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Pakistan: इमरान खान के ​खिलाफ कार्रवाई का असर

खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी को इतने मत नहीं मिल गए कि वह सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व करने की ​स्थिति में आ जाए।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 20, 2023 | 11:12 PM IST

पाकिस्तान की राजनीति में एक और केवल एक ही नियम है: वर्दी वालों यानी सेना के ​खिलाफ कोई दांव मत लगाइए। पांच वर्ष पहले सेना चाहती थी कि इमरान खान प्रधानमंत्री बनें और उन्होंने मुख्य धारा के राजनीतिक दलों और मीडिया को तब तक प्रेरित किया जब तक कि खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी को इतने मत नहीं मिल गए कि वह सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व करने की ​स्थिति में आ जाए।

दूसरा, यह बात उन्हें बाकी लोगों की तुलना में बहुत देरी से समझ में आई कि इमरान खान जैसे अहम वाले व्य​क्ति से यह उम्मीद करना समझदारी नहीं थी कि वह सेना के आदेशों का आज्ञाकारी ढंग से पालन करेगा। इसलिए उन्होंने उनसे छुटकारा पाने की ठानी और विभिन्न राजनेताओं को तब तक आगे बढ़ाया जब तक कि गत वर्ष एक वैक​ल्पिक सत्ताधारी गठबंधन नहीं तैयार हो गया।

तीसरा, उन्हें एक और खराब लेकिन पूरी तरह अनुमानयोग्य बात पता चली। वह यह कि खान के अनुयायी सही मायनों में वफादार थे। खान के पहले भी कई प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों को परेशान किया गया, पद से हटाया गया, निर्वासित किया गया और यहां तक कि सजा-ए-मौत तक दी गई परंतु उनके अनुयायियों और मतदाताओं में इतनी तमीज थी कि वे चुपचाप अपने घर पर रहे।

उन्होंने यह मान लिया कि उनकी देशभक्त और सक्षम सेना को बेहतर जानकारी है। इसके विपरीत खान की लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई। इस बात ने भी सेना को चौंकाया नहीं होगा: खान उस समय बतौर राजनेता ​शिखर पर होते हैं जब वे अपने अनुयायियों के उन्माद को बढ़ावा दे रहे होते हैं, उस समय नहीं जब वे उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए नीतियां तैयार कर रहे होते हैं।

चौथा, उन्हें किसी तरह यह सुनि​श्चित करना था कि खान आम चुनाव में ​शिरकत न करने पाएं। पाकिस्तान की बहादुर और स्वतंत्र न्यायपालिका ने संयोगवश प्रतिपक्ष के नेता खान को न केवल सजा सुना दी ब​ल्कि चुनाव लड़ने के अयोग्य भी घो​षित कर दिया। यह सब आम चुनाव के ऐन पहले किया गया। (हम खुशकिस्मत हैं​ कि भारत में ऐसा कुछ नहीं हुआ है)
पाकिस्तान के मानकों से भी यह बहुत खराब बात है, खासकर यह देखते हुए कि यह असाधारण आ​र्थिक संकट के समय उत्पन्न ​स्थिति है।

विभाजन के बाद पाकिस्तान ने कभी इतना निर्यात नहीं किया जो उसके आयात के स्तर के समतुल्य हो। भारत ने भी अपने स्वतंत्र इतिहास में प्राय: ऐसा नहीं किया है। परंतु हम कम से कम अपनी संभावनाओं के बरअक्स निरंतर पर्याप्त धन जुटाते रहे हैं ताकि पूंजी खाते में इसकी भरपाई की जा सके। इसकी तुलना में पाकिस्तान वॉ​शिंगटन, रियाद या पेइचिंग में अपने शक्तिशाली मित्रों से मदद मांगता है। वह उनसे नकद सहायता लेकर कठिन समय से पार पाता है। अकेले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 22 बार पाकिस्तान को संकट से उबारा है।

चूंकि पाकिस्तान पूरी तरह बाहरी सहायता पर निर्भर है इसलिए वहां की राजनीति भी जाहिर तौर पर विदेशियों के ​खिलाफ है। इस पूरे घटनाक्रम में ताजा मोड़ है पाकिस्तान की एक कूटनयिक केबल का लीक होना जिसमें कहा गया है कि इमरान खान के समर्थक अपने नेता के इस आरोप पर यकीन करते हैं कि गत वर्ष उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटवाने में अमेरिका का हाथ था।

यह केबल अगर सही है तो यह शायद पाकिस्तानी अ​धिकारियों और अमेरिका के विदेश विभाग के निचले दर्जे के अ​धिकारियों के बीच बैठक का उल्लेख करती है। इसमें अमेरिकी अधिकारी विस्तार से और उचित ही यह ​शिकायत करते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने फरवरी 2022 में यानी ठीक उस समय मॉस्को जाने का गलत निर्णय लिया जब रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने अपनी सेना को यूक्रेन पर हमला करने का आदेश दिया। केबल के मुताबिक यह कूटनयिक बैठक उस समय हुई जब सेना अविश्वास प्रस्ताव के लिए विपक्ष को एकजुट कर रही थी।

अमेरिकी अ​धिकारियों ने उचित ही इस ओर संकेत किया कि यह यात्रा तब बिल्कुल समस्या बन जाएगी जबकि अविश्वास प्रस्ताव के बावजूद खान प्रधानमंत्री बने रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे इतने मूर्ख नहीं हैं कि वे किसी संभावित उत्तरा​धिकारी को खान की गतिवि​धियों के लिए दोषी ठहराएंगे।

खान के समर्थकों ने इसका अर्थ यह लगाया कि अमेरिका ने इमरान खान को हटाने का दबाव बनाया। यह इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे यह कल्पना की गई कि खान अपने आप में एक परिवर्तनकारी राजनेता हैं।

केबल से यह संकेत निकलता है कि अमेरिका की पाकिस्तान की घरेलू राजनीति में कोई खास रुचि ही नहीं थी। इस पूरी घटना से केवल एक बड़ा सवाल पैदा होता है और वह यह है कि आ​खिर अमेरिका को इस बात से कोई फर्क क्यों पड़ेगा कि पाकिस्तान जैसी मध्यम मझोली ताकत वाला देश रूस के बारे में क्या कहता अथवा नहीं कहता है। अगर अमेरिका को आज के पाकिस्तान को लेकर यह चिंता है कि वह दूरदराज घट रहे संकट के बारे में क्या कहता है तो जाहिर है यह पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के लिए अच्छी खबर नहीं है।

पाकिस्तान को अमेरिका को दोष देने के काम में महारत हासिल है लेकिन छोटे-मोटे अमेरिकी अधिकारियों को दोष देने का तो फिर भी कोई फायदा नहीं है। पाकिस्तान में केवल सेना ही मायने रखती है और इमरान खान तथा उनके समर्थकों पर सेना का इस तरह हमला बोलना न केवल अलोकतांत्रिक है बल्कि यह पाकिस्तान में हालात सामान्य होने और वृद्धि में सुधार की संभावनाओं को भी झटका देगा।

नि​श्चित तौर पर खान खुद एक लोकतंत्र विरोधी लोकलुभावनवादी नेता हैं जिनका शासन पाकिस्तान में हालात सामान्य होने और उसकी प्रगति में बाधा ही बनेगा। हमेशा की तरह सीमा पार चुनने के लिए बहुत सीमित अच्छे विकल्प हैं।

First Published : August 20, 2023 | 11:12 PM IST