सरकारी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में प्रदूषण फैलाने वाली डीजल बसों की जगह इलेक्ट्रिक बसों (E-Buses) के इस्तेमाल के भारत के महत्त्वाकांक्षी अभियान को झटका लग सकता है। केंद्र सरकार हाल में जारी 4,675 ई-बसों की निविदा रद्द करने पर विचार कर रही है, क्योंकि इस निविदा पर सुस्त प्रतिक्रिया मिली है।
बसों की खरीद के लिए कुल मांग और उसके लिए निविदा जारी करने वाले सरकार के निकाय कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड (सीईएसएल) को मूल उपकरण विनिर्माताओं (ओईएम) की ओर से बहुत सुस्त प्रतिक्रिया मिली है। बिजनेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक नैशनल इलेक्ट्रिक बस प्रोग्राम (एनईबीपी) के तहत दूसरे चरण के लिए जारी इस निविदा में ओईएम ने रुचि नहीं दिखाई है।
बसों की खरीद के लिए 4 जनवरी, 2023 को जारी निविदा में स्थापित वाहन निर्माताओं जैसे टाटा मोटर्स, अशोक लीलैंड और पीएमआई इलेक्ट्रो मोबिलिटी की ओर से बोली नहीं मिली, इसकी वजह से निविदा रद्द होने का अनुमान लगाया जाने लगा।
किसी भी ओईएम ने बोली नहीं दाखिल की
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इस संभावना की पुष्टि करते हुए कहा, ‘किसी भी ओईएम ने बोली नहीं दाखिल की, इसलिए निविदा रद्द होने की संभावना है। भविष्य की निविदाओं के लिए हम ड्राई लीज कॉन्ट्रैक्टिंग (डीएलसी) मॉडल की समीक्षा कर रहे हैं।’ इस सिलसिले में सीईएसएल से मांगी गई जानकारी का समाचार छपने तक जवाब नहीं मिला।
ओईएम बोली में शामिल होने से बच रही हैं। इसकी वजह परिचालन लागत अधिक होने, राज्य परिवहन निगमों (एसटीयू) की वित्तीय अस्थिरता और एसटीयू का बसों के परिचालन पर नियंत्रण होने को लेकर आशंकाएं हैं।
निविदा के तहत ई-बसों की लागत ज्यादा
हालांकि डीएलसी निविदा के तहत ई-बसों की लागत ज्यादा थी, जिसकी वजह से ओईएम फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड ऐंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल स्कीम के तहत मिलने वाले प्रोत्साहन के पात्र नहीं थे।
खरीद के ड्राई लीज कांट्रैक्टिंग (डीएलसी) मॉडल में एक निर्धारित दर और ठेके की अवधि तक बसों के मालिकाना व रखरखाव की जिम्मेदारी सेवा प्रदाताओं की होती है। वहीं परिचालन की जिम्मेदारी एसटीयू की होती है। प्राधिकरण प्रति बस शुल्क (पीबी शुल्क) का भुगतान पहले से तय दर के हिसाब से करता है। यह सेवा प्रदाता के लिए प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से निर्धारित होता है।
अलग अलग बसों के प्रकार (7,9, 12 मीटर की बस, स्टैंडर्ड फ्लोर, लो फ्लोर, एसी या गैर एसी) के हिसाब से 10 से 12 साल के लिए पट्टे की अवधि तय होती है। ओईएम पूरे परिचालन व्यवस्था पर संपूर्ण नियंत्रण चाहती हैं। ऐसे में वे सकल लागत ठेके(जीसीसी) मॉडल को तरजीह दे रही हैं। इस मॉडल में प्राधिकरण पहले से तय प्रति किलोमीटर शुल्क का भुगतान करता है। जीसीसी में विभिन्न बसों की पट्टे की अवधि उसकी किस्म के मुताबिक 10 साल या 12 साल, 9 लाख किलोमीटर या 10 लाख किलोमीटर तक के लिए होती है।
निविदा की अंतिम तिथि कई बार बढ़ाई गई
ओईएम के हिस्सा न लेने की वजह से निविदा की अंतिम तिथि कई बार बढ़ाई गई, जो 9 जून को बंद हुई। सूत्रों का कहना है कि पिनाकल मोबिलिटी सॉल्यूशंस की ईकेए ने बसों के लिए बोली लगाई।
प्रवक्ता न होने का हवाला देते हुए ईकेए ने बिजनेस स्टैंडर्ड की ओर से मांगी गई जानकारी देने से इनकार कर दिया। योजना को धक्का लगने के बावजूद सरकार सार्वजनिक परिवहन में इस्तेमाल होने वाली बसों के विद्युतीकरण को लेकर दृढ़ है, क्योंकि इसका उल्लेखनीय सामाजिक और पर्यावरण संबंधी असर होगा।
सरकार के इरादे के सामने चुनौती
जून 2022 में सरकार ने 2027 तक 10 अरब डॉलर के एनईबीपी पहल के माध्यम से 50,000 ई-बसें चलाने की महत्त्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी। इस कदम से भारत को 2030 तक 40 प्रतिशत ई-बसों और 2070 तक नेट न्यूट्रलिटी का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलती।
मौजूदा स्थिति ने सरकार के इरादे के सामने चुनौती खड़ी की है। सीईएसएल ने पहले की निविदा में करीब 12,050 इलेक्ट्रिक बसों के परिणाम की घोषणा की थी, लेकिन देश में अभी सिर्फ 4,855 बसें चल रही हैं, जिसमें निविदा के बाहर बिकी हुई बसें भी शामिल हैं।
2014 से भारत में कुल 4,30,669 बसों की बिक्री हुई है, जिसमें इलेक्ट्रिक बसों की हिस्सेदारी सिर्फ 1.1 प्रतिशत है। मौजूदा निविदा रद्द होने से चिंता बढ़ी है। वहीं उम्मीद की जा रही है कि सरकार अपने तरीके की समीक्षा करेगी और सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक बसों का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए वैकल्पिक तरीकों पर विचार करेगी।