केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा भारत नया कार मूल्यांकन कार्यक्रम के अंतर्गत भारत एनसीएपी ‘स्टार रेटिंग’ मसौदे को मंजूरी देने के एक दिन बाद मारुति सुजूकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने कहा कि अगर कंपनी के ग्राहक इसके प्रति दिलचस्पी दिखाते हैं तभी मारुति स्टार रेटिंग व्यवस्था को अपनाएगी।
भार्गव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अगर ग्राहक यह कहना शुरू कर दें कि वे सुरक्षा रेटिंग वाली कार चाहते हैं तो विनिर्माता ऐसा करेंगे और ग्राहकों से इसकी लागत वसूल करेंगे।’ अभी कारों के लिए स्टार रेटिंग स्वैच्छिक है और इसे अनिवार्य नहीं किया गया है।
भार्गव ने कहा, ‘आपको ऐसा क्यों लगता है कि विनिर्माता इसे अपनाएंगे? विनिर्माताओं को सरकार के नियमन को अपनाने की जरूरत होती है, न कि निजी संस्था द्वारा तय किए गए मानक। अगर सरकार नियमन में बदलाव लाती है तभी इसे अनिवार्य बनाया जा सकता है।’
भारत में बनी कारें वर्तमान में 56 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से क्रैश टेस्ट नियमन का पालन करती हैं, जो ऑटोमोटिव इंडियन स्टैंडर्ड (एआईएस) का हिस्सा है। अगर भारत-एनसीएपी रेटिंग जिसमें 64 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से क्रैश टेस्ट करने की जरूरत होती है, वह अधिसूचित होती है और
1 अप्रैल, 2023 से प्रभावी होती है तो मारुति जैसे वाहन विनिर्माता अपनी कारों को सुरक्षा के लिए रेटिंग की व्यवस्था चुन सकते हैं। इसके लिए उन्हें अपनी कारों में ढांचागत बदलाव करना होगा ताकि कारों को अच्छी सुरक्षा रेटिंग मिल सके।
वाहन क्षेत्र के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इससे कार बनाने की सामग्री की लागत 10,000 से 15,000 रुपये तक बढ़ सकती है। इसके साथ ही एयरबैग जैसे अन्य सुरक्षा उपायों के चलते लागत में और इजाफा होगा।
वाहन क्षेत्र के एक दिग्गज ने कहा, ‘चार साल पहले प्रत्येक स्टार के लिए कार विनिर्माता को अतिरिक्त 10,000 रुपये लागत वाहन करनी पड़ती। हालिया मुद्रास्फीति को देखते हुए इसकी लागत कहीं ज्यादा होगी।’ हालांकि भार्गव ने इसकी वजह से लागत में कितना इजाफा होगा, उस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की। उन्होंने कहा कि मैं काल्पनिक स्थिति पर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता। वह नीति में बदलाव के कारण लागत बढ़ने पर चिंता जताते रहे हैं।
हालांकि सभी उनके विचार से सहमत नहीं हैं। ब्रांड स्ट्रैटजी फर्म एक्पीरियल के अभीक चट्टोपाध्याय ने कहा, ‘ग्राहक भविष्य की जरूरतों को समझने में उतने सक्षम नहीं हो सकते हैं। यह उत्पाद विनिर्माता और कंपनी की जिम्मेदारी है कि वे जरूरत को पहले ही भांप लें।’ उन्होंने कहा कि अभी तक मारुति उन्हीं नियमों का पालन करती रही है जिसका प्रवर्तन किया गया है। ग्राहक वाहन की लागत कम चाहते हैं लेकिन कंपनियों को ऐसे उत्पाद की पेशकश नहीं करनी चाहिए, जो सुरक्षा से समझौता करते हैं।
भारत-एनसीएपी ने कारों की सुरक्षा और ग्राहकों को उचित निर्णय लेने में सक्षम बनाने की अवधारणा पेश की है।
मसौदा अधिसूचना के अनुसार इससे भारत में बनने वाली कारों को निर्यात बाजार में बढ़ावा मिलेगी और घरेलू ग्राहकों में भी इन वाहनों के प्रति भरोसा बढ़ेगा।
अन्य वाहन विनिर्माताओं की तरह मारुति जीएनसीएपी सुरक्षा रेटिंग को उतना महत्त्व नहीं देती है और उसका मानना है कि एजेंसी द्वारा उपयोग किए जाने वाले मानदंड भारत की भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर वाहन चलाने के अनुरूप नहीं हैं। मारुति के कुछ सर्वाधिक बिकने वाले मॉडल जैसे कि बलेनो और स्विफ्ट को काफी कम रेटिंग मिली है।
वाहन उद्योग के एक कार्याधिकारी ने कहा कि भारतीय कार खरीदारों में सुरक्षा को लेकर संवदेनशीलता बढ़ी है लेकिन वाहन खरीद की शीर्ष पांच वरीयताओं में सुरक्षा का मसला शुमार नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि सुरक्षा के लिए स्टार रेटिंग समय की जरूरत है और इससे भारतीय खरीदारों को ज्यादा उचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि जो लोग यह कहते हैं कि हमारा अपना मानदंड नहीं है, तो यूरोपीय मानकों का पालन क्यों करते हैं क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है और अनुपालन करना होता है। हालांकि यह नियमन नहीं है लेकिन विनिर्माता अपनी कारों को सुरक्षा रेटिंग दिलाने में रुचि दिखाएंगे।
शुक्रवार को एनसीएपी मसौदे को अधिसूचित करने के बाद भार्गव ने एक कार्यक्रम में कहा था कि इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए।