राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के नियामक पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA) ने 27 अक्टूबर को एक पत्र जारी कर सदस्यों को रकम एकमुश्त निकालने यानी सिस्टमैटिक लंप-संप विदड्रॉल (एसएलडब्ल्यू) की सुविधा देने का प्रस्ताव दिया है।
सदस्य जब सेवानिवृत्त हो जाता है या उसकी उम्र 60 साल हो जाती है तब वह एनपीएस में जमा कुल राशि का 60 फीसदी एकमुश्त निकाल सकता है। इस पर कोई कर नहीं लगता है। बाकी 40 फीसदी रकम का इस्तेमाल एक या अधिक योजना (एन्युटी) खरीदने के लिए किया जाएगा।
अभी तक सदस्य एक बार में एकमुश्त रकम निकाल सकते हैं या आगे के लिए टाल सकते हैं। ऐसा करने पर उन्हें हर साल एक बार निकासी की इजाजत है। मगर अब पीएफआरडीए ने एसएलडब्ल्यू के जरिये एकमुश्त रकम कई हिस्सों में निकालने का प्रस्ताव रखा है। अब सदस्य 75 साल की आयु तक हर महीने, तीन महीने, छह महीने या साल में एक बार रकम निकाल सकते हैं।
एसएलडब्ल्यू की सुविधा पेंशन निधि के ग्राहकों को काफी सहूलियत देगी। केफिन टेक्नोलॉजीज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (एनपीएस) राजेश खंडागले कहते हैं, ‘अब रिटायर होने पर व्यक्ति अपनी जरूरत के मुताबिक रकम निकालेगा।’ रकम निकासी अब पहले से ज्यादा आसान हो जाएगी।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत निवेश सलाहकार दीपेश राघव समझाते हैं, ‘पहले सदस्य 60 से 75 साल की उम्र में 10 सालाना किस्तों में एकमुश्त निकासी कर सकते थे। इसके लिए उन्हें हर बार आवेदन करना होता था। अब वे अपनी जरूरत के अनुसार निकासी तय कर सकते हैं।’
खंडागले मानते हैं कि नियमित और अनुमानित आय का स्रोत होने से सेवानिवृत्त हो चुके लोगों की वित्तीय सुरक्षा बढ़ेगी। उन निवेशकों के लिए यह अच्छा है, जिन्हें सालाना निकासी की तुलना में अधिक रकम की जरूरत होती है। लेकिन जो एकमुश्त निकासी कर अधिक तरलता वाली योजना में निवेश करने के झंझट में नहीं पड़ना चाहते।
प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी विशाल धवन कहते हैं, ‘अब वे रकम को एनपीएस में ही रहने दे सकते हैं और यह भी तय कर सकते हैं कि कितने समय बाद निकासी करते रहना है। चूंकि एनपीएस सरकारी और लागत प्रभावी साधन है इसलिए वे निवेशित रहने से अलग नहीं होंगे।’
सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और सहजमनी के संस्थापक अभिषेक कुमार की राय है, ‘एनपीएस के जो सदस्य रिटायर होने के बाद शुरुआती 15 साल में अधिक रकम चाहते हैं और राशि संभालने का झंझट भी नहीं चाहते, वे एसएलडब्ल्यू का उपयोग कर सकते हैं।’
रिटायरमेंट पर जिन्हें काफी रकम एक साथ मिल जाती है, वे अक्सर गलत जगह निवेश कर देते हैं या रकम गंवा देते हैं। कुमार का कहना है कि इस प्रस्ताव से उन्हें जोखिम से बचने में मदद मिलेगी। कई निवेशकों के पास पहले ही पेंशन, किराये, ब्याज आदि से धन आता रहता है।
धवन कहते हैं, ‘कुछ निवेशक जरूरत से ज्यादा रकम की निकासी कर सकते हैं। उनसे बेजा खर्च हो जाएगा या एनपीएस के अलावा ऐसी जगह निवेश करेंगे, जहां फायदा कम होगा।’
एन्युटी योजना से नकदी प्रवाह एसएलडब्ल्यू के मुकाबले अलग होता है। जो निवेश यह अंतर नहीं समझ पाते हैं उनके लिए एसएलडब्ल्यू से रकम निकालने का सही फैसला करना मुश्किल हो सकता है। फैसला करने से पहले सदस्यों को समझना होगा कि उन्हें नियमित तौर पर कितनी नकदी चाहिए।
धवन का कहना है, ‘उन्हें देखना चाहिए कि हर महीने उन्हें कितनी नकदी चाहिए और कितनी दूसरे स्रोतों से आती है। उसके बाद ही तय होगा कि एसएलडब्ल्यू से उन्हें कितनी निकासी करनी है।’
एब बार एसएलडब्ल्यू तय या सेट करने के बाद निवेशक अचानक जरूरत पड़ने पर एकमुश्त निकासी नहीं कर पाएंगे। उस रकम के लिए उन्हें एसएलडब्ल्यू खत्म ही करना होगा। इसलिए कुमार की राय है कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए उनके पास इमरजेंसी फंड यानी आपात कोष होना चाहिए।
रिटायर होने के बाद एनपीएस में इक्विटी के लिए कम रकम आवंटित करें। राघव समझाते हैं, ‘शेयर बाजार में गिरावट के दौरान पोर्टफोलियो से निकासी की जाती है तो निवेश की हुई रकम बहुत तेजी से कम होती जाती है। एसएलडब्ल्यू अपनाने वालों को परिसंपत्ति आवंटन पर नए सिरे से विचार करना चाहिए।’
अंततः कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि एसएलडब्ल्यू से निकासी कर मुक्त होगी क्योंकि यह रकम के उसी 60 फीसदी हिस्से से आती है, जिसे निकालने पर कर नहीं लगता।
मगर कुछ लोग कहते हैं, ‘एकमुश्त रकम 60 साल की उम्र में रिटायर होने पर निकाली जाती है तो उस पर कर नहीं लगता। लेकिन आप इसे निवेश किया हुआ ही छोड़ दें तो यह बढ़ जाएगी। बढ़ी हुई रकम पर कर विभाग कितना कर काटता है, यह देखना होगा।’