facebookmetapixel
भारत-अमेरिका व्यापार समझौता जल्द हो सकता है फाइनल, अधिकारी कानूनी दस्तावेज तैयार करने में जुटेसरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को तोहफा! इस राज्य सरकार ने DA-DR बढ़ाने का किया ऐलान, जानें डिटेलऑफिस किराए में जबरदस्त उछाल! जानें, दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु – किस शहर में सबसे तेज बढ़े दाम?HUL vs Nestle vs Colgate – कौन बनेगा FMCG का अगला स्टार? जानें किस शेयर में है 15% तक रिटर्न की ताकत!EPF खाताधारकों को फ्री में मिलता है ₹7 लाख का कवर! जानें इस योजना की सभी खासियतPiyush Pandey Demise: ‘दो बूंद जिंदकी की…’ से लेकर ‘अबकी बार, मोदी सरकार’ तक, पीयूष पांडे के 7 यादगार ऐड कैम्पेनदिवाली के बाद किस ऑटो शेयर में आएगी रफ्तार – Maruti, Tata या Hyundai?Gold Outlook: जनवरी से फिर बढ़ेगा सोना! एक्सपर्ट बोले- दिवाली की गिरावट को बना लें मुनाफे का सौदाGold ETF की नई स्कीम! 31 अक्टूबर तक खुला रहेगा NFO, ₹1000 से निवेश शुरू; किसे लगाना चाहिए पैसाब्लैकस्टोन ने खरीदी फेडरल बैंक की 9.99% हिस्सेदारी, शेयरों में तेजी

PM ई-ड्राइव योजना में इलेक्ट्रिक ट्रक खरीदारों को नहीं मिल रहा कबाड़ प्रमाणपत्र, उद्योग में नाराजगी

इलेक्ट्रिक ट्रक पर पीएम ई-ड्राइव योजना के नियम उद्योग को रास नहीं आ रहे हैं क्योंकि स्क्रैप सर्टिफिकेट, मूल्य सीमा और लोकलाइजेशन जैसे मुद्दे अड़चन बन रहे हैं।

Last Updated- July 22, 2025 | 11:01 PM IST
hydrogen trucks India
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

इलेक्ट्रिक ट्रकों के लिए इस महीने शुरू की गई केंद्र सरकार की पीएम ई-ड्राइव योजना वाणिज्यिक वाहन विनिर्माताओं को रास नहीं आ रही है। यह योजना एन2 (3.5 से 12 टन के मालवाहक वाहन) और एन3 (12 टन से ऊपर) श्रेणी के वाहनों के लिए अधिसूचित की गई थी। बिज़नेस स्टैंडर्ड को पता चला है कि इस योजना के तहत लाभ के लिए कबाड़ प्रमाणपत्र की जरूरत होती है जबकि खरीदारों के लिए यह बमुश्किल उपलब्ध होता है।

योजना का लाभ लेने के लिए खरीदार को अपना पुराना वाहन कबाड़ (स्क्रैप) में देना होगा ताकि उसे इसका प्रमाणपत्र मिल सके। इसका उपयोग उसी श्रेणी का या उससे कम क्षमता वाला नया इलेक्ट्रिक ट्रक खरीदने पर प्रोत्साहन का दावा करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि जिनके पास कबाड़ में देने के लिए पुराने वाहन नहीं हैं वह सरकार के डिजीईएलवी पोर्टल से सीडी खरीद सकता है। मगर पोर्टल पर ऐसा प्रमाणपत्र मुश्किल से उपलब्ध होता है। सोमवार रात 10 बजे तक एन2 श्रेणी में केवल एक प्रमाणापत्र उपलब्ध था जबकि एन3 श्रेणी में एक भी नहीं।

इसके अलावा कीमत भी इस योजना के आड़े आ रही है। योजना के तहत 1.25 करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाले ई-ट्रक पर प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती है। उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि यह मूल्य सीमा फिलहाल तैयार हो रहे कई ई-ट्रक को योजना के दायरे से बाहर कर देती है। एन3 ट्रक और विशेष एन2 टिपर में बड़े बैटरी पैक की जरूरत होती है जिसकी वजह से उसकी कीमत भी बढ़ जाती है। सीडी की कमी और मूल्य सीमा के अलावा योजना के तहत आर्थिक प्रोत्साहन भी अपेक्षाकृत कम है। इस योजना की समयसीमा 31 मार्च, 2026 तय की गई है।

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सरकारी अधिकारी इन चिंताओं से वाकिफ थे। 10 जुलाई को नियम अधिसूचित होने से पहले 23 मई को भारी उद्योग मंत्रालय के अधिकारियों और वाहन विनिर्माताओं के संगठन सायम के बीच एक बैठक हुई थी जिसमें उद्योग ने इन सभी मुद्दों को उठाया था। इस बारे में जानकारी के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और भारी उद्योग मंत्रालय से संपर्क किया गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।

योजना के तहत ई-ट्रकों पर बैटरी क्षमता के हिसाब से 5,000 रुपये प्रति किलोवाट घंटा या एक्स-फैक्टरी कीमत की 10 फीसदी प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इसके साथ ही ई-ट्रकों पर एन 2 श्रेणी के लिए 2.7 से 3.6 लाख रुपये और एन3 वाहनों के लिए 7.8 से 9.3 लाख रुपये अधिकतम प्रोत्साहन राशि तय की गई है। हालांकि सायम ने सिफारिश की थी कि प्रोत्साहन 10,000 रुपये प्रति किलोवाट घंटा या एक्स-फैक्टरी कीमत की 20 फीसदी (जो भी कम हो) होना चाहिए जैसा कि ई-बसों को मिलती है। अधिकतम प्रोत्साहन सीमा हटाने का भी आग्रह किया गया था।

एक वाणिज्यिक वाहन कंपनी के एक कार्याधिकारी ने बताया कि ई-ट्रकों को ई-बसों की तुलना में भारी बैटरी की आवश्यकता होती है और इसलिए वे अधिक महंगे होते हैं। उन्होंने कहा कि प्रोत्साहन ढांचे में इसे प्रतिबिंबित होना चाहिए। पीएम ई-ड्राइव योजना के तहत ई-बसों को 10,000 रुपये प्रति किलोवाट और एक्स-फैक्टरी कीमत का 20 फीसदी तक प्रोत्साहन मिलता है जो अधिकतम 35 लाख रुपये तक है।

एक अन्य कार्याधिकारी ने कहा, ‘अगर ई-बसों के लिए अधिकतम सीमा 35 लाख रुपये है तो ई-ट्रकों के लिए सीमा 9.3 लाख रुपये रखना समझ से परे है, खास कर जब ई-ट्रकों की कीमत समान वजन श्रेणी में बसों से अधिक है। 10 जुलाई के दिशानिर्देश किसी भी ई-ट्रक को जिसकी एक्स-फैक्टरी कीमत 1.25 करोड़ रुपये से अधिक है, प्रोत्साहन प्राप्त करने से अयोग्य घोषित करते हैं। उद्योग के अधिकारियों के अनुसार यह सीमा ई-ट्रकों के एक बड़े हिस्से को योजना से बाहर कर देती है। 

दिशानिर्देश के अनुसार प्रोत्साहन के लिए आवश्यक है कि एन2 ई-ट्रकों में ऐसे ट्रैक्शन मोटर्स का उपयोग हो जो लोकलाइजेशन मानदंडों को पूरा करते हैं। लोकलाइजेशन मानदंडों को पूरा करने का अर्थ है कि चुंबक, रोटर, शाफ्ट, बेयरिंग और कनेक्टर जैसे प्रमुख पुर्जे भारत में असेंबल किए जाने चाहिए। हालांकि अधिकारियों ने कहा कि इस लक्ष्य को पूरा करना संभव नहीं है, खास कर दुर्लभ खनिजों पर चीन के निर्यात प्रतिबंधों के कारण। 

एन 3 ट्रकों में ट्रैक्शन मोटर के लिए स्थानीयकरण मानदंड 1 मार्च, 2026 से शुरू होने वाले हैं। मगर उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि यह समय सीमा भी वास्तविक प्रतीत नहीं होती है। उनके अनुसार एन3 ट्रकों के लिए ट्रैक्शन मोटर आपूर्ति श्रृंखला अभी तक भारत में विकसित नहीं हुई है। सायम ने सरकार को बताया था कि स्थानीयकरण में कम से कम 15 से 21 महीने लगेंगे और इसके लिए काफी निवेश की जरूरत है। एन3 श्रेणी के ई-ट्रक बिक्री की संख्या को देखते हुए इतना निवेश तार्किक नहीं है।

पीएम ई-ड्राइव प्रोत्साहन का लाभ लेने के लिए कंपनी को पहले अपने ई-ट्रक का परीक्षण नामित एजेंसी से करवाना होगा जो एक प्रमाण पत्र जारी करेगी। फिर भारी उद्योग मंत्रालय अंतिम अनुमोदन देने से पहले प्रमाण पत्र का सत्यापन करेगा। उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि इस प्रक्रिया के किसी भी चरण के लिए कोई निश्चित समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। पीएम ई-ड्राइव योजना 31 मार्च, 2026 को समाप्त हो रही है और सरकार की योजना तब तक 5,643 ई-ट्रकों के लिए 500 करोड़ रुपये वितरित करने की है।

First Published - July 22, 2025 | 10:36 PM IST

संबंधित पोस्ट