बिजली पर 5 फीसदी जीएसटी से सरकार को होगा 5,700 करोड़ का नुकसान | श्रेया जय / नई दिल्ली January 04, 2022 | | | | |
जीएसटी व्यवस्था के तहत बिजली को लाने के प्रस्ताव से राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को 5,780 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। सरकारी क्षेत्र की विद्युत उत्पादक कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड द्वारा कमिशंड रिपोर्ट में बिजली के लिए 5 फीसदी जीएसटी दर का सुझाव दिया गया है।
विद्युत मंत्रालय और वित्त मंत्रालय बिजली पर जीएसटी लगाने पर विचार कर रहे हैं। एनटीपीसी और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) को इसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कहा गया था। एनटीपीसी की ओर से कमिशंड ईवाई द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में 5 फीसदी जीएसटी दर का उपभोक्ताओं और सरकारी खजाने पर पडऩे वाले असर का विश्लेषण किया गया है।
देश में विद्युत आपूर्ति के लिए ईंधन के तौर पर 70 फीसदी योगदान कोयले का है जिस पर जीएसटी के तहत कर लगता है वहीं विद्युत उत्पादन, पारेषण और वितरण को जीएसटी से छूट प्राप्त है। कोयले पर 5 फीसदी जीएसटी की दर से प्रति टन 400 रुपये की जीएसटी वसूली की जाती है इसके अलावा आधार कीमत पर 14 फीसदी रॉयल्टी की वसूली होती है। इसी तरह से विद्युत आपूर्ति शृंखला में शामिल विभिन्न घटकों पर अलग अलग जीएसटी कर लगाया जाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'बाहरी आपूर्ति पर जीएसटी में छूट के कारण बिजली कंपनियां (उत्पादन, पारेषण और वितरण कंपनियां) खरीदी गई वस्तुओं/सेवाओं पर भुगतान किए गए जीएसटी के इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ नहीं ले सकती हैं। इस कारण से औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं के लिए विद्युत लागत में वृद्घि होती है।'
नीति आयोग ने आरएमआई इंटरनैशनल के साथ मिलकर अगस्त 2021 में बिजली वितरण क्षेत्र पर तैयार की गई अपनी रिपोर्ट में कहा कि आईटीसी की उपलब्धता होने पर समूचे बिजली मूल्य शृंखला में बिजली की प्रति यूनिट लागत में 17 पैसे की कमी की जा सकती है।
ईवाई रिपार्ट ने दावे का समर्थन किया है। उसने कहा कि बिजली पर जीएसटी लगाने से उपभोक्ताओं और विशेष तौर पर औद्योगिक तथा वाणिज्यिक उपभोक्ताओं के लिए लागत में कमी आएगी। ईवाई ने बिजली के विभिन्न स्रोतों के लिए अनुमानित लागत में 9 से 12 पैसे और बिजली के उत्पादन, पारेषण और वितरण शृंखला में 0.05 पैसे से लेकर 11 पैसे (औसतन 16 पैसे) की कमी का अनुमान लगाया है।
भले ही बिजली पर जीएसटी नहीं लगाया जाता है लेकिन करीब करीब सभी राज्य उपभोक्ताओं पर एक विद्युत शुल्क लगाते हैं। यह शुल्क उच्च उपभोग दायरे में अधिक लगाया जाता है जिसमें औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ता आते हैं। बिजली में आईटीसी की अनुपलब्धता के कारण उद्योगों के लिए बिजली महंगी हो जाती है।
ईवाई रिपोर्ट में कहा गया, 'जीएसटी के तहत विद्युत को लाने पर आईटीसी की उपलब्धता से औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं के लिए बिजली शुल्क लागत में कमी आएगी जिससे वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कम लागत पर हो सकेगा। इसके परिणामस्वरूप भारतीय उत्पादों को एक प्रतिस्पर्धी बाजार मुहैया होगा।'
हालांकि, घरेलू खंड के लिए ईवाई की रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली को जीएसटी के दायरे में लाने पर शुल्क में प्रति यूनिट इजाफा होगा जिसे राज्य सरकारों को सब्सिडी के जरिये वहन करना चाहिए। यही प्रावधान कृषि उपभोक्ताओं के लिए भी करने की आवश्यकता होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि सिब्सडी की रकम का इंतजाम जीएसटी की वसूली से राज्य सरकार को होने वाले राजस्व की कमाई से हो जाएगा।
पिछले वर्ष भारतीय उद्योग जगत ने औद्योगिक निकाय सीआईआई के माध्यम से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दिए गए अपने बजट प्रतिवेदन में सुझाया था कि या तो विद्युत को जीएसटी के तहत लाया जाए या फिर इसे आईटीसी के रिफंड से बाहर रखा जाए।
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