कुछ चीजों की अपनी अलग ही खासियत होती है जो कभी बदलती नहीं है। देश में पहली बार कुछ ऐसे ही रुतबा है, मारुति 800 का।
इसने पहली बार मध्यम वर्ग को यह यकीन दिलाया था कि वे भी कार खरीद सकते हैं। कहते हैं, अगर किसी हिंदुस्तानी ने अपनी जिंदगी में कभी कार चलाई होगी तो उसने तो मारुति चलाई ही होगी। इसलिए इस बार हमने ठाना मारुति 800 की नए एलपीजी वर्जन को टेस्ट करने के लिए।
आम मारुति 800 को चलाते वक्त आप महसूस करेंगे कि इस कार में दूसरे गियर के अलावा कोई गियर है ही नहीं। अगर आपके मारुति का एसी काम कर रहा है तो आप पाएंगे कि कार के सामने लगे शीशे पर अंदर की ओर से एक धुंध सी जम जाती है। ऐसे में आपको किसी कपड़े या फिर रूमाल से शीशे को पोछने के सिवा और कोई दूसरा उपाय नहीं सूझता।
मारुति में लगे शीशे काफी पतले होते हैं, इस वजह से भी ऐसा होता है। पतले शीशे होने से ही इस कार की लागत काफी कम हो जाती है। दूसरी स्थिति यह भी होती है कि अगर आपका एसी काम नहीं कर रहा है और आप कंप्रेशर को चार्ज कराना भूल गए हैं तो फिर पिछली सीट पर बैठे लोगों को अपना सिर थोड़ा ऊपर करना पड़ेगा ताकि थोड़ी हवा वे भी खा सकें।
किसी ट्रैफिक सिग्नल पर कंप्रेशर ने काम करना बंद कर दिया तो निश्चित तौर कोई भी अपना सिर पकड़ कर यही बोल सकता है कि मारुति 800 खरीदना सबसे बड़ी भूल थी। इतनी खामियों के बावजूद मारुति 800 हमेशा से बाजार में मौजूद रही है। आजकल के दौर में यकीनन ऑल्टो और हुंडई की आई10 को आम आदमी के लिए छोटी कार का बेहतर विकल्प माना जा सकता है।
लगभग 2.45 लाख रुपये में मिलने वाले जॉन लिनन के जमाने की इस कार के इंजन की अब क्या अहमियत है। ऐसे में आप जरूर सोच रहे होंगे कि लग्जरी कार के इस जमाने में मारुति के इस 25 साल पुराने मॉडल की बिक्री तो यकीनन घट ही रही है और यह पूरी तरह खत्म होने के कगार पर है। लेकिन मारुति की मानें तो आपकी यह सोच बिल्कुल गलत साबित हो सकती है।
मारुति ने भी बदलते जमाने के साथ अपनी नई योजनाओं पर अमल करना शुरू कर दिया है। अब आपके लिए खासतौर पर मारुति 800 की डुओ एलपीजी कार पेश की जा रही है। अगर आपको डीजल इंजन वाली बेहद छोटी कार नहीं मिल पा रही है तो आपके लिए मारुति 800 की एलपीजी कार बेहतर विकल्प होगी।
अगर आप मारुति 800 से दक्षिणी मुंबई के बेहद मशहूर इलाके की अंदरुनी गलियों से होकर गुजरेंगे तो आपकी यादें ताजा हो जाएंगी। आपको यह बात मालूम होना चाहिए कि इसमें पावर स्टीयरिंग नहीं है जिसके जरिए आप भीड़ भरे इलाके में अपनी गाड़ी को दूसरी ओर बेहद आसानी से घुमा कर ले जा सकते हैं। इसमें कोई बेहद प्रभावी डिस्क ब्रेक नहीं है।
मारुति 800 को अचानक से रोकना भी बहुत आसान काम नहीं है। अगर अचानक कोई सब्जी बेचने वाला आपकी कार के सामने आ जाता है तो आपको इस कार को रोकने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। मसलन आपको गाड़ी को गियर में डाल कर हैंडब्रेक के जरिए रोकने की कोशिश करनी पड़ती है।
ऐसे में चारों तरफ भीड़-भाड़ वाले इलाके से गुजरते हुए आपको खासी परेशानी महसूस होती है। हालांकि मारुति 800 जैसी कोई भी कार नहीं होगी जो बेहद कम जगह में बेहद आसानी से बिना रुके निकल जाती है। वहीं दूसरी कोई कार ऐसे इलाकों से बिना रुके तो गुजर ही नहीं सकती। मेरा मानना है कि इस मामले में किसी को मारुति 800 पर बिल्कुल संदेह नहीं होना चाहिए।
अगर यूगोस्लाविया में कोई मारुति 800 ड्राइव करता है तो वहां लोग मुड़-मुड़ कर देखते हैं जबकि भारत में ऐसा बिल्कुल नहीं होता। वैसे मारुति की देश में हर जगह मौजूदगी की वजह यह है कि लोग यहां सस्ती कार खरीदना चाहते हैं जिसे चलाने में भी ज्यादा पैसे खर्च न करना पड़े।
मारुति सुजुकी ने वैगन आर डुओ के साथ ऐसा ही बेहद सफल प्रयोग किया था और अब उसने मारुति 800 के साथ भी वही प्रयोग शुरू किया है। इसमें लैंडी रेंजों का एलपीजी किट लगाया गया है। इसका सिलिंडर डिक्की में लगाया जाता है लेकिन उसके बाद डिक्की में आप कोई सामान नहीं रख सकते।
इसमें दो तरह के इंजन कं ट्रोल यूनिट (ईसीयू) होते हैं, एक गैस को और दूसरे पेट्रोल को नियंत्रित करता है। गैस ईसीयू भी पेट्रोल ईसीयू सेंसर का इस्तेमाल करती है जिसकी वजह से एक्सीलरेटर के जरिए सिलिंडर में बिल्कुल सही मात्रा में गैस भर जाती है।
जब शहरी इलाकों में मारुति 800 सबसे ज्यादा तेज स्पीड पर चलती है या 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी चले तो आपको यह बिल्कुल अंदाजा नहीं लग पाता कि उसकी क्षमता घट चुकी है। आज के दौर में मारुति 800 हाईवे पर चलाने के लिए अच्छी कार नहीं हो सकती और डुओ तो और भी नहीं।
अगर आप इस कार को 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलाएंगे तो एलपीजी सिलिंडर की क्षमता में आपको कमी नजर आएगी। हालांकि इसका फोर स्पीड गियरबॉक्स बहुत अच्छा है। इस कार में आप स्टीयरिंग के साथ सही तरीके से एडजस्ट नहीं कर सकते और इसकी सीट भी ऊंची नहीं है।
इसमें कोई एबीएस ब्रेक भी नहीं है जिसकी वजह से किसी हादसे की सूरत में गाड़ी पर नियंत्रण किया जा सके। इस छोटी कार में आप खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर सकते। यह बिल्कुल चार पहियों वाली मोटरसाइकिल जैसी ही कार है। हालांकि इस कार की कीमत भी लगभग उतनी ही पड़ती है जितनी एक मोटरसाइकिल को खरीदकर चलाने और उसके रखरखाव पर आती है।
इस कार में हर एक किलोमीटर पर एक रुपया बचा सकते हैं। इस हिसाब से आम मारुति कार और स्टैंडर्ड मारुति 800 एसी कार की कीमत 15,000 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद बराबर हो जाएगी।
इसके एलपीजी वर्जन का यही फायदा है कि यह कार चलाने में सस्ती होने के साथ ही सक्षम भी होती है। अगर आपके पास थोडे ज्यादा पैसे हैं तो आप इसे खरीद सकते हैं। इस छोटी कार की साख तो अच्छी है ही और यह आपको बेहद चुस्त और फुर्तीली भी लगेगी। हां, अगर इस कार में पीछे बैठने वाले इसके एसी की शिकायत करें तो आप उन्हें बस स्टॉप का रास्ता तो दिखा ही सकते हैं।
पहले दौर की बाजी पर हुआ लैमबोर्गिनी का कब्जा
पोर्श ने अपनी पैनेमरा को दो साल से पर्दे में छुपा रखा है मतलब कि कार अभी तैयार हो रही है और अगले साल तक ही सड़कों पर इसके दीदार हो पाएंगे। लेकिन कंपनी ने दो साल पहले से ही इसके टीयर स्केच जारी कर रखे हैं। और आप इस कार के स्पाइ शॉट्स देख सकते है।
कार बनाने वाली जर्मनी की यह कंपनी अपनी महत्वाकांक्षी सेडान को लेकर एक तरह से लुका-छिपी का खेल ही खेल रही है। लेकिन इसी सेगमेंट में इटली की इसकी प्रतिद्वंद्वी ने फॉर डोर स्पोर्ट्स सेडान बाजार में उतारकर पहले दौर की बाजी अपने नाम कर ली है।
पेरिस में एक खास जगह पर होने वाले पेरिस मोटर शो-2008 की पूर्वसंध्या पर दुनिया भर से जुटे पत्रकारों के सामने एक अक्टूबर को एक लो स्लंग कांसैप्ट कार पेश की गई। जब चार खूबसूरत महिलाओं ने इस कार को बेपर्दा किया तो सभी की निगाहें इस कार पर आकर टिक गईं।
आखिरकार यह लैंबोरगिनी की ही कार थी। लैमबोर्गिनी स्पोर्ट्स कार बनाने वाली इटली की मशहूर कंपनी है। और वाकई में यह कार शानदार होने के पूरे पैमाने पर खरी उतरती है। इस खूबसूरत सुपरकार में चार दरवाजे और चार ही सीटें हैं। लैमबोर्गिनी ने अपनी इस कांसैप्ट कार को एस्टोक का नाम दिया है।
कुल मिलाकर इस सुपरकार के अंदर काफी जगह है जिसमें चार लोग बड़े आराम से बैठ सकते हैं। लेकिन फिर भी यह काफी कुछ लैमबोर्गिनी की परंपरागत कार के माफिक ही नजर आती हैं। टर्बोचार्ज्ड इंजन होते हुए भी परफॉर्मेंस लाजवाब है। इस कार पर नियंत्रण की गारंटी दी जा सकती है। लेकिन डिजाइन और परफॉर्मेंस को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं, यही असल चुनौती है।
एस्टोक में पावर को लेकर कोई दिक्कत वाली बात नहीं है। इसमें इंजन फ्रंट ऐक्सल के पीछे दिया गया है जबकि मौजूदा लैंबोस में इंजन पिछले ऐक्सल के आगे दिया जाता रहा है। इससे कार में वजन सभी तरफ एकसमान हो जाता है और कार को ग्रेविटी मिलने में भी सहूलियत होती है।