मौद्रिक नीति को प्रभावित कर रहा समावेशन | अनूप रॉय / मुंबई December 24, 2021 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने कहा है कि वित्तीय समावेशन बढ़चढ़ कर मौद्रिक नीति को प्रभावित कर रहा है और इसका आकलन करने के लिए औपचारिक प्रणाली तैयार करने में यह मददगार होता है।
रिजर्व बैंक ने सितंबर महीने में एक राष्ट्रीय वित्तीय समावेशन सूचकांक की शुरुआत की थी जिसमें 97 संकेतकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके मुताबिक देश ने वित्तीय समावेशन में अब तक करीब आधे लक्ष्य को ही हासिल किया है। भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद की ओर से वित्तीय समावेशन पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए पात्रा ने कहा, 'इसके अलावा मौद्रिक नीति नियमों और प्रतिक्रिया कार्यों में वित्तीय समावेशन के एक गौर करने लायक संकेतक को शामिल किया जा सकता है ताकि उत्पादन और मुद्रास्फीति तथा इसके उतार चढ़ाव के साथ वित्तीय समावेशन के सहसंबंध का पता लगाया जा सके। पहली बार नीतिगत दर बदलावों के आकार और समय पर वित्तीय समावेशन के प्रभाव का आकलन किया जा सकता है।'
पात्रा ने कहा, 'मौद्रिक नीति के अधिकारी आमतौर पर असमानता पर चर्चा से बचते हैं। वे वृहद स्थीरिकरण की भूमिका में नजर आना चाहते हैं और वितरण संबंधी मुद्दों को राजकोषीय अधिकारियों पर छोडऩा बेहतर समझते हैं। फिर भी, काफी हद तक वे मानते हैं कि वित्तीय समावेशन या औपचारिक वित्त तक पहुंच की समानता मौद्रिक नीति की कार्य प्रणाली पर जितना वे सोचते हैं उससे अधिक बुनियादी तौर पर असर डालता है।'
उन्होंने कहा कि वित्तीय समावेशन लक्ष्य के परिवर्ती कारकों को मापने के मात्रिक को चुनने, उसकी भिन्नताओं के मध्य समझौताकारी तालमेल को चुनने और वृहद अर्थव्यवस्था तक पहुंचने में मौद्रिक नीति के प्रभाव को जानने में मददगार साबित होता है।
पात्रा ने कहा कि मौद्रिक नीति और वित्तीय समावेशन के बीच दोतरफा संबंध है और यह जाहिर है कि वित्तीय समावेशन मुद्रास्फीति और उत्पादन में उतार-चढ़ाव को कम करता है।
ऐसा इसलिए है कि औपचारिक वित्त व्यवस्था में गहराई से शामिल होने पर लोग अपने हित को लेकर गंभीर हो जाते हैं और समाज मुद्रास्फीति को झेलने के लिए तैयार नहीं होता है। इससे मौद्रिक नीति को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में अन्य किसी माध्यम की तुलना में कम समय लगता है। मुद्रास्फीति को लक्षित मौद्रिक नीति तेज कीमत वृद्घि के प्रतिकूल झटकों से फ्रिंज को बचाने का प्रयास करती है।
पात्रा के मुताबिक ग्रामीण, कृषि पर निर्भर इलाकों जहां पर खाद्य आमदनी का मुख्य स्रोत है उन इलाकों में वित्तीय समावेशन न्यूनतम स्तर पर है। जब खाद्य कीमतें बढ़ती हैं तब वित्तीय समावेशन से बाहर रह गए लोगों द्वारा अर्जित अतिरिक्त आमदनी को बचाया नहीं जाता है बल्कि इसकी जगह खपत बढ़ जाती है जिससे उच्च समग्र मांग पैदा होती है।
उन्होंने कहा, 'इस प्रकार की परिस्थिति में अपनी स्थिरीकरण उद्देश्य को पाने में मौद्रिक नीति का प्रभाव बढ़ जाता है जिसके तहत कीमतों के मापन को लक्षित किया जाता है जिसमें खाद्य कीमतें शामिल होती है। प्रमुख मुद्रास्फीति में इसको शामिल नहीं किया जाता है। वित्तीय समावेशन का स्तर नीचे होने पर कीमत स्थिरता का मामला उतना ही मजबूत होता है। इसे हेडलाइन मुद्रास्फीति के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है न कि प्रमुख मुद्रास्फीति की किसी माप के संदर्भ में जिसमें कि खाद्य और ईंधन को बाहर रखा जाता है।'
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