अधिकांश देश स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे लागत बढ़ सकती है लेकिन पर्यावरण के पहलू से देखें तो इसके लाभ भी हैं। श्नाइडर इलेक्ट्रिक के मुख्य वित्तीय अधिकारी हिलेरी मैक्सन ने ब्लूमबर्ग एनईएफ को हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘यदि आप लगातार काफी दूर के क्षेत्रों से सामग्री ला रहे हैं तब अकार्बनीकरण के लक्ष्यों को पाना असंभव है।’
करीब 37 अरब डॉलर की इस ऊर्जा प्रबंधन और औद्योगिक स्वचालन समाधान कंपनी ने 2005 के बाद से ही कई वर्षों के दौरान अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखला तैयार की है जिसने बाजार में इसकी गति में भी सुधार किया है।
हर देश स्थानीय विनिर्माण को जादू के एक मंत्र के रूप में देख रहा है। अमेरिका द्वारा महंगाई को कम करने के कानून के माध्यम से पेश किए गए प्रोत्साहनों के आकर्षक पैकेज ने स्थानीय स्तर पर निर्माण के लिए अरबों डॉलर की निवेश प्रतिबद्धता बढ़ाई है। यूरोप अपनी नीतियों के साथ इसी उपलब्धि को हासिल करने के प्रयास में है। इसी वजह से एनेल की 3सन जैसी कंपनियां यूरोप और अमेरिका में गीगावॉट पैमाने वाले सौर विनिर्माण संयंत्र स्थापित कर रही हैं।
ब्रिटेन के व्यापार मंत्री नुसरत गनी ने ब्लूमबर्ग को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि ब्रिटेन अपनी सब्सिडी पर भी काम कर रहा है, हालांकि यह अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की ग्रीन सब्सिडी के बड़े पैकेज की बराबरी कभी नहीं कर पाएगा। यूरोप में ब्रेकथ्रू एनर्जी की नीति टीम का नेतृत्व करने वाले एन मेटलर के अनुसार, ‘ग्रीन ट्रांसलैंटिक मार्केटप्लेस’ बनाकर यूरोप और अमेरिका के बीच सहयोग को मजबूती देने की कोशिश की गई है और इसके साथ ही संयुक्त दृष्टिकोण पर भी जोर दिया जा रहा है।
भारत सौर और बैटरी सहित कई क्षेत्रों के लिए अपनी उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के साथ इस क्षेत्र में है। वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने हाल में एक सवाल के जवाब में कहा था कि इसका उद्देश्य, ‘वैश्विक वैल्यू चेन के कुछ खंडों में रणनीतिक रूप से प्रवेश करना है, जिससे उम्मीद है कि भारत के निर्यात क्षेत्र की पारंपरिक वस्तुएं, उच्च मूल्य वर्धित उत्पादों में बदल जाएंगी।
सौर और पवन ऊर्जा जैसे अधिक परिपक्व स्वच्छ ऊर्जा खंडों के साथ-साथ उभरती हुई हरित प्रौद्योगिकियों, लंबी अवधि के ऊर्जा भंडारण, ग्रीन हाइड्रोजन, कार्बन कैप्चर और भंडारण तथा टिकाऊ विमानन ईंधन के विनिर्माण के लिए वैश्विक होड़ जैसी स्थिति बन गई है। बीएनईएफ के अनुसार, दूसरी तिमाही में जलवायु-तकनीक उद्यम पूंजी और निजी इक्विटी निवेश के लिहाज से अमेरिका ने दुनिया के सबसे बड़े बाजार के रूप में शीर्ष स्थान हासिल किया है और वहां स्टार्टअप ने 87 सौदों में 3.5 अरब डॉलर जुटाए हैं।
पहली बार, फंडिंग (1.8 अरब डॉलर) और करार की संख्या (31) दोनों के आधार पर भारत दूसरा सबसे बड़ा बाजार था। इस संख्या पर विविधता से भरी स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी कंपनी अवादा एनर्जी द्वारा जुटाई गई 1 अरब डॉलर से अधिक की राशि का काफी प्रभाव था। जलवायु-प्रौद्योगिकी से जुड़े निवेश आमतौर पर ऊर्जा, परिवहन, उद्योग, इमारतों, कृषि और कार्बन का विस्तार करते हैं।
उत्पादन में इन रणनीतिक बदलावों के मूल में राष्ट्रीय अकार्बनीकरण लक्ष्य हैं। बीएनईएफ के अनुसार, 68 प्रतिशत वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार देश, पहले से ही शुद्ध-शून्य लक्ष्य द्वारा कवर किए गए हैं। यदि चर्चा के तहत सभी योजनाओं को अंतिम रूप दिया जाता है, तब यह 90 प्रतिशत से अधिक हो सकता है। इसका मतलब है कि उत्पादन के लिए नियर-शोरिंग (उत्पादन संयंत्रों को नजदीकी पड़ोसी देशों में स्थापित करना), ऑन-शोरिंग (घरेलू राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर एक कारोबार के उत्पादन, संचालन को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया) और फ्रेंड-शोरिंग (आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क उन देशों में ज्यादा केंद्रित है जो राजनीतिक और आर्थिक सहयोगी देश हैं) की अधिक खबरें आएंगी।
इससे जुड़ी हाल की कुछ घोषणाएं निम्नलिखित हैं:
टाटा समूह ने ब्रिटेन में 5.2 अरब डॉलर का एक बैटरी संयंत्र बनाने की योजना बनाई है ताकि जगुआर लैंड रोवर ऑटोमोटिव द्वारा बनाए गए इलेक्ट्रिक वाहनों की आपूर्ति की जा सके। जेएलआर और टाटा मोटर्स संयंत्र के ग्राहक होंगे जो 2026 से आपूर्ति शुरू करेगी। ब्रिटेन द्वारा एक आकर्षक प्रोत्साहन पैकेज की पेशकश की गई है ताकि इस सौदे को पूरा किया जाए। स्पेन ने कथित तौर पर गंभीर प्रतिस्पर्धा की पेशकश की।
ब्लूमबर्ग न्यूज की एक खबर के अनुसार, एक्सॉनमोबिल ने प्रति वर्ष 100,000 टन लीथियम निकालने का लक्ष्य निर्धारित किया है और धातु की आपूर्ति के लिए कार निर्माताओं और बैटरी निर्माताओं के साथ बातचीत कर रही है।
ऐपल की निर्भरता चीन के आपूर्तिकर्ताओं पर बनी रह सकती है। ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस के अनुसार, ऐपल उत्पादन स्थलों की कुल संख्या 2021 में 745 से घटकर पिछले साल 735 हो गई, वहीं उत्पादन स्थलों में चीन की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत से बढ़कर 38 प्रतिशत हो गई। जापान की साइट की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत, अमेरिका की 11 प्रतिशत से घटकर 9 प्रतिशत हो गई, जबकि भारत की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत पर बनी है।
सैन फ्रांसिस्को के पास मौजूद लॉरेंस लिवरमोर नैशनल लैबोरेटरी ने पिछले साल न्यूक्लियर फ्यूजन में लंबे समय से अपेक्षित मील का पत्थर हासिल कर लिया है जो एक ऐसी नियंत्रित प्रतिक्रिया है जिसमें अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। कई महीनों की चूक के बाद यह उपलब्धि दोहराई गई है। यह एक बड़ा कदम है, लेकिन न्यूक्लियर फ्यूजन द्वारा संचालित ऊर्जा का भविष्य अभी दूर है।
(लेखिका न्यूयॉर्क में ब्लूमबर्ग एनईएफ की वैश्विक नीति से जुड़ी वरिष्ठ संपादक हैं)