देश की सबसे बड़ी निर्माण एवं इंजीनियरिंग कंपनी लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) को देश में करीब 14 बड़े ऑर्डर खोना पड़ा है क्योंकि पर्याप्त तकनीकी विशेषज्ञता एवं अनुभव न होने के बावजूद प्रतिस्पर्धी कंपनियों ने निविदा प्रक्रिया के दौरान कम बोली लगाकर परियोजनाओं को अपनी झोली में डाल लिया। एलऐंडटी के गैर-कार्यकारी चेयरमैन एएम नाइक ने यह दावा किया है। उन्होंने कहा कि एलऐंडटी विदेशी परियोजनाएं हासिल करते हुए इस नुकसान की भरपाई कर रही है। उन्होंने कहा कि विदेशी बाजारों में बड़ी वैश्विक कंपनियों से मिल रही तगड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद कंपनी ने उल्लेखनीय बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ली है। नाइक ने एक बातचीत में कहा, 'आज एलऐंडटी अपना 60 फीसदी काम भारत के बाहर करती है लेकिन यहां हमें 14 में से 14 निविदाओं को खोना पड़ा है। इनमें से 7 निविदाएं उन कंपनियों की झोली में गईं जिन्होंने कभी ऐसा काम नहीं किया है लेकिन पात्र हैं। ये परियोजनाएं संभवत: कभी पूरी नहीं होंगी अथवा एक या दो साल बाद पूरी होंगी जिससे लागत काफी बढ़ जाएगी।' नाइक ने कहा, 'ऐसी खबर है कि भारतीय परियोजनाओं की लागत 4.36 लाख करोड़ रुपये अधिक हो चुकी है। यह करदाताओं की रकम है जिसका नुकसान हो रहा है। इसके अलावा परियोजना में पांच साल की देरी हो रही है। यह देरी देश के लिए संभावनाओं का एक जबरदस्त नुकसान है। साथ ही 4.36 लाख करोड़ रुपये का नुकसान महज शुरुआत भर है। पांच साल के दौरान भारत ने जिनता खोया है चीन ने उसके मुकाबले तीन से चार गुना अधिक सृजित किया होगा।' एलऐंडटी के अंतरराष्ट्रीय कारोबार के बारे में नाइक ने कहा कि कंपनी ऑर्डर हासिल करने में अमेरिकी, यूरोपीय, जापानी, दक्षिण कोरियाई और अब चीनी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा कर रही है। उन्होंने कहा, 'हमें भारत में करीब 12,500 करोड़ रुपये मूल्य के ऑर्डर का नुकसान हुआ है लेकिन सौभाग्य से हमें विदेशी बाजारों से करीब 12,000 करोड़ रुपये मूल्य के ऑर्डर मिल गए। अब हम विदेश से 7,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त ऑर्डर हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं। क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि हमारी जैसी भारतीय कंपनी को ऑर्डर हासिल करने के लिए बाहर जाना पड़ रहा है।' उन्होंने देश में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए निविदा प्रक्रिया को दुरुस्त करने की वकालत की। नाइक ने 1999 में 2,000 करोड़ रुपये के बाजार मूल्यांकन के साथ एलऐंडटी की कमान संभाली थी जो अब बढ़कर 2.53 लाख करोड़ रुपये हो चुका है। इसका श्रेय नाइक को दिया जाता है। उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टियां मौजूदा सरकार की उन नीतियों का विरोध कर रही हैं जिनका उन्होंने सत्ता में रहते समय समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि इससे आर्थिक नीतियां अवरुद्ध होती हैं। नाइक ने कहा, 'देश के लिए महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर सभी पार्टियों को साथ आने और सहमति जताने की जरूरत है।' नाइक ने कहा, 'यह राजनीतिक व्यवस्था को बदलने का समय है क्योंकि हमारे पास काफी ऐसे काम हैं जिन्हें जल्द करने की जरूरत है। अन्यथा भारत की जीडीपी वृद्धि की क्षमता सुनिश्चित नहीं होगी। हालांकि 8.5 फीसदी और 9.5 फीसदी जीडीपी वृद्धि की खबरें आ रही हैं लेकिन मेरे विचार से वास्तविक पैमाने पर जीडीपी वृद्धि 7 से 7.5 फीसदी से अधिक नहीं होगी। जीडीपी (वित्त वर्ष 2022) में बढ़कर 8 से 8.5 फीसदी हो सकती है क्योंकि पिछले साल कोविड के कारण आधार कमजोर रहा था। इसलिए वास्तविक वृद्धि काफी कम रहेगी। जब हम कोविड-पूर्व स्तर की जीडीपी से आगे बढ़ेंगे तो वह वास्तविक वृद्धि होगी।' उन्होंने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक का कहना है कि भारत की जीडीपी बढ़ रही है लेकिन वे यह नहीं बता रहे हैं कि कोविड से पहले आर्थिक वृद्धि क्या थी और भारत कितना नीचे चला गया है।' नाइक ने कहा कि इस पृष्ठभूमि में एलऐंडटी को राष्ट्रीय महत्त्व के काम को अवश्य जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा, 'कई ऐसी परियोजनाएं हैं जिन्हें केवल एलऐंडटी ही कर सकती है अन्यथा भारत को विदेशी कंपनियों को बुलाना पड़ेगा। सरदार पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा का निर्माण एलऐंडटी द्वारा ही किया गया था। इससे हमारी उच्च दक्षता का पता चलता है।' नाइक ने कहा कि इसके बावजूद एलऐंडटी को भारत में अनुबंध खोना पड़ रहा है जबकि उन कंपनियों को परियोजनाएं मिल रही हैं जिन्हें न तो कोई खास तकनीकी ज्ञान है और न ही काम करने का अनुभव। ऐसे में वे समय पर परियोजनाओं को पूरा नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने कई ऐसी सड़क परियोजनाओं को पूरा करने की पेशकश की थी जिन्हें कम बोली लगाने वालों ने निर्माणाधीन छोड़ दिया था। हालांकि कंपनी उन अटकी परियोजनाओं को लेने में असमर्थ थी क्योंकि वह व्यवहार्य नहीं रह गई थी। स्टार्टअप के उच्च मूल्यांकन के बारे में बताते हुए नाइक ने कहा कि बिना मुनाफा वाला कोई भी कारोबारी मॉडल अधिक समय तक चल नहीं सकता है। उन्होंने कहा, 'जब मैंने एलऐंडटी के प्रौद्योगिकी कारोबार की स्थापना की थी तो उसकी शुरुआत बिल्कुल शून्य से की गई थी। आज एलऐंडटी की तीन आईटी कंपनियों का मूल्यांकन 2.51 लाख करोड़ रुपये है और इन कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में एलऐंडटी की हिस्सेदारी काफी बढ़ (1.77 लाख करोड़ रुपये) चुकी है। आज 80 फीसदी स्टार्टअप विफल हो जाते हैं। तमाम लोग स्टार्टअप की शुरुआत करते हैं लेकिन महज तीन से चार साल के दौरान उसे बेच देते हैं। कोई भी 20 अरब डॉलर की कंपनी बनाना नहीं चाहता। ये ऐसी कंपनियां हैं जो अधिक मूल्यांकन पर सूचीबद्ध होती हैं लेकिन उनकी कोई लाभप्रदता नहीं होती।'
