रजनीश कुमार और आदित्य पुरी देश के दो बड़े बैंकों के प्रमुख हैं। पुरी अक्टूबर में एचडीएफसी बैंक के प्रबंध निदेशक पद से सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं, वहीं भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार का कार्यकाल (अगर सेवा विस्तार नहीं मिला तो) नवंबर में खत्म हो रहा है।
बैंकिंग क्षेत्र के इन दोनों रत्नों ने गुरुवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड अनलॉक बीएफएसआई 2.0 वेबिनार में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में अपने करियर, विरासत, प्रेरणा और अत्यधिक प्रतिस्पद्र्घी क्षेत्र में सफलता के गुर के बारे में चर्चा की।
पुरी के 26 साल के कार्यकाल में एचडीएफसी बैंक बाजार पूंजीकरण के लिहाज से देश का सबसे बड़ा बैंक बन गया। इस पर पुरी ने कहा, ‘यह शायद झूठ होगा अगर मैं कहूं कि यह बहुत बड़ा हो गया है।’ उन्होंने कहा, ‘लक्ष्य वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ बैंकों में से एक बनाना था और आज यह जहां हैं, उससे मैं संतुष्ट हूं।’
पुरी ने जेपी मॉर्गन के मुख्य कार्याधिकारी जैमी डिमॉन को अपना प्रेरणास्रोत बताया। उन्होंने कहाकि उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती बैंक का विस्तार करना था। पुरी ने कहा, ‘जब आप इसकी आवश्यक चुनौतियों को नहीं समझेंगे तब आप लडख़ड़ाएंगे।’
एसबीआई के कुमार ने कहा कि मैंने जिस चुनौती भरे समय का सामना किया है, किया अन्य चेयरमैन को शायद इससे नहीं जूझना पड़ा है। उन्होंने कहा, ‘विमुद्रीकरण के दौरान मैं एसबीआई का प्रबंध निदेशक था। चेयरमैन के तौर पर सहायक बैंकों के विलय का गवाह बना। परिसपंत्ति की गुणवत्ता की समीक्षा और बैलेंस शीट पर दबाव से भी गुजरना पड़ा। इसके साथ ही दिवालिया संहिता और अब महामारी का सामना करना पड़ रहा है।’ कुमार ने कहा कि एसबीआई में प्रोवेशनरी अफसर के तौर पर ज्वॉइन करने वाला कोई भी कर्मचारी बैंक का चेयरमैन बनने का ख्वाब देख सकता है लेकिन यह सफर थोड़ा लंबा है।
एसबीआई के रजनीश कुमार ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि जो मेरे पास है, वह दूसरों के पास नहीं है। वे सभी समान रूप से सक्षम थे। शायद कुछ हद तक इसे नियति कह सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि अधिकांश अधिकारियों की तरह उन्हें भी एक बार पदोन्नति से वंचित रहना पड़ा था। जब पुरी से यह पूछा गया कि अगर वे बीते समय में लौट सकते तो क्या उन चीजों को भी ठीक उसी तरह से करते, तो उन्होंने सकारात्मक जवाब दिया। हालांकि कुमार ने कहा कि अगर बैंकर नहीं होता तो शायद शिक्षक होता।
पुरी ने लोगों और अपने विविध परिप्रेक्ष्य से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया कि जब मैंने अपनी दादी को यह बताया कि कैसे मैं 1990 के दशक की शुरुआत में सिटीबैंक में मलेशिया के परिचालन का प्रमुख बऽा, तो इस पर उन्होंने (दादी ने) हिंदी चुटकी ली, ‘जंगल में मोर नाचा, किसने देखा?’ ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने सिटीबैंक के बारे में नहीं सुना था।
कुमार ने अपने सार्वजनिक क्षेत्र के वेतन और निजी क्षेत्र के बैंकर पुरी ने प्रेरणा के तौर पर पैसे के महत्त्व के बारे में समान विचार साझा किए। कुमार ने कहा, ‘प्रेरणा के तौर पर पैसा वैसे भी अपना मूल्य खो देता है। पुरी भी इससे सहमत होंगे कि पारिश्रमिक ही नहीं है तो उन्हें आगे बढऩे के लिए प्रेरित करता है। मेरे लिए स्टेट बैंक ही सबकुछ है। इसलिए यह मेरी वफादारी है।’
पुरी ने कहा, ‘अगर आप किसी काम में पैसे को दिमाग में रखकर हाथ लगाते हैं तो मैं दावे के साथ कहता हूं कि आपको इसमें सफलता हाथ नहीं लगेगी। पैसे को केवल कारोबार का हिस्सा ही समझना चाहिए और एक सीमा के बाद इसकी अहमियत महज आंकड़ों से अधिक नहीं रहती। दरअसल किसी काम को लेकर आप में कितना जज्बा है सफल होने के लिए यह बात अधिक मायने रखती है। युवाओं को समझना चाहिए कि कोई काम करने का मुख्य मकसद रकम कमाना नहीं हो सकता।’
अपनी सेवानिवृत्ति के बारे में पुरी ने मजाकिया लहजे में कहा कि ‘पिक्चर अभी बाकी है’। उन्होंने कहा कि वह स्वास्थ्य, शिक्षा और डिजिटल तकनीक के साथ जुडऩा चाहते हैं। पुरी ने कहा,’लोग देश में डिजिटल स्तर पर होने वाले बदलाव की अहमियत ठीक ढंग से नहीं समझ पा रहे हैं। वे तेजी से उभर रहे मध्यम वर्ग की ताकत को भी नजरअंदाज कर रहे हैं। वे कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों की क्षमताओं का भी सही आकलन नहीं कर रहे हैं।’
कुमार ने कहा कि जून से अर्थव्यवस्था में तेजी आई है। हालांकि उन्होंने चेताया कि विमानन, पर्यटन, आतिथ्य एवं मनोरंजन सेवाओं पर दबाव अभी बना रहेगा। कुमार ने कहा कि सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों की मदद करने के लिए सरकार ने बैंकों पर किसी तरह का दबाव नहीं डाला था।