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Editorial: खाद्य असुरक्षा की वापसी

भारत विकासशील देशों का नेतृत्व करने की बात कहता है इसलिए उसे जी-20 की अपनी अध्यक्षता में इस मसले को हल करने का प्रयास करना चाहिए।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 19, 2023 | 9:35 PM IST

गत वर्ष यूक्रेन के गेहूं निर्यात को रूसी आक्रमण से बचाने के लिए बहुत जोरशोर के साथ ब्लैक सी ग्रेन पहल (Black Sea Grain Initiative) पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसकी अवधि अब समाप्त हो चुकी है।

रूस ने इसमें आगे भागीदारी करने से इनकार किया है। इसका अर्थ यह हुआ कि काला सागर एक बार फिर खाद्यान्न की ढुलाई करने वाले पोतों के लिए बंद हो चुका है। रूस के इस कदम की कई वजह हैं। एक वजह तो यह है कि खुद रूस जो कि एक प्रमुख गेहूं उत्पादक है, उसके पास निर्यात के लिए अनेक वैकल्पिक मार्ग हैं।

दूसरी वजह यह है कि इस वर्ष उसके यहां जबरदस्त पैदावार होने की उम्मीद है और वह कीमत पर किसी भी तरह के असर का पूरा लाभ लेना चाहेगा। आखिर में भूराजनीतिक वजहें भी हैं जो शायद रूस के लिए मायने रखती हों।

अनाज को लेकर हुई संधि को आंशिक रूप से तो तुर्किये की निगरानी में और उसी के द्वारा अंजाम दी गई जिसने ऐतिहासिक रूप से बोसफोरस के रास्ते काला सागर पर पहुंच को नियंत्रित किया है। यूक्रेन पर हमले के बाद से ही तुर्किये उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और रूस तक पहुंच के बीच संतुलन कायम किए हुए है।

बहरहाल, हाल के सप्ताहों में तुर्किये के पुनर्निर्वाचित राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन ने पश्चिम और यूक्रेन के लिए एक के बाद एक रियायतों की घोषणा करके पर्यवेक्षकों को चौंका दिया है जो उसकी पुरानी संतुलन वाली भूमिका को सीमित करते हैं।

उन्होंने मारिउपोल पर कब्जे के बाद पकड़े गए यूक्रेन के कैदियों को हिरासत में रखने संबंधी संधि से इनकार कर उन्हें वापस कीव भेज दिया। इसके अलावा उन्होंने स्वीडन को नाटो में शामिल करने पर आपत्ति छोड़ दी थी और यह भी कहा कि यूक्रेन इस सुरक्षा गठजोड़ की सदस्यता का हकदार है। यह बात रूस को बिल्कुल पसंद नहीं है।

खाद्यान्न की उपलब्धता होगी प्रभावित

रूस द्वारा अनाज से संबंधित संधि को जारी रखने से इनकार करना खाद्यान्न की उपलब्धता पर असर डालेगा। अल्पावधि में यह ध्यान देना आवश्यक है इस संधि को लेकर रूस के असहयोग के कारण पहले ही व्यापार प्रभावित हो चुका है। निगरानी का काम ठप है और ओडेसा बंदरगाह को रूसी ड्रोन निशाना बना रहे हैं। इस असहयोग की कीमतों पर असर नहीं हुआ क्योंकि ब्राजील समेत अन्य जगहों पर गेहूं की अच्छी उपज हुई। परंतु मध्यम से लंबी अवधि में यह एक बार फिर वैश्विक स्तर पर खाद्य असुरक्षा को बढ़ाता है।

यूक्रेन के गेहूं के लिए वैकल्पिक मार्ग तैयार करना मुश्किल रहा है। उसके पूर्वी यूरोप के समर्थक एक हद तक गेहूं के आयात को लेकर बाधा उत्पन्न करने वाले रहे हैं। काले सागर के गेहूं का करीब आधा हिस्सा यूरोप और मध्य एशिया जाता था। केवल 15 फीसदी गेहूं पश्चिम एशिया और अफ्रीका जाता था लेकिन यह इन क्षेत्रों में तथा आमतौर पर भी मूल्य स्थिरता के लिए अहम रहा है। विकासशील देशों के सामने अब तंग होते खाद्य बाजार की संभावना उत्पन्न हो रही है जो गत वर्ष राजनीतिक अशांति और वृहद आर्थिक अस्थिरता की वजह बनी थी।

भारत विकासशील देशों का नेतृत्व करने की बात कहता है इसलिए उसे जी-20 की अपनी अध्यक्षता में इस मसले को हल करने का प्रयास करना चाहिए। अगर ऐसा करना कठिन प्रतीत हो तो भी उसे कम से कम इस समस्या को गंभीर होने देने से बचना चाहिए। दुनिया भर में कई चिंताएं हैं।

उदाहरण के लिए भारत घरेलू मुद्रास्फीतिक दबाव के चलते चावल निर्यात को रोक सकता है। आम चुनाव एक साल से भी कम समय के बाद होने वाले हैं और इससे घरेलू राजनीति सधेगी। परंतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके गंभीर परिणाम होंगे जिन्हें ध्यान में रखा जाना चाहिए। व्यापक मुद्रास्फीतिक माहौल और वैश्विक खाद्य सुरक्षा को हल करने के लिए भारत के कई प्रकार के अनुबंधों के जरिये दबाव बनाया जा सकता है ताकि मानवीय आधार पर यूक्रेन के गेहूं तक दुनिया की पहुंच सुनिश्चित हो सके।

First Published : July 19, 2023 | 9:35 PM IST