भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) देर से ही सही लेकिन सक्रिय हो गया है। उसने राज्यों से कहा है कि वे विभिन्न ब्रांड के मसालों के पाउडर को परीक्षण के लिए एकत्रित करें। इससे पहले अप्रैल में सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग के खाद्य नियामकों ने खूब बिकने वाले भारतीय मसालों एमडीएच और एवरेस्ट पर प्रतिबंध लगा दिया। इन मसालों में कैंसरकारक कीटनाशक एथिलीन ऑक्साइड पाया गया था।
भारत में इन मसालों की जांच के बाद हासिल नतीजों को एक विशेषज्ञ समिति के सामने पेश किया जाएगा और तकरीबन 25 दिनों में इसकी विस्तृत रिपोर्ट हासिल की जाएगी।
सरकार घरेलू और निर्यात बाजारों में बेचे जाने वाले मसालों में एथिलीन ऑक्साइड के इस्तेमाल के लिए दिशानिर्देश बनाने की प्रक्रिया में है। यह नियामकीय सक्रियता स्वागतयोग्य है लेकिन इसके साथ ही सक्रिय कदम उठाने की क्षमता को लेकर भी सवाल पैदा होते हैं।
भारत को विदेशी बाजारों के नियामकों की शिकायत पर कदम उठाने में एक महीने से अधिक का समय लग गया। इस पर यकीनन सवाल उठेंगे। इसलिए भी कि भारतीय खाद्य निर्यात में घातक कीटनाशक मिलने का सिलसिला पुराना है।
उदाहरण के लिए गत वर्ष भी अमेरिका ने एमडीएच के तीन मसालों को वापस कर दिया था क्योंकि उनमें साल्मोनेला बैक्टीरिया पाया गया था। इसके अलावा मीडिया में यह खबर भी आई थी कि कैसे भारत से गए बासमती चावल में कीटनाशक पाए जाने पर यूरोपीय संघ ने चेतावनी जारी की थी। ये घटनाएं दोहरा नुकसान पहुंचा सकती हैं।
तात्कालिक रूप से यह देश के तेजी से बढ़ते मसाला निर्यात कारोबार पर बुरा असर डालेगा जो अब 4.25 अरब डॉलर का है और वैश्विक मसाला निर्यात में 12 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है। ऐसे समय में जब प्रमुख विदेशी बाजार संरक्षणवादी रुख अपना रहे हैं, तब खाद्य संरक्षा से जुड़ी शिकायतों को लेकर धीमी और अस्पष्ट प्रतिक्रिया एक विरोधाभासी संकेत देती है। दूसरी बात जन स्वास्थ्य पर इसके असर से जुड़ी है। भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय पहले ही कम है, यह बात बहुत मायने रखती है।
पैकेटबंद खाद्य और पेय पदार्थों में कीटनाशकों के अवशेष का खतरनाक स्तर पर पाया जाना एक ऐसा मुद्दा है जिसे सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वॉयरनमेंट जैसे पर्यावरण और स्वास्थ्य सलाहकार समूह लगातार रेखांकित करते रहे हैं। वे बीते दो दशक से लगातार इस विषय में चेतावनी दे रहे हैं लेकिन नियामक की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
हॉन्गकॉन्ग और सिंगापुर के खाद्य संरक्षा नियामकों ने हाल ही में जो प्रतिबंध लगाए हैं वह भी खतरों को रेखांकित करता है। उनकी जांच में एथिलीन ऑक्साइड का ऊंचा स्तर सामने आया जो खाद्य पदार्थों में नहीं होना चाहिए।
दूसरे शब्दों में कहें तो खाद्य पदार्थों में इसकी मौजूदगी उन पदार्थों को इंसानों के खाने के लिए अनुपयुक्त बनाती है और लंबे समय तक इनका सेवन कैंसर की वजह बन सकता है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा इन दोनों मसालों को नकारे जाने के बावजूद एफएसएसएआई और वाणिज्य मंत्रालय के अधीन आने वाले मसाला बोर्ड ने कोई जल्दी नहीं दिखाई।
खाद्य पदार्थों के नियमन में अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है, बजाय कि मानक तय करने या उद्योग लॉबियों की मांग पर प्रतिक्रिया देने के। गत वर्ष पंजाब सरकार और चावल निर्यातकों ने यूरोपीय संघ द्वारा बासमती चावल के भंडार को नकारने की धमकी के बाद किसानों से मिलकर प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमाल रुकवाया।
हालांकि कीटनाशक निर्माताओं की राजनीतिक रूप से सशक्त लॉबी उनकी कोशिशों को धता बताने की कोशिश कर रही है। यह लॉबी मुनाफे को लोगों के स्वास्थ्य पर तरजीह देती है। ये ऐसे मसले हैं जिन्हें एफएसएसएआई को तत्काल हल करने की आवश्यकता है। भारतीयों का स्वास्थ्य तथा देश का बढ़ता खाद्य निर्यात उद्योग इसी पर निर्भर है।