बड़ी तकनीकी कंपनियों को नियमन दायरे में लाने और डिजिटल बाजार में प्रतिस्पर्धा-रोधी प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए वित्त पर संसद की स्थायी समिति ने भावी अनुमान पर आधारित नियमों की आवश्यकता बताई। समिति ने पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी डिजिटल व्यवस्था के लिए ‘डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून’ बनाने का भी सुझाव दिया।
जयंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति ने कहा कि सरकार को रणनीतिक महत्व वाले डिजिटल मध्यस्थ (एसआईडीआई) के लिए तार्किक परिभाषा तय करने और सख्त नियमन बनाने की जरूरत है। समिति ने सुझाव दिया कि ऐसी फर्मों का वर्गीकरण राजस्व, बाजार पूंजीकरण और सक्रिय उपयोगकर्ताओं की संख्या के आधार पर किया जा सकता है।
समिति ने यह भी कहा कि भारत के प्रतिस्पर्धा कानून का दायरा बढ़ाए जाने की जरूरत है, जिससे भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) को नई जिम्मेदारियां उठाने के लिए और शक्तियां मिल सकें। समिति ने सुझाव दिया कि सीसीआई के अंतर्गत विशेष डिजिटल मार्केट इकाई गठित करनी चाहिए, जिसमें कुशल विशेषज्ञ, शिक्षाविद और वकील शामिल हों। इससे आयोग को मौजूदा एसआईडीआई और अन्य उभरते एसआईडीआई पर करीब से नजर रखने में मदद मिलेगी।
स्थायी समिति ने कहा, ‘इन एसआईडीआई को साल में एक बार सीसीआई के पास रिपोर्ट जमा करानी होगी, जिसमें अनिवार्य बाध्यताएं लागू करने के लिए किए गए उपायों का पूरा ब्योरा होगा। इन इकाइयों को अपनी वेबसाइट पर इस रिपोर्ट का संक्षिप्त विवरण भी प्रकाशित करना चाहिए। सरकार, सीसीआई और हितधारकों को एसआईडीआई को परिभाषित करने के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए।’
यह रिपोर्ट तब आई है जब दुनिया भर में इस बात की जांच चल रही है कि गूगल, ऐपल, फेसबुक और एमेजॉन जैसी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां बाजार में अपने दबदबे का कथित दुरुपयोग कर यूजर्स का डेटा इस्तेमाल करती हैं। इस साल की शुरुआत में सीसीआई ने गूगल पर दो अलग-अलग मामलों में 936.44 करोड़ रुपये और 1,337.76 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।
सदन में पेश रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि डिजिटल बाजार में कब्जा जमाने के प्रयास में बड़ी कंपनियां प्रतिस्पर्धा को दबाने वाले काम करती हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में इसका भी उल्लेख किया है कि उसने प्रतिस्पर्धा संबंधी चिंता को समझने के लिए एमेजॉन, ऐपल, फेसबुक, गूगल, नेटफ्लिक्स, ट्विटर और उबर जैसी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के भारतीय प्रतिनिधियों से बात की है। साथ ही पेटीएम, मेकमाईट्रिप, जोमैटो, ओला, स्विगी और फ्लिपकार्ट जैसी घरेलू कंपनियों के प्रतिनिधियों से भी चर्चा की है।
रिपोर्ट में ऐसी कंपनियों के लिए अतिरिक्त दायित्व की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा गया है, ‘समिति की राय है कि भारत को अग्रणी या बाजार में वर्चस्व वाली उन कंपनियों की पहचान करनी चाहिए, जो डिजिटल परिवेश में प्रतिस्पर्धात्मकता पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।’
समिति ने 10 प्रतिस्पर्धारोधी प्रथाओं की पहचान की है। इनमें एंटी-स्टीयरिंग प्रावधान, खुद को तरजीह देना, सेवाओं की बंडलिंग, भारी छूट और सर्च अथवा रैंकिंग तरजीह आदि शामिल हैं।
समिति ने पाया कि डिजिटल बाजार का आकार तेजी से बढ़ रहा है, जिसे मुख्य तौर पर उसकी लर्निंग और नेटवर्किंग क्षमता से बल मिल रहा है। समिति के अनुसार महज तीन से पांच साल में ही डिजिटल बाजारों का एकाधिकार हो गया है। इसलिए उसके विनियमन की तत्काल आवश्यकता है।
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समिति ने कहा कि एसएसआईडी को ऐसे तीसरे पक्ष की सेवाओं का उपयोग करते हुए उपयोगकर्ताओं के डेटा की प्रॉसेसिंग को रोकना चाहिए, जो उनकी प्रमुख सेवाओं का उपयोग करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्लेटफॉर्म की संबंधित प्रमुख सेवा से व्यक्तिगत डेटा को अन्य सेवा प्रदाताओं के डेटा के साथ एकीकृत करने पर बाजार में अनुचित माहौल तैयार होगा। समिति ने रिपोर्ट तैयार करने से पहले बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ कई दौर की बैठक की थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में व्हाट्सएप की गोपनीयता नीति अपडेट की सीसीआई जांच का निर्देश दिया था। व्हाट्सएप पर अपनी मूल कंपनी फेसबुक के विज्ञापन कारोबार को उपयोगकर्ताओं का डेटा साझा करने का आरोप है। गूगल, मेटा, एमेजॉन और ऐपल ने इस बाबत जानकारी के लिए बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया।