इस साल की शुरुआत में आंध्र प्रदेश में दो दिवसीय वैश्विक निवेश सम्मेलन में भारतीय और विदेशी कंपनियों ने 13.05 लाख करोड़ रुपये के 352 समझौते (एमओयू) किए। इससे 6 लाख से अधिक नौकरियां मिलेंगी। पिछले साल नीति आयोग की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (कारोबारी सुगमता) में राज्य पहले स्थान पर था।
राज्य सरकार अब निजी कंपनियों के साथ साझेदारी कर रही है ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा में सुधार आ सके और उन्हें सूचना प्रौद्योगिकी, बंदरगाहों आदि जैसे क्षेत्रों की नौकरियां मिल सके।
यह महज कोई इरादा नहीं है बल्कि सरकार ने इसके लिए आदेश भी निकाला है। राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निंग (एमएल), लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (एलएलएम), डेटा एनालिटिक्स, वेब 3.0, ऑगमेंटेड रियल्टी, वर्चुअल रिटल्टी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा, 3डी प्रिंटिंग और यहां तक कि गेमिंग को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है।
पाठ्यक्रम और संबंधित बुनियादी ढांचे तो तय करने के लिए लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित की और इसमें शीर्ष बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। समिति में माइक्रोसॉफ्ट के निदेशक और कंट्री हेड (सरकारी मामलों और सार्वजनिक नीति) आशुतोष चड्ढा, एमेजॉन वेब सर्विसेज इंडिया की प्रेसिडेंट और चीफ टेक्नोलॉजिस्ट शालिनी कपूर, इंटेल में एशिया-प्रशांत और जापान (एपीजे) की वरिष्ठ निदेशक श्वेता खुराना और नैसकॉम के प्रतिनिधि शामिल थे। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार इन निजी कंपनियों के साथ गठजोड़ करने की तलाश कर रही है।
आंध्र प्रदेश स्कूली शिक्षा के प्रधान सचिव प्रवीण प्रकाश ने कहा, ‘ये निजी कंपनियां दीर्घकालिक भागीदारी के लिए साथ हैं। हम नई पीढ़ी की प्रौद्योगिकी से संबंधित कौशल लागू करना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हमारे प्रदेश में पढ़ने वाले बच्चे नौकरी हासिल करने में अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे रहें।’ प्रदेश में 44,512 सरकारी स्कूल हैं। उल्लेखनीय है कि निजी कंपनियों में स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी आरक्षण करने वाला पहला राज्य आंध्र प्रदेश था। हालांकि, इसकी आलोचना की गई क्योंकि सरकार के इस कदम से निजी निवेशकों को कुशल श्रमिकों तक पहुंच मुश्किल हो जाएगी।
पहले कदम के तौर पर सरकार बच्चों की अंग्रेजी भाषा में सुधार करने पर ध्यान दे रही है। इसके लिए सरकार ने बीते 23 जून को तीसरी से 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए विदेशी भाषा के रूप में अंग्रेजी की परीक्षा (टॉफेल) के लिए अमेरिका की एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस (ईटीएस) के साथ समझौता किया है। एक अनुमान के अनुसार, इससे राज्य में पढ़ने वाले करीब 30 लाख बच्चों को फायदा मिलेगा। इनमें 12,45191 प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र हैं और 17,56,566 माध्यमिक स्कूलों में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी हैं।
यह तब हुआ है कि जब सरकार ने सभी स्कूलों के छात्रों के लिए विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और गणित विषय के लिए बैजूस की ऑडियो-विजुअल द्विभाषीय सामग्री शुरू की। सरकार ने पिछले साल आठवीं कक्षा के छात्रों को बैजूस से पढ़ाई करने के लिए 5,18,740 टैब भी दिए थे। प्रकाश कहते हैं, ‘आंध्र प्रदेश में हर साल आठवीं कक्षा में 4 से 4.5 लाख छात्र पढ़ाई करते हैं। हर साल हम इन छात्रों को टैब मुहैया कराएंगे।’ खबरों के मुताबिक, बैजूस सरकार को करीब 778 करोड़ रुपये की सामग्री निःशुल्क दे रही है।
इस साल ने सरकार ने सीखने और बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए महत्त्वपूर्ण नाडू नेडु कार्यक्रम के तहत उच्च विद्यालयों में 30,213 इंटरएक्टिव फ्लैट पैनल (आईएफपी) और प्राथमिक विद्यालयों में 10,038 स्मार्ट टीवी लगवाए हैं। यह कार्यक्रम दिसंबर के अंत तक पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है। नई पहल साल 2019-20 में सभी सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का भी हिस्सा है, जिससे करीब 41 लाख छात्र लाभान्वित हो रहे हैं।
हालांकि, विपक्षी दल तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) इसकी मुखालफत कर रही है। पार्टी को सरकारी परियोजना में घाटे में चल रही बैजूस की भागीदारी और अंग्रेजी भाषा पर ध्यान केंद्रित करने को लेकर चिंता सता रही है। बैजूस की मूल कंपनी थिंक ऐंड लर्न के ऑडिटर डेलॉयट हैस्किन्स और सेल्स एलएलपी के साथ तीन बोर्ड सदस्यों के इस्तीफे के कारण बैजूस अभी कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की जांच के दायरे में है। वित्त वर्ष 2021 में बैजूस को 4,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था और कंपनी ने अभी तक वित्त वर्ष 2022 के वित्तीय नतीजे नहीं बताए हैं।
तेदेपा के विधायक डोला श्री बाला वीरान्जनेय स्वामी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘राज्य सरकार बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के खिलाफ है, जिससे गरीब छात्रों को विषय को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलती। इसके अलावा सरकार वैसी कंपनी पर क्यों निर्भर है, जो घाटे में चल रही है और कई आरोपों से भी घिरी है।’
इससे पहले भी तेदेपा ने सैमसंग टी220 लाइट टैबलेट की खरीदा का मुद्दा उठाया था। उसने आरोप लगाया था कि ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म पर जिस एक टैबलेट की कीमत 11,999 रुपये है उसे सरकार ने 13,262 रुपये देकर खरीदा है। उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा विभाग इस सौदे के तहत 187 करोड़ रुपये की बचत की।
इसमें टैबलेट के साथ तीन साल की वारंटी और बैटरी, तीन साल के लिए मोबाइल डिवाइस मैनेजमेंट, ओटीजी केबल,फ्लिप कवर और 64 जीबी के मेमरी कार्ड की कीमत कुल मिलाकर एक टैबलेट के लिए 12,843 रुपये पड़ा, जबकि बाजार में इसकी कीमत 16,446 रुपये प्रति टैबलेट है।
इसके विपरीत, उद्योग के जानकार निजी क्षेत्र की भागीदारी को लेकर उत्साहित दिख रहे हैं। उनका कहना है कि पाठ्यक्रम में एआई और चैटजीपीटी शुरू करने को लेकर अधिक विचार-विमर्श करने की जरूरत है। ऑनलाइन करियर काउंसिलिंग और शिक्षा सेवा फर्म करियर्स360 के संस्थापक माहेश्वरी पेरी ने कहा, ‘ऐसा सहयोग समय की मांग है। सरकार तकनीकी सामग्री बनाने के कारोबार में नहीं है। अगर सामग्री का कोई समूह बनाया गया है और इसका उपयोग किया जा सकता है तो इसका उपयोग होना चाहिए।’
पेरी ने कहा कि नई विषयों की शुरुआत पर और अधिक चर्चा करने की जरूरत है। चैटजीपीटी जैसे उपकरण चीटिंग करने के लिए नहीं उपयोग किे जाने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमें इस पर चर्चा करनी चाहिए कि किस स्तर पर इसे शुरू करना है और कितना शुरू करना है। अगर छात्र चैटजीपीटी से सवाल पूछने लगेंगे और जवाब देने लगेंगे तो फिर इसका कोई फायदा नहीं होगा।’
विपक्षी दलों की चाहे जो भी राय हो मगर छात्र इससे खुश हैं। पेनामालरू के जिला परिषद् हाईस्कूल के आठवीं कक्षा के छात्र रोहित के ने कहा, ‘टैब के अलावा हम छात्रों के लिए अब इंटरैक्टिव पैनल वाले डिजिटल कक्षाएं है, जिससे हम किसी भी पाठ को बड़ी स्क्रीन पर आसानी से समझ सकते हैं। हमें बैजूस के कंटेंट भी मिल रहे हैं, जिससे मुझे कठिन विषयों को आसानी से और बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलती है। अब मैं टॉफेल कक्षा का इंतजार कर रहा हूं।’
इसमें शामिल स्कूलों की बड़ी संख्या को देखते हुए, राज्य सरकार की सबसे बड़ी चुनौती कुशल क्रियान्वयन को लेकर हो सकती है।