इलेक्ट्रिक दोपहिया विनिर्माता जीएसटी संरचना में सुधार चाह रहे हैं, क्योंकि वे इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर कम आउटपुट जीएसटी (पांच प्रतिशत) की तुलना में कलपुर्जों पर अधिक इनपुट जीएसटी (18 से 28 प्रतिशत) का दावा करते हैं। इससे उलट शुल्क संरचना बनती है, जिससे विनिर्माताओं की पूंजी फंस जाती है।
उद्योग का मानना है कि उद्योग के लिए यह बड़ी चिंता का विषय है, खास तौर पर स्टार्टअप कंपनियों के लिए क्योंकि इससे लागत बढ़ जाती है और कार्यशील पूंजी का प्रबंधन करना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने जीएसटी अनुपालन सुनिश्चित करने और संभावित रूप से इनपुट कर दर कम करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों, सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं तथा तीव्र रिफंड की आवश्यकता पर जोर दिया है।
इस असमानता से ‘उलट शुल्क संरचना’ बनती है जहां इनपुट पर भुगतान किया गया कर बिक्री पर एकत्रित किए गए कर से अधिक होता है। इस स्थिति से विनिर्माताओं की कार्यशील पूंजी अटक जाती है क्योंकि उन्हें पुर्जों पर भुगतान किए गए अतिरिक्त कर पर रिफंड का इंतजार करना पड़ता है। इस कर संरचना से ईवी की विनिर्माण लागत भी बढ़ जाती है।
उद्योग की कंपनियां ईवी के प्रमुख पुर्जों पर जीएसटी दरों में कटौती की मांग कर रही हैं ताकि उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों पर अंतिम बिक्री कर के अनुरूप किया जा सके। इस कदम से ईवी विनिर्माताओं पर वित्तीय बोझ काफी कम हो जाएगा जिनमें से कई सीमित संसाधनों वाली स्टार्टअप कंपनियां हैं।
ओबेन इलेक्ट्रिक की संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी मधुमिता अग्रवाल ने कहा, ‘हमारे जैसे ओईएम के लिए जीएसटी की सपाट संरचना, जहां पुर्जों पर कर दर तैयार वाहनों पर कर दर के समान हो, एक बड़ी राहत होगी।’