्योंकि इनमें से ज्यादातर भ्रामक हैं और विशेष रूप से ये बच्चों और किशोरों को लक्षित करते हुए तैयार किए जाते हैं।‘
रिपोर्ट से जुड़े लोगों ने कहा कि इस तरह के गैर-संचारी रोगों के सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को नियंत्रित करने के लिए बेहतर कानूनों पर जोर देना अहम होगा।
उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील चंद्र उदय सिंह ने कहा, ‘संसद में एक विधेयक लाने की संभावना हो सकती है जिससे मौजूदा नियामक प्रणाली में दिख रहे अंतर को पाटने में मदद मिलेगी।’
डब्ल्यूएचओ इंडिया के अगस्त 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खुदरा बिक्री 2011 और 2021 के बीच 13.37 प्रतिशत की सालाना वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ी है।