बैंक के शीर्ष अधिकारियों ने आज बैंकों पर ‘जोखिम से बचने’ वालों के रूप में ठप्पा लगाने की कवायद का बचाव करते हुए कहा कि व्यावहारिक कारोबार के मामले में कर्जदाता हमेशा स्वागत के लिए तैयार रहते हैं।
बिजनेस स्टैंडर्ड अनलॉक बीएफएसआई 2.0 वेबिनॉर में हिस्सा लेने वाले ज्यादातर बैंकरों ने आज कहा कि आर्थिक बहाली को लेकर अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगी और चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कुछ सही तस्वीर सामने आने की संभावना है, जब त्योहारी सीजन शुरू होगा।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के शीर्ष 6 बैंकरों की चर्चा के दौरान यूनियन बैंक के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी राजकिरण राय ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि ऐसी धारणा क्यों है कि हम जोखिम से बचते हैं। बैंक बेहतरीन परियोजनाओं के लिए कर्ज देने को उत्सुक हैं, जिससे उनके लिए पर्याप्त नकदी हो और जब हमें यह भरोसा हो जाता है कि कर्ज लेने वाला सक्षम है और उसके पास पूंजी है तो हम कर्ज देते हैं। आप इसके लिए सिर्फ बैंकरों पर आरोप नहीं लगा सकते है।’
उन्होंने कहा कि कर्ज की वृद्धि के आधिकारिक आंकड़े बैंकरों के रूढि़वादी रुख अपनाने के संकेत नहीं देते और मांग कम होने की वजह से स्वीकृत कर्ज का कम इस्तेमाल हो रहा है।
ऐक्सिस बैंक के एमडी और सीईओ अमिताभ चौधरी ने यह कहने में कोई संकोच नहीं किया कि वृद्धि को लेकर बैंक रूढि़वादी तरीके अपनाने में थोड़े सहज हैं और वह चाहते हैं कि कॉर्पोरेट जगत वित्ती संस्थानों से कर्ज लें। चौधरी ने कहा, ‘अगर आप सही मायने में यह उम्मीद करते हैं कि अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी तो लोगों को धन खर्च करना शुरू करना चाहिए और बैंकिंग व्यवस्था को उधारी देना चाहिए। मुझे लगता है कि आप सरकार से ज्यादा खर्च कराना चाहते हैं और ज्यादा पूंजी देखना चाहते हैं। अगर भारत के प्रमोटर और व्यक्ति हमसे कर्ज लेना चाहते हैं तो हम उनसे भी चाहते हैं कि कुछ धन खर्च करें। उसके बाद ही हम उन्हें कर्ज देने में सक्षम होंगे।’
इसके पहले इसी कार्यक्रम में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैंकों को सावधान रहने की चेतावनी देते हुए कहा कि जोखिम से बचने की बहुत ज्यादा कवायद से बदलते हुए माहौल में उन्हीं को नुक सान होगा और बैंकों को अपना हिस्सा हासिल करने में मदद नहीं मिलेगी।
बहरहाल सिटी इंडिया के सीईओ आशु खुल्लर ने कहा कि बैंकों के सामने मुख्य चुनौती अर्थव्यवस्था में मांग की कमी को लेकर है और यह कार्यशील पूंजी और पूंजीगत व्यय ऋण दोनों की स्थिति में है, न कि बहुत ज्यादा जोखिम से बचने को लेकर समस्या है। उन्होंने मौजूदा आर्थिक स्थिति को जटिल करार दिया।
खुल्लर ने कहा, ‘कुछ रिकवरी (आर्थिक गतिविधियों में) हो रही है, लेकिन हम अभी सामान्य स्थिति से साफ तौर पर बहुत दूर हैं। मुझे लगता है कि हमें देखो और इंतजार करो की नीति अपनानी होगी। मेरे लिए कुल मिलाकर यह स्वास्थ्य संकट है और जब तक हम इससे बाहर नहीं आते हैं तब तक सामान्य स्थिति आने को लेकर समस्या है।’
आईडीएफसी फस्र्ट बैंक के प्रमुख वी वैद्यनाथन ने ज्यादा आशाबादी रुख दिखाया। हालांकि उन्होंने उल्लेख किया कि वित्तीय व्यवस्था मार्च 2021 तक संकट से पूरी तरह से निपटने में कामयाब रहेगी। उन्होंने कहा, ‘इसके पहले जब हम कोविड के असर का अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे थे, दरअसल हमने महसूस किया कि पूरा साल खराब होने जा रहा है, यानी कर्ज नहीं बढऩे जा रहा है। लेकिन निश्चित रूप से पिछले दो तीन महीनों की स्थिति देखें तो खुदरा कर्ज में साल के दौरान 15 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि हम शून्य वृद्धि का अनुमान लगा रहे थे।’
पंजाब नैशनल बैंक के एमडी और सीईओ एसएस मल्लिकार्जुन राव ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि त्योहारी सीजन कुछ पूंजी केंद्रित उद्यमों के लिए बेहतर मौका लेकर आएगा, यहां तक कि पर्यटन, उड्डयन और आतिथ्य क्षेत्र भी वापसी करेंगे। राव ने कहा, ‘तीसरी तिमाही से हमें बेहतर समझने में मदद मिलेगी कि कर्ज का पुनर्गठन किस तरह से होगा।’
कर्ज की किस्त टालने के बारे में आईडीबीआई बैंक के मुख्य कार्याधिकारी राकेश शर्मा ने कहा कि कर्ज लेने वाले जिन लोगों ने यह सुविधा ली है, उससे कर्जदाताओं के बही खाते के मानक के रूप में नहीं देखा जा सकता। शर्मा ने कहा, ‘किस्त टालने वालों की संख्या के आधार पर हम बैंकों की बैलेंस शीट की गुणवत्ता का परीक्षण नहीं कर सकते। हमें यह देखना होगा कि कितनी प्रतिभूतियां वापस आईं और हमें कर्ज लेने वालों के क्रेडिट स्कोर की जांच करनी होगी। स्थिति में निरंतर बदलाव हो रहा है, क्योंकि लोग किस्त टालने से लगातार निकल रहे हैं।’ शर्मा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि बैंक से उधारी लेने वाले 4 से 5 प्रतिशत कर्ज का पुनर्गठन करेंगे, जिसके लिए रिजर्व बैंक ने सुविधा दी है।
बचत की दर कम होने को लेकर चेतावनी देते हुए पीएनबी के राव ने कहा, ‘अगर बचत की दर 3 प्रतिशत से नीचे जाती है तो यह चेतावनी है। बैंक इस तरह की पेशकश संपत्ति देनदारी में अंतर की वजह से कर रहे हैं।’
यूनियन बैंक के राय ने कम बचत दर और महंगाई को लेकर कहा कि यह अस्थायी चरण होगा। उन्होंने रिजर्व बैंक से मांग की कि पूंजी बफर मानकों में ढील देने की जरूरत है, जिससे वैश्विक रूप से स्वीकार्य बेसल-3 ढांचे के मानकों को पूरा किया जा सके और बैंकों को संकट के दौर में मदद मिल सके।
