इस वैश्विक महामारी के दौरान हालांकि ऐंबुलेंस की मांग में काफी तेजी से इजाफा हुआ, लेकिन वाहन पंजीकरण के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इसकी आपूर्ति में बढ़ोतरी नहीं हुई। मार्च 2020 के बाद ऐंबुलेंस की बिक्री में गिरावट आई, जब कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए देश में पहली बार लॉकडाउन हुआ।
सरकार वाहनों के संबंध में उनका पंजीकरण किए जाने के आंकड़े उपलब्ध कराती है और बिक्री के आंकड़े सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सायम) की तरफ से आते हैं। हालांकि बिक्री और पंजीकरण की संख्या में कुछ अंतर होता है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि सायम की बिक्री के आंकड़े डीलरों को बेचे गए वाहनों (या थोक आंकड़ों) पर आधारित होते हैं। कई बार जब स्टॉक में कमी आती है, तो डीलर उसमें वाहन जोड़ लेते हैं। उदाहरण के लिए, कहा जाता है कि अप्रैल में ऐसा हुआ है। यह सायम के आंकड़ों में तो दिखाया जाएगा, लेकिन जब तक कोई खुदरा खरीदार वाहन की खरीद नहीं करता और उसे पंजीकृत नहीं करता, तब तक पंजीकरण में यह नजर नहीं आएगा। हाल के दिनों में बिक्री और पंजीकरण में यह अंतर आम तौर पर और ज्यादा हो गया है, जैसा कि यात्री वाहनों के मामले में भी देखा जा सकता है।
विश्लेषक बताते हैं कि लॉकडाउन ने पंजीकरण को मुश्किल बना दिया है। लेकिन केवल पंजीकरण ही दोषी है। निर्यात के मुकाबले घरेलू बिक्री में निश्चित रूप से मंदी है, जो अपेक्षाकृत लचीला रहा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड से बात करने वाले उद्योग के अधिकारियों के अनुसार घरेलू मांग में कमी ही वह चीज रही, जिसका असर अंतत: ऐंबुलेंस की बिक्री में दिखाई दिया है। लॉकडाउन की वजह से डीलरशिप और सड़क परिवहन कार्यालय (आरटीओ) बंद थे। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के एक सदस्य ने कहा कि बिक्री में गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक कारण यह है। ऐंबुलेंस बनाने वाली कंपनी के एक अधिकारी ने कहा कि महामारी के दौरान सरकारी ऑर्डर कम रहे।
इंडियन फाउंडेशन ट्रांसपोर्ट रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग के वरिष्ठ फेलो एसपी सिंह कहते हैं कि महामारी के दौरान जरूरत पूरी करने के लिए मौजूदा वैनों और मिनी बसों को ऐंबुलेंस में तब्दील कर दिया गया था।