वाहनों के कलपुर्जा बनाने वाली कंपनियां अपने निर्यात को बढ़ाने और आयात को घटाने की कोशिश कर रही हैं। इससे उन्हें मुद्रा बाजार के उतार-चढ़ाव के जोखिम से निपटने और आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।
वाहन कलपुर्जा बनाने वाली प्रमुख कंपनी के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि अगले दो से पांच वर्षों के दौरान निर्यात में काफी तेजी आएगी। जबकि पहले ये कंपनियां आमतौर पर आंतरिक बाजार पर ही केंद्रित रहती थी। हालांकि ये कंपनियां अधिक मात्रा में आयात करना जारी रखेंगी लेकिन उनकी नजर सस्ते उत्पादों के आयात पर होगी क्योंकि अधिक लॉजिस्टिक एवं बिजली लागत के कारण भारत में कारोबार उनके लिए वित्तीय रूप से व्यावहारिक नहीं रह जाता है।
बेंगलूरु की कंपनी संसेरा इंजीनियरिंग के संयुक्त प्रबंध निदेशक एफआर सिंघवी ने कहा कि उनकी कंपनी प्रमुख इंजन पुर्जों का विनिर्माण और आपूर्ति करती है। उन्होंने कहा कि वह अब अपने राजस्व में निर्यात की हिस्सेदारी को बढ़ाकर वित्त वर्ष 2022 तक एक तिहाई करना चाहती है जो फिलहाल 28 फीसदी है। सिंघवी ने कहा, ‘आत्मनिर्भर होने का मतलब अधिक निर्यात करना और कम आयात करना है। आप भारत में सबकुछ नहीं बना सकते क्योंकि वह व्यावहारिक नहीं होगा।’ उन्होंने कहा कि कम मूल्य वाले उत्पादों के चीन जैसे देशों से आयात करने पर भारत के मुकाबले 33 फीसदी कम खर्च किया जा सकता है। ऐसे उत्पादों का हमेशा आयात किया जाएगा क्योंकि उस देश में जिस पैमाने पर उसका उत्पादन होता है वैसा भारत में नहीं है। उन्होंने कहा कि वाहन कंपनियों द्वारा अलॉय व्हील्स का बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है।
भारत में वाहनों के कलपुर्जे का उद्योग ने वित्त वर्ष 2020 में 1.09 लाख करोड़ रुपये का आयात किया गया जबकि एक साल पहले यह आंकड़ा 1.23 लाख करोड़ रुपये रहा था। वाहन कलपुर्जा विनिर्माताओं के संगठन एक्मा के अनुसार, आयात की भागीदारी फिलहाल करीब 31.2 फीसदी है।
