संसद की एक समिति ने उच्चतम न्यायालय के क्षेत्रीय पीठों के गठन, न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का सुझाव दिया और साथ ही भारत की न्यायपालिका में विविधता की कमी पर अफसोस जताया है।
सोमवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में समिति ने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद के कार्यों का आकलन करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसने न्यायाधीशों के सामूहिक रूप से छुट्टी पर जाने की रवायत पर भी अफसोस जाहिर किया है जो ‘औपनिवेशिक विरासत’ की देन है।
संसद में सोमवार को पेश ‘न्यायिक प्रक्रिया एवं उनका सुधार’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून पर संसद की स्थायी समिति ने कहा कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ने के साथ ही उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी खजाने से फंडिंग किए जाने वाले निकायों के लिए कार्य किए जाने का फिर से आकलन किया जाना चाहिए ताकि उनकी निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के कारण आबादी की सेहत में सुधार हुआ है और लंबी उम्र बढ़ी है। इसमें कहा गया है कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाते समय न्यायाधीशों के प्रदर्शन का आकलन उनके स्वास्थ्य की स्थिति, फैसलों की गुणवत्ता और सुनाए गए फैसलों की संख्या के आधार पर किया जाना चाहिए।
समिति ने कहा, ‘इसके लिए किसी भी न्यायाधीश का कार्यकाल बढ़ाने की सिफारिश करने से पहले उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा मूल्यांकन की एक प्रणाली तैयार की जा सकती है और उसे लागू किया जा सकता है।’
समिति ने कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सामाजिक स्थिति पर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि हमारी उच्च न्यायपालिका में ‘विविधता की कमी’ है।
इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायपालिका में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व वांछित स्तर से बहुत कम है और यह देश की सामाजिक विविधता को नहीं दर्शाता है।
समिति ने कहा, ‘हाल के वर्षों में भारतीय समाज के सभी वंचित तबकों के प्रतिनिधित्व में गिरावट आई है।’पैनल ने कहा कि उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में न्यायिक नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नागरिकों के बीच न्यायपालिका को लेकर भरोसे, विश्वसनीयता और स्वीकार्यता के स्तर को और मजबूत करेगा।