facebookmetapixel
2025 में बदला भारत का रिटेल गेम: 10 मिनट से 30 मिनट डिलीवरी तक, क्विक कॉमर्स बना नया नॉर्म2025 का कॉर्पोरेट ड्रामा: इंडिगो से जेएसडब्ल्यू तक संचालन की कसौटीजर्मनी बना भारतीय यात्रियों का बीमा हब, $2.5 लाख का कवर हुआ नया मानकRamesh Damani की एंट्री से इस शेयर ने भरी उड़ान, 2 दिन में 10% उछला; 3 साल में 330% रिटर्नGold silver price today: चांदी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड, भाव 2.50 लाख पार; जानें सोने के रेटStocks to Buy: चार्ट पैटर्न में दिखी मजबूती, ये 3 शेयर दिला सकते हैं 15% तक रिटर्न; जानिए एनालिस्ट की रायStock Market Update: सपाट शुरुआत के बाद बाजार में गिरावट, सेंसेक्स 200 अंक टूटा; निफ्टी 26 हजार के नीचे फिसलाAI इम्पैक्ट समिट में भारत के नवाचार से होंगे दुनिया रूबरूRolls-Royce भारत में करेगा बड़ा निवेश, नई पीढ़ी के एरो इंजन पर फोकससऊदी अरब के ताइफ एयरपोर्ट प्रोजेक्ट की रेस में जीएमआर और टेमासेक आगे

कंक्रीट के जंगलों में उखड़ते पेड़

Last Updated- December 11, 2022 | 6:25 PM IST

पिछले सप्ताह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से अचानक आंधी आ जाने से सैकड़ों पेड़ उखड़ गए थे। भारी बारिश या तूफान के समय देश के शहरों में यह एक आम नजारा होता है। हालांकि पेड़ों के इस तरह से गिरने में प्राकृतिक कारणों के अलावा मानव त्रुटियां भी जिम्मेदार हो सकती हैं।
पर्यावरणविद् प्रदीप कृष्ण, जिन्होंने ट्रीज ऑफ दिल्ली : ए फील्ड गाइड ऐंड जंगल ट्रीज ऑफ इंडिया : ए फील्ड गाइड फॉर ट्री स्पॉटर्स लिखी है, के अनुसार जब कोई भयंकर तूफान आता है, तो यह कमजोर, ​घिरे हुए या पर्याप्त स्थान की कमी वाले पेड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है।
वनों की छंटाई के लिए प्रकृति की श​क्ति काफी होती है, जिसमें शहरवासियों की सतर्क नजरों से दूर पेड़ों की कटाई और मानव कुप्रबंधन भी शामिल रहता है। फिर भी, शहरी क्षेत्रों में वृ​क्षों की क्षति सीमित करने के लिए उनकी प्रकृति को समझना महत्त्वपूर्ण है।
कृष्ण कहते हैं कि तूफान द्वारा पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले वाले कारकों में से एक यह है कि हवा का प्रतिरोध किस हद तक होता है। वह कहते हैं कि अगर वृक्ष का छत्र (पत्तों का घेराव) खास तौर पर मोटा हो और जैसा कि नीम का कोई ऐसा पेड़ जिसका तना काफी कम हो, तो यह हवा के लिए ज्यादा प्रतिरोध प्रदान करता है। इसे हवा को थामने वाले किसी पाल की तरह समझें। जिन पेड़ों के पत्तों का घेरा घना होता है, उनमें ज्यादा छिन्न-​भिन्न घेराव वाले पेड़ों की तुलना में हवा में उखड़ने की आशंका ज्यादा रहती है। इसलिए यह ऐसी बात भी है, जिस पर शहर के प्रबंधक पौधरोपण करते समय ध्यान देते हैं। कृष्ण बताते हैं कि एक दशक पहले दिल्ली में विशेष रूप से एक भयंकर तूफान के दौरान उन्होंने पाया कि अन्य पेड़ों के मुकाबले नीम के पेड़ काफी ज्यादा प्रभावित हुए थे। उन्होंने यह भी देखा कि नीम के पेड़ों ने अपने तने का आंतरिक केंद्रीय भाग खो दिया था, जिससे वे खाली सिलिंडर की तरह हो गए थे।
वह बताते हैं कि कुछ पेड़ों का उनकी मूल जड़ (मुख्य जड़ जो नीचे की ओर बढ़ती है) के आधार पर और अन्य पेड़ों को उनकी सतह की जड़ों (जैसे अंजीर के पेड़ जो केवल सतह का आश्रय लेते हैं) के आधार पर रखा जाता है। इसके अलावा किसी पेड़ का फैलाव मोटे तौर पर उसके छत्र के फैलाव के बराबर होता है। नीम मजबूत जड़ वाला पेड़ होता है। उन्होंने पाया है कि गिरे हुए पेड़ों की कोई मुख्य जड़ नहीं बची थी।
कृष्ण कहते हैं ‘मेरा अनुमान है कि ये पेड़ ऐसे समय में उगे थे, जब दिल्ली में जल स्तर अधिक था। जब पानी का स्तर एक निश्चित स्तर से नीचे चला गया, तो उनकी मुख्य जड़ें भी सिकुड़ गईं और अब पानी तक नहीं पहुंच पा रही थीं। इससे तने का आंतरिक केंद्रीय भाग सड़ गया होगा।’ कृष्ण कहते हैं कि इसलिए दिल्ली जैसे शहरों के लिए यह बात और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है कि ऐसे पेड़ उगाए जाएं, जो बिना अतिरिक्त पानी के प्राकृतिक रूप से जीवित रहें।
इसे दूसरे तरीके से कहें, तो ऐसे पेड़ लगाना महत्त्वपूर्ण है, जो स्थानीय होते हैं। कृष्ण बताते हैं कि यह जरूरी नहीं है कि स्थानीय का मतलब उन पेड़ों से हो, जो भारतीय मूल के हों, ब​ल्कि इसका मतलब ऐसे पेड़ों से है, जो एक विशेष प्रकार की मिट्टी के अनुकूल हो चुके हैं।
पेड़ों की किस्मत का फैसला करने वाला एक अन्य कारक होता है भंगुरता। सजावटी गुलमोहर सहित कुछ पेड़ अपनी भंगुरता के लिए बदनाम हैं और उनमें लचक का अभाव होता है। वे तूफान में हताहत होने वाले सबसे संभावित उम्मीदवारों में शामिल होते हैं। शहरों को सलाह दी जाती है कि वे किसी प्रजाति का चयन करने से पहले तने की लचक का आकलन कर लें। पिछले सप्ताह दिल्ली में आई आंधी के बाद मीडिया की खबरों में अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि गिरे हुए पेड़ों के आसपास कंक्रीट ने उन्हें खतरनाक रूप से कमजोर कर दिया था। विशेषज्ञों ने किसी पेड़ के एक मीटर के दायरे में किसी भी कंक्रीट के खिलाफ वर्ष 2013 के राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के आदेश की ओर भी इशारा किया है।

First Published - June 9, 2022 | 12:43 AM IST

संबंधित पोस्ट