देश की सबसे बड़ी कार विनिर्माता मारुति सुजूकी ने सितंबर से अपनी गाडिय़ों के सभी मॉडलों की कीमतों में बढ़ोतरी करने की घोषणा की है। कंपनी ने चौथी बार कीमत बढ़ाने का फैसला किया है। मारुति ने पिछले तीन मौकों पर गाडिय़ों के दाम में मामूली बढ़ोतरी ही की थी लेकिन इस बार यह वृद्धि अच्छी-खासी हो सकती है। स्टील एवं तांबे जैसे कच्चे माल की कीमतों में आई खासी तेजी से कंपनी की उत्पादन लागत बढ़ी है, लिहाजा इस बार वह अपनी कारों के दाम में ठीक-ठाक बढ़ोतरी कर सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि यह वृद्धि दो अंकों में भी हो सकती है।
कीमत वृद्धि के फैसले की घोषणा होते ही कंपनी के शेयरों के भाव फौरन उछल गए और कारोबार के अंत में यह पिछले दिवस की तुलना में 2.90 फीसदी की बढ़त पर बंद हुए। बेंचमार्क सूचकांक में कारोबारी दिवस की वृद्धि 1.36 फीसदी ही रही। कंपनी ने जुलाई-सितंबर तिमाही में अपनी गाडिय़ों की कीमतें बढ़ाने की योजना के बारे में पहले ही बताया था लेकिन उसने सिर्फ सीएनजी मॉडलों के ही दाम बढ़ाए थे। अब उसने अपने सभी मॉडलों की कीमतें बढ़ाने का फैसला कर लिया है।
मारुति सुजूकी ने बाजार नियामक को दी गई जानकारी में कहा है कि उत्पादन लागत बढऩे का कुछ बोझ उपभोक्ताओं पर भी डालना अपरिहार्य हो गया है। इसके मुताबिक, कीमत वृद्धि का फैसला सितंबर में सभी मॉडलों पर लागू होगा। मारुति के दिखाए इस रास्ते पर दूसरी ऑटो कंपनियां भी चल सकती हैं। टाटा मोटर्स ने अप्रैल एवं जुलाई में अपने वाणिज्यिक वाहनों के दाम बढ़ाए थे जबकि सवारी गाडिय़ों के दाम में मई में 1.8 फीसदी की वृद्धि की थी।
मारुति सुजूकी के वरिष्ठ कार्यकारी निदेशक शशांक श्रीवास्तव ने कहा, ‘कमोडिटी उत्पादों की कीमतो में नाटकीय तेजी आई है। सामान्यत: हम अपनी क्षमता एवं उत्पादकता बढ़ाकर इसे समायोजित करने की कोशिश करते हैं ताकि इसका बोझ ग्राहकों पर न डालना पड़े। असल में हमें कीमत वृद्धि का फैसला पहले ही ले लेना चाहिए था लेकिन 2019-20 के बेहद खराब साल के बाद महामारी भी आ गई तो हमें मुनाफे के बजाय राजस्व पर ही ध्यान केंद्रित करना पड़ा।’
उन्होंने कहा कि स्टील की कीमतें 38,000 रुपये प्रति टन से बढ़कर 65,000 रुपये प्रति टन हो गई हैं जबकि तांबे के अंतरराष्ट्रीय भाव भी 5,200 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 10,200 डॉलर प्रति टन के स्तर तक जा पहुंचे हैं। रोडियम जैसी महंगी धातुओं की कीमतें भी 18,000 रुपये प्रति ग्राम से बढ़कर 64,000 रुपये प्रति ग्राम हो चुकी हैं।
ऑटो कंपनियों का अमूमन कच्चे माल के आपूर्तिकर्ताओं के साथ 3-6 महीने का अनुबंध होता है जिसकी वजह से जिंस उत्पादों के दामों में आने वाले उतार-चढ़ाव का असर 3-6 महीने के अंतराल से दिखाई देता है। श्रीवास्तव ने कहा कि कंपनी के लिए गाडिय़ों के दाम बढ़ाने का फैसला अंतिम विकल्प है क्योंकि इसका असर राजस्व पर असर पड़ सकता है।