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व्यापक अनुभव और वैज्ञानिक सोच का नीतियों पर दिखेगा असर

Last Updated- December 11, 2022 | 7:01 PM IST

शंकर घोष 71 वर्षीय सूद के बारे में कहते हैं, ‘वह अपने खाली समय में क्या करते हैं? मुझे नहीं लगता कि उनके पास कोई खाली समय है!’
विज्ञान नीति से संबंधित सभी मामलों पर सरकार को सुझाव देने के लिए अजय कुमार सूद को प्रधानमंत्री का मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) नियुक्त किया गया है। घोष, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ  फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) में पढ़ाते हैं और सूद उनके पीएचडी के सुपरवाइजर थे। गुरु और शिष्य का रिश्ता होने के अलावा दोनों के नाम एक संयुक्त अमेरिकी पेटेंट भी है जो ‘गैस प्रवाह के वेग के माप की विधि, ठोस सामग्री से गैस प्रवाह का इस्तेमाल कर ऊर्जा रूपांतरण की विधि और उसके उपकरण’ से संबंधित है।
निश्चित रूप से यह सब इतना सरल नहीं है। लेकिन इससे हमें नए मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार की खासियत का अंदाजा मिलता है। घोष का कहना है कि यह एक वैज्ञानिक के लिए आवश्यक भी है जिसे सार्वजनिक नीति लागू करने का काम सौंपा गया है। वैज्ञानिकों में आमतौर पर अपने-अपने दायरे से बंधे रहने की प्रवृत्ति होती है जैसे कि ‘मैं अपना काम जानता हूं और मैं अपने क्षेत्र का एक बड़ा विशेषज्ञ हूं।’ वह एक ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने विभिन्न विषयों पर काम किया है और जिन्हें कई क्षेत्रों की व्यापक और गहरी समझ है।
सूद ने अपने करियर की शुरुआत रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के साथ की जहां उन्होंने सेमी कंडक्टर(अर्धचालक) के क्षेत्र में अहम योगदान दिया। लेकिन इसके साथ ही वह कोलाइड्स पर काम कर रहे थे जो अनुसंधान का एक बहुत ही अलग क्षेत्र है। फिर वह सैद्धांतिक काम जैव-भौतिकी, सांख्यिकीय यांत्रिकी, भौतिक विज्ञान की समस्याओं पर काम करने लगे। घोष कहते हैं, ‘आपको विभिन्न क्षेत्रों के व्यापक ज्ञान और समझ वाले कई लोग नहीं मिलेंगे जो एक ऐसे व्यक्ति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है जो नीति क्षेत्र में काम कर रहा है।’
यह अधिकांश मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के बारे में सच भी है मसलन सूद के पूर्ववर्ती, के विजय राघवन एक जीवविज्ञानी हैं जिन्होंने सरकार को कोविड-19 महामारी से निटपने में मदद की। साथ ही उन्होंने टीका और दवाएं तैयार करने के साथ-साथ महामारी प्रबंधन से जुड़े अग्रणी कार्यबल का नेतृत्व कर अहम भूमिका निभाई जिसके लिए उन्हें मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार बनाया गया था। हालांकि उनका कार्यकाल 2021 में खत्म हो गया।
आमतौर पर पीएसए का कार्यालय कई मंत्रालयों के साथ समन्वय करता है और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी नीतियों और हस्तक्षेपों में सरकार को सलाह देता है जो रणनीतिक रूप से सामाजिक-आर्थिक महत्त्व के हैं। यह संस्थानों, शिक्षाविदों और उद्योग को भी सलाह देता है।
अपनी नई जिम्मेदारी के तहत सूद को अपने पूर्ववर्ती द्वारा शुरू किए गए एक काम को पूरा करना होगा मसलन, एक नई विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (एसटीआईपी) पर सरकार की मुहर लगवाना जिस पर 2020 में ही काम शुरू हो गया था। यह मसौदा सार्वजनिक स्तर पर है।
विजय राघवन सरकार की मुख्य राजनीतिक प्राथमिकताओं से जुड़ गए और नई नीति के उद्देश्यों में से एक ‘भारत के लिए आर्थिक विकास, सामाजिक समावेशन और पर्यावरणीय स्थिरता को शामिल करने के लिए लगातार विकास मार्ग पर आगे बढऩा है ताकि आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल किया जा सके।’ नीति में कहा गया है कि बाधाकारी और प्रभावशाली प्रौद्योगिकियों के उभार से नई चुनौतियों और साथ-साथ अधिक अवसर पैदा होते हैं।
इस अवधि के दौरान पहली बार नैशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) का गठन हुआ जिसके लिए केंद्रीय बजट 2021-22 में 50,000 करोड़ रुपये भी आवंटित किए गए जिसे पांच वर्षों में खर्च किया जाएगा। ऐसे में अब यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान और विकास के लिए मजबूत समर्थन है। अब मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार का यह काम है कि वह फंड के लिए एक दिशा निर्धारित करें।
भारत के सकल घरेलू खर्च में अनुसंधान एवं विकास पर होने वाला खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) (2018 में) का 0.6 प्रतिशत रहा जो बेहद कम है जबकि अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अनुसंधान एवं विकास पर होने वाले सकल घरेलू खर्च और जीडीपी का अनुपात 1.5 से 3 प्रतिशत तक है।
ऐसा इसलिए हो सकता है कि भारत में, अनुसंधान और विकास में निजी क्षेत्र का निवेश 40 प्रतिशत से कम है वहीं तकनीकी रूप से आगे रहने वाले देशों में निजी क्षेत्र अनुसंधान पर सकल घरेलू खर्च में लगभग 70 प्रतिशत का योगदान देता है। एसटीआईपी ने इस संबंध में कुछ प्रमुख सिफारिशें दी हैं।
सूद का काम इन सभी को एकीकृत करने में मदद करना है।
घोष का कहना है कि उनके शिक्षक अविश्वसनीय रूप से कड़ी मेहनत करते है और बेहद धैर्य वाले भी हैं। वह कहते हैं, ‘वह बिल्कुल भी निरंकुश प्रवृत्ति वाले नहीं हैं और अगर आप उनके विचारों के विपरीत कोई तर्कपूर्ण बिंदु रखते हैं तब वह बुरा नहीं मानते हैं।’ यह शायद उनकी शिक्षा और उनके द्वारा अर्जित सम्मानों की वजह से है। उन्हें 1972 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में एमएससी भौतिकी के एक युवा छात्र के रूप में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए दो बार चुना गया था। इसके बाद वह बेंगलूरु के मशहूर भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में प्रोफेसर बन गए।
वह जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर सॉलिड स्टेट रिसर्च से पोस्ट-डॉक्टरेट पूरा करने के तुरंत बाद 1988 में आईआईएससी से जुड़ गए। उन्हें 2013 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
अपनी नियुक्ति के बाद विभिन्न साक्षात्कारों में सूद ने कहा है कि वह चाहते हैं कि भारत दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हो। देश को इस स्तर पर आने के लिए कुछ दूरी तय करनी होगी क्योंकि टाइम्स हायर एजुकेशन इंडेक्स में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय को दुनिया के शीर्ष 300 विश्वविद्यालयों में स्थान नहीं दिया गया है और केवल दो संस्थान ही शीर्ष 400 में दिखाई देते हैं।
प्रशिक्षित वैज्ञानिक शोधकर्ताओं की कुल संख्या काफी कम है। मसलन भारत में प्रति 100,000 पर 15 वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं जबकि चीन में प्रति 100,000 पर 111 और इजरायल में प्रति 100,000 पर वैज्ञानिकों शोधकर्ताओं की संख्या 825 है। लेकिन सूद सितारों तक पहुंचने का रास्ता तैयार करने की उम्मीद करते हैं और वह इस रास्ते को तैयार करने में लोकतांत्रिक होंगे।

First Published - May 16, 2022 | 12:20 AM IST

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