ऋणशोधन प्रक्रिया में असामान्य देरी हो रही है। वेणुगोपाल धूत के वीडियोकॉन समूह के विरुद्ध ऋणशोधन प्रक्रिया अगस्त 2019 में आरंभ हुई थी जब राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (NCLT) ने कॉर्पोरेट कर्जदारों के समेकन की इजाजत दी थी।
अक्टूबर 2019 में संभावित बोलीकर्ताओं से रुचि की अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट यानी ईओआई) आमंत्रित की गई। एक माह बाद वेदांत समूह ने अपनी ईओआई प्रस्तुत की और इसके एक वर्ष बाद यानी नवंबर 2020 में वेदांत समूह की कंपनी ट्विन स्टार टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (टीएसटीएल) ने अंतिम समाधान योजना पेश की। यह 2,962 करोड़ रुपये की बोली थी जिसमें अपरिवर्तनीय डिबेंचर शामिल थे।
दिसंबर 2020 में टीएसटीएल को सफल बोलीकर्ता माना गया। ऋणदाताओं की समिति ने समाधान योजना मंजूर की और 95.09 फीसदी ने इसका समर्थन किया। एनसीएलटी ने जून 2021 में मंजूरी दे दी लेकिन जनवरी 2022 में राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील पंचाट (एनसीएलएटी) ने उसके आदेश को पलट दिया।
टीएसटीएल ने तत्काल सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, लेकिन दो वर्ष बाद भी हालात जस के तस हैं। अप्रैल 2023 में टीएसटीएल ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि वह वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के पूर्व चेयरमैन वेणुगोपाल धूत की अपील को खारिज कर दे। धूत ने वीडियोकॉन को समूह की 12 कंपनियों के साथ अधिग्रहीत करने की दिवालिया अदालत से मंजूर बोली के खिलाफ अपील की थी।
धूत ने टीएसटीएल की बोली को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देते हुए यह मांग की कि बैंकों को उनकी 31,789 करोड़ रुपये की समाधान योजना स्वीकारने को कहा जाए। ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) अगस्त 2016 में आई थी।
माना जा रहा था कि इसके आने के बाद संकटग्रस्त कंपनियों और फंसी परिसंपत्तियों का समाधान आसान होगा। उस समय तक दिवालिया प्रक्रिया कई कानूनों और कई मंचों में बंटी थी जिसमें वित्तीय संपत्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्गठन, ऋणवसूली पंचाट, लोक अदालत और रिजर्व बैंक की कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन योजना आदि शामिल थीं।
नए कानून के तहत सितंबर 2016 में आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड ने एक स्टील उत्पादक कंपनी के खिलाफ मामला दाखिल किया जिस पर 955 करोड़ रुपये का कर्ज था। जून 2017 तक रिजर्व बैंक ने ऐसे 12 देनदारों की सूची बनाई जिनके खिलाफ वह तत्काल दिवालिया प्रक्रिया चाहता था।
इसके बाद अगस्त 2017 में 28 देनदारों की नई सूची आई। दोनों सूची को जोड़कर देखा जाए तो ये कुल मिलाकर भारतीय बैंकिंग तंत्र के 10 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज में 50 फीसदी से अधिक के लिए जिम्मेदार थे। शुरुआती दिनों में सब ठीक था। परंतु बीते कुछ सालों में यह प्रक्रिया काफी धीमी पड़ी है। अपर्याप्त बुनियादी ढांचा तो कई दिक्कतों में से एक है जिसके चलते मामलों के निपटारे की अवधि बढ़ती जा रही है और रिकवरी का मूल्य कम हो रहा है।
एक बार देनदारी चूकने वाली की पहचान होने के बाद कर्जदाताओं की समिति समाधान पेशेवर (आरपी) चुनती है ताकि मामले की निगरानी की जा सके।
अगले चरण में सूचना ज्ञापन तैयार कर संभावित बोलीकर्ताओं से ईओआई मंगाया जाता है। बोलीकर्ताओं की अर्हता का आकलन करने के बाद बोली का आकलन किया जाता है और उपयुक्त समाधान योजना चुनी जाती है। कर्जदाता समिति मंजूरी के लिए एनसीएलटी के पास जाती है।
आईबीसी की धारा 20 के अनुसार आरपी को परिसंपत्तियों के मूल्य की सुरक्षा और संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करने और देनदारों के संचालन को एक चालू संस्था के रूप में प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
यह धारा आरपी को इस बात की भी इजाजत देती है कि वे ऋणशोधन प्रक्रिया के दौरान अंतरिम वित्त जुटाएं। समाधान योजना लागू होने के बाद ऐसे फाइनेंसरों को प्राथमिकता के आधार पर भुगतान किया जाता है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की नवंबर 2023 की रिपोर्ट के अनुसार रिकवरी दर मार्च 2019 के 43 फीसदी से गिरकर सितंबर 2023 में 32 फीसदी पर आ गई जबकि इस दौरान औसत समाधान अवधि दोगुनी बढ़कर 324 दिन से 653 दिन हो गई। वैसे आईबीसी में समाधान पूरा करने की तय अवधि 270 दिन है जिसे कुछ शर्तों के अधीन बढ़ाया जा सकता है।
फरवरी 2024 में वित्तीय मामलों की स्थायी समिति की 67वीं रिपोर्ट में आईबीसी के डिजाइन की समीक्षा की बात कही गई। समिति ने पाया कि वास्तविक रिकवरी 25 से 30 फीसदी के बीच है और कुछ मामलों में समाधान में दो साल तक का समय लगा जो बहुत अधिक था।
आईबीसी के बनने के बाद से 6,815 मामले एनसीएलटी के पास गए और इनमें से 2,827 मामले यानी 41 फीसदी मामले अभी भी समाधान प्रक्रिया में हैं। औसत समाधान अवधि बढ़कर तीन वर्ष से अधिक हो चुकी है।
दिसंबर 2023 तक इनमें से 891 मामले हल हुए थे। वित्तीय कर्जदाताओं के 9.09 लाख करोड़ रुपये के दावे के बरअक्स 3.1 लाख करोड़ रुपये का निपटान हुआ। 2,376 मामलों की परिणति नकदीकरण के रूप में हुई जबकि 721 का स्वैच्छिक नकदीकरण हुआ।
भारतीय ऋणशोधन और दिवालिया बोर्ड (आईबीबीआई) ने अनुशंसा की थी कि स्वैच्छिक मध्यस्थता की मदद से विवादों का निपटारा किया जाए। पूर्व विधि सचिव टीके विश्वनाथन की अध्यक्षता वाले पैनल ने 129 पन्नों की रिपोर्ट जनवरी में पेश की जिसमें कहा गया कि मध्यस्थता विवाद निस्तारण की पूरक व्यवस्था हो सकती है। इस बीच ऋणशोधन कानून समिति की पांचवी रिपोर्ट जो मई 2022 में पेश की गई वह भी अभी लंबित है।
इसमें समाधान और नकदीकरण प्रक्रिया को समय पर पूरा करने तथा परिसंपत्ति का अधिकतम मूल्य हासिल करने के लिए कुछ दिलचस्प अनुशंसाएं की गई हैं। जनवरी 2021 में एक अन्य समिति ने ऐसी दिवालिया प्रक्रिया की बात की जहां कंपनी के दिवालिया घोषित होने के पहले ही पुनर्गठन योजना तैयार कर ली जाती है। इसे ‘प्रीपैक’ कहा जाता है। अमेरिका में अक्सर इनका इस्तेमाल किया जाता है। फिलहाल यह व्यवस्था सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रम क्षेत्र तक सीमित है।
एक अन्य प्रस्ताव कंपनी मामलों के मंत्रालय के जनवरी 2023 के चर्चा पत्र में है जो रियल एस्टेट कंपनियों के मामले में परियोजना के आधार पर ऋणशोधन समाधान की बात करता है। नई सरकार के गठन के बाद जुलाई में इन अनुशंसाओं को सदन में पेश किया जा सकता है। प्रीपैक के एमएसएमई के लिए इस्तेमाल के अलावा हमें दिवालिया समाधान के लिए अदालत के बाहर निपटारे की अधिक मजबूत प्रक्रियाएं देखने को मिल सकती हैं। फिलहाल प्रक्रिया को अधिक किफायती बनाना तथा अदालतों का दखल कम करना सरकार की प्राथमिकता में नजर आ रहा है।
मोटे तौर पर आईबीसी उद्देश्य पूर्ति में कामयाब रहा है क्योंकि इससे गलत प्रवर्तकों में भय उत्पन्न हुआ है। देनदारी में चूक करने वाले कई लोग चर्चा के लिए तैयार हुए हैं। लेकिन समय के साथ चतुर प्रवर्तकों ने कानून को धता बनाना सीख लिया। अब समय आ गया है कि इस कानून की कमियों को दूर किया जाए और देनदारी चूकने वाले भी समझें कि आईबीसी नख दंत विहीन नहीं है।