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स्वास्थ्य ढांचे की मजबूती होगा लक्ष्य

Last Updated- December 11, 2022 | 10:44 PM IST

बीते साल में भारत के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की परीक्षा हुई है। इसमें न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की कमी बल्कि उन्हें पहुंचाने की प्रणाली की कमजोरी भी उजागर हुई है। मई और जून 2021 में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से उजागर हुआ कि अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की बढ़ती तादाद और यहां तक कि गंभीर स्थिति वाले मरीजों को बुनियादी ऑक्सीजन मुहैया कराने में भी देश की तैयारी कितनी कमजोर थी।
जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अब भारत की तैयारी काफी बेहतर है। उनके मुताबिक 2022 के पहले छह महीनों में मास्क पहनने और शारीरिक दूरी बनाए रखने पर जोर रहेगा। उन्होंने कहा कि अगले साल बच्चों के टीकाकरण और पूर्ण टीकाकरण वाले लोगों को बूस्टर खुराक देने पर जोर रहने के आसार हैं।
पब्ल्कि हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, ‘हमें तेज प्रसार से बचने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे। अब लोग मानते हैं कि स्वास्थ्य में निवेश महत्त्वपूर्ण है लेकिन इस दिशा में और प्रयास किए जाने चाहिए।’ इस महामारी का दुनिया भर में कहर जारी है। ओमीक्रोन स्वरूप का तेजी से प्रसार नई चिंता है। ऐसे में अब टीका विनिर्माता कोविड-19 के उपचारों के अलावा इन स्वरूपों पर कारगर टीके विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। महामारी को लेकर अनिश्चितता के बावजूद स्वास्थ्य को लेकर चर्चा बदल रही है।
विश्व की अग्रणी दवा कंपनियों में से एक एसीजी के प्रबंध निदेशक करण सिंह ने कहा, ‘महामारी ने दुनिया भर में आपूर्ति शृंखला की अहम कमजोरियां उजागर की हैं और दवा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों को अपनी रणनीति बदलने को मजबूर किया है।’
उन्होंने कहा कि भारत में 2022 और उससे आगे स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के नए मॉडल उभरेंगे, जो डिजिटलीकरण के लाभ लेकर एक लचीली मूल्य शृंखला पर बनेंगे। उद्योग के बहुत से लोगों का अनुमान है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में अहम निवेश आएगा क्योंकि बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उपभोक्ता मांग बढ़ी है। स्वास्थ्य क्षेत्र की एक शीर्ष संस्था नैटहेल्थ-हेल्थकेयर फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हर्ष महाजन ने कहा, ‘स्वास्थ्य पर सरकार का जोर बना रहेगा क्योंकि इससे आर्थिक सुधार और हमारी सामूहिक सेहत को मदद मिलेगी।’
हालांकि सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात से चिंतित हैं कि स्वास्थ्य, खास तौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य पर निवेश आर्थिक वृद्धि और अगले साल अहम राज्यों मेंं चुनावों के मद्देनजर सरकारों संसाधनों के खर्च पर निर्भर करती है। इसलिए सरकार जिला अस्पताल, प्रयोगशाला बनाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से 1.5 अरब डॉलर का ऋण लेकर स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है। पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने कहा, ‘ये ऋण प्रदर्शन आधारित हैं, जिसका मतलब है कि सरकार को यह धनराशि हासिल करने के लिए पहले खर्च करना होगा और अन्य गैर-राजकोषीय शर्तों का पालन करना होगा।’
काफी कुछ अर्थव्यवस्था में तरलता पर निर्भर करता है। राव ने कहा कि इससे स्वास्थ्य क्षेत्र में निजीकरण नहीं बढऩा चाहिए। उन्होंने कहा, ‘अगर प्रभावी सामाजिक सुरक्षा नहीं होगी तो लोगों की गरीबी बढ़ेगी क्योंकि स्वास्थ्य की लागत बढ़ेगी  और उन्हें उपभोग में कटौती करनी होगी।’
हाल के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमानों के मुताबिक भारत में स्वास्थ्य पर जेब से खर्च 2013-14 में 2,336 रुपये से घटकर 2017-18 में 2,097 रुपये पर आ गया। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह आंकड़ा महामारी के वर्ष में काफी बढ़ा होगा और महामारी खत्म होने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं, इसलिए आगे भी बढ़ोतरी जारी रह सकती है।
सरकार ने विनाशकारी दूसरी लहर के बाद देश में ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और आईसीयू बेड की क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दिया है। लेकिन 2022 में गृह उपचार और प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली पर और ध्यान देने की जरूरत हो सकती है, खास तौर पर अद्र्ध शहरी और ग्रामीण इलाकों में। रेड्डी ने कहा, ‘निगरानी प्रणाली और आपात परिवहन प्रणाली को मजबूत करना होगा। जिला अस्पतालों को इन चीजों पर कदम उठाने चाहिए और तेजी से काम करना चाहिए।’ अगर टीकाकरण के लक्ष्य हासिल हो जाते हैं और ओमीक्रोन का खतरा टल जाता है तो स्वास्थ्य क्षेत्र अन्य स्वास्थ्य समस्याओं पर ध्यान देने की उम्मीद कर रहा है। उदाहरण के लिए तेपदिक, जिस पर महामारी की वजह से कम ध्यान दिया जा रहा है।
मणिपाल हॉस्पिटल्स के एमडी और सीईओ दिलीप जोस ने कहा, ‘मुझे उम्मीद करुंगा कि बीमारियों की रोकथाम और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने को लेकर बढ़ी जागरूकता, स्वच्छता एवं शारीरिक दूरी और स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने या पहुंचाने में डिजिटल तकनीक को अपनाने में दिलचस्पी आगामी वर्षों में भी बनी रहेगी।’ हाल में उद्योग के रुझानों में भी ऐसे ही रुझान सामने आए हैं। उदाहरण के लिए भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र पर पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से स्वास्थ्य खंड में डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल बढ़ा है क्योंकि कंपनियां चिकित्सा सेवा देने के वैकल्पिक तरीके और बीमारी प्रबंधन का बेहतर ज्ञान खोज रही हैं।
फोर्टिस हेल्थकेयर के एमडी और सीईओ आशुतोष रघुवंशी ने कहा, ‘डिजिटल स्वास्थ्य का भारत में उज्ज्वल भविष्य है और हमारा अनुमान है कि आगामी तीन से पांच साल मेें डिजिटल तकनीक आधारित सेवाओं में आशातीत बढ़ोतरी होगी। हमें एआई आधरित ज्यादा स्टार्टअप नजर आएंगी, जिनसे स्वास्थ्य  सेवाएं हासिल करना ज्यादा आसान हो जाएगा।’

First Published - December 20, 2021 | 11:18 PM IST

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