डेटा सेंटर कंपनियां 2024 तक अपने बिजनेस को बढ़ाकर दोगुना करेगी जबकि इनकी सेवाओं की बढ़ती मांग के कारण रियल एस्टेट सेक्टर को मदद मिलेगी। मंगलवार को आई दो रिपोर्ट में यह बताया गया है। जेएलएल (JLL) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 की पहली छमाही में डेटा सेंटर की क्षमता 637 मेगावाट है जिसमें 2021 के 551 मेगावाट की तुलना में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत के डेटा सेंटर बाजार का 75 फीसदी हिस्सा मुंबई, बैंगलोर और चेन्नई में है। बाकी बचा हुआ दिल्ली-एनसीआर, पुणे, हैदराबाद और कोलकाता में हैं।मुंबई के पास डेटा भंडारण की अधिक क्षमता है। इसके बाद बैंगलोर, चेन्नई और दिल्ली-एनसीआर का स्थान है। डेटा सेंटर में निवेश बढ़ रहा है। जिसके 2025 तक 20 अरब डॉलर पार कर जाने की उम्मीद हैं। JLL के मुख्य अर्थशास्त्री और रिसर्च हेड सामंतक दास ने कहा कि मुंबई के पास डेटा भंडारण की अधिक क्षमता है। जिस कारण से वहां अधिक जमीन की मांग होगी। मुबंई में 40.6 लाख वर्ग फुट, चेन्नई में 10.9 लाख वर्ग फुट और एनसीआर-दिल्ली में 7 लाख वर्ग फुट की मांग होगी। JLL ने कहा कि क्लाउड सेवा डेटा सेंटर के विकास को और बढ़ाएगी। जिससे अगले ढाई वर्षों में 70.8 लाख वर्ग फुट जमीन की मांग बढ़ेगी। सीबीआरई(CBRE) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 से 2021 के बीच बिग डीसी ने सबसे अधिक निवेश किया है। इसने कुल हुए निवेश का 77 फीसदी अकेले किया है। पश्चिम बंगाल को इस निवेश का सबसे अधिक फायदा मिला। इसके बाद उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु को इस निवेश का लाभ मिला। colocation DC में आए आधे से अधिक निवेश तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना को मिले। बाकी बचा हुआ निवेश देश के अन्य राज्यों को मिला। सीबीआरई ने बताया कि 2024 तक DC क्षमता लगभग दोगुनी हो जाएगी। वर्तमान में 400 मेगावाट से अधिक की क्षमता बन रही है। टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी मांग में वृद्धि देखने को मिल सकती हैं। सीबीआरई के भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के चेयरमैन और सीईओ अंशुमान पत्रिका ने कहा कि हम DC के आकर्षण को देखते हुए इसमें निवेश करने वालों लोगों की पसंद का अनुमान लगाते है। डेटा सेटर में निवेश रियल एस्टेट में निवेश का विकल्प बनकर उभर रहा है। डेटा सेंटर ऑपरेटर, क्लाउड प्लेयर्स से अपने किए पूर्व वादे के मुताबिक क्षमता बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। जेएलएल ने कहा कि भारत में कुछ डीसी ऑपरेटरों ने अक्षय ऊर्जा स्रोत स्थापित किए हैं। ऐसा मानक नियमों में कमी होने के कारण संभव हो पाया हैं। इसको देखते हुए इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (IGBC) ने 'ग्रीन डेटा सेंटर रेटिंग सिस्टम' का एक पायलट वर्जन बनाया। जिससे इस समस्या का समाधान किया जा सके। IGBC ने Uptime Institute के सहयोग से भारत में DC के लिए रिन्यूबल एनर्जी स्टैंडर्ड बनाया है। जिससे इन डेटा सेंटर ऑपरेटरों को अक्षय ऊर्जा में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। इसके अलावा AI और मशीन लर्निंग जैसी नई तकनीक इस उद्योग को पूरी तरह बदल रही है। इन तकनीक के उपयोग से लागत में कमी भी आ रही हैं।
