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नए सहकारिता मंत्रालय को लेकर उठते सवाल

Last Updated- December 12, 2022 | 2:48 AM IST

नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में हुए ताजा फेरबदल में कृषि मंत्रालय से अलग कर एक नया सहकारिता मंत्रालय बनाया गया है। इस नए सहकारिता मंत्रालय के प्रमुख गृहमंत्री होंगे जिसकी वजह से इस मंत्रालय को लेकर उत्सुकता बढ़ी है। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, केरल और ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में (राज्य और केंद्र की ओर से खरीदारी के लिए) सहकारी समितियों की वित्तीय और राजनीतिक अहमियत को देखते हुए इस नए मंत्रालय के गठन को अलग-अलग लोगों के द्वारा अलग तरीके से विश्लेषण किया जा रहा है।
देश भर में लगभग 8 लाख पंजीकृत सहकारी समितियां हैं जिनमें से अधिकांश ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में मौजूद हैं। लगभग 40 करोड़ लोग सीधे तौर पर सहकारी समितियों से प्रभावित होते हैं। ऐसे में इन पर किसी भी तरह के नियंत्रण से राजनीतिक संरक्षण के लिए एक बहुत बड़ा मौका तैयार होता है और यह राज्य या केंद्र स्तर पर मुमकिन है। अब सवाल यह है कि राज्य या केंद्र, सहकारी समितियों पर नियंत्रण कैसे करता है और इसकी फंडिंग के क्या स्रोत हैं? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब का हम ले रहे हैं जायजा:

ऐसे कौन से तरीके हैं जिनके माध्यम से सहकारी समितियां फंड जुटा सकती हैं?
विशेषज्ञों का कहना है कि एक नई सहकारी समिति की फंङ्क्षडग साझी पूंजी के रूप में इसके उन सदस्यों के जरिये होती है जो किसी
अच्छे मकसद से सहकारी समिति बनाने के लिए जुड़े हैं।

क्या कोई राज्य या केंद्र गठन के स्तर पर सहकारी समिति का हिस्सा बन सकता है?
हां। राज्य और यहां तक कि केंद्र भी एक सहकारी समिति के सदस्य बन सकता है और इसे तैयार किए जाने के दौरान ही साझी पूंजी के रूप में फंड का योगदान कर सकते हैं। इसके बाद एक बार कारोबार शुरू होने के बाद सहकारी समिति, बैंक फाइनैंसिंग के लिए पात्र हो सकती है।

क्या पूंजी पाने के लिए सहकारी समिति के पास यही एकमात्र तरीका है?
नहीं। कर्ज के कुछ और भी विकल्प हैं मसलन राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) जैसे विशेष वित्तीय निकायों द्वारा मियादी ऋ ण के रूप में कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने या स्थायी बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए दिया जाता है। स्थायी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए एनसीडीसी द्वारा दिए गए कर्ज और मियादी कर्ज में केंद्र सरकार की योजना के तहत अनुदान का एक हिस्सा भी शामिल है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ज्यादातर सहकारी समितियां मियादी ऋ ण का विकल्प चुनती हैं क्योंकि इसमें अनुदान शामिल होता है जो 15 से 30 फीसदी के दायरे में होता है।

एनसीडीसी क्या है?
एनसीडीसी कृषि मंत्रालय के अंतर्गत एक विशेष सांविधिक निगम है जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। देश के लगभग सभी हिस्सों में इसके क्षेत्रीय कार्यालय और शाखाएं हैं।

क्या सहकारी समितियों की फंडिंग का कोई और जरिया है?
सहकारी समितियों के लिए फंडिंग का एक अन्य स्रोत तब तैयार होता है जब केंद्र या राज्य सरकारें, खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन या ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं से उसे जोड़ती हैं। सहकारी संस्थाओं को इन विशेष कार्यक्रमों में अनुदान मिलता है। मिसाल के तौर पर सहकारी समितियों को किसी अन्य निकाय की तरह ही भंडारण बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए कृषि बुनियादी ढांचा कोष (एआईएफ) के तहत लाभ मिल सकता है। इस तरह सरकार, सहकारी समितियों को अप्रत्यक्ष समर्थन दे सकती है।

क्या राज्य सरकारें सहकारी समितियों द्वारा बैंकों या एनसीडीसी से लिए गए किसी भी ऋ ण के लिए गारंटर बन सकती हैं?
हां, राज्य सरकारें और केंद्र भी बैंकों या एनसीडीसी जैसे विशेष संस्थानों से सहकारी समिति द्वारा लिए गए ऋ णों के लिए गारंटर हो सकती है। छत्तीसगढ़ में राज्य की मुख्य खरीद एजेंसी मार्कफेड, किसानों से खरीदारी करने के लिए एनसीडीसी और अन्य वित्तीय संस्थानों से सालाना लगभग 10,000 करोड़ रुपये का कर्ज लेती है। राज्य सरकार इन ऋणों की गारंटी लेने के लिए तैयार होती है क्योंकि खरीद को प्राथमिकता श्रेणी में रखा गया है।

नया मंत्रालय बनाने और नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे सबसे ताकतवर शख्स को इसकी जिम्मेदारी सौंपने के कदम के पीछे क्या राजनीतिक मकसद है?
कई विश्लेषकों और आलोचकों का मानना है कि महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और केरल जैसे कुछ राज्यों में सहकारी समितियों की अपार राजनीतिक ताकत और पैठ को देखते हुए ही केंद्रीय गृह मंत्री को इस मंत्रालय को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी दी गई है। अब से मंत्रालयों का अपनी-अपनी सहकारी समितियों पर प्रशासनिक नियंत्रण होगा मसलन कृषि मंत्रालय का नेफेड और पशुपालन एवं मत्स्य मंत्रालय का फि शकॉफ फेड पर। हालांकि सहकारी समितियों के संबंध में व्यापक नीतिगत फैसले इस नवगठित मंत्रालय द्वारा ही लिए जाएंगे। ऐसे में यह आशंका है कि राज्यों के साथ सीधे तौर पर टकराव की स्थिति बन सकती है क्योंकि सहकारी समितियों के कामकाज में राज्यों की भी अहम भूमिका है।

सहकारी समितियों से जुड़ा 97वां संशोधन क्या है?
देश में सहकारी समितियों को नियंत्रित करने वाले कानूनों से जुड़े मुद्दों के प्रभावी प्रबंधन और एकरूपता के लिए 97 वां संविधान संशोधन दिसंबर 2011 में पारित किया गया था और यह पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के शासनकाल के दौरान 15 फरवरी, 2012 से लागू हुआ था। इसका मकसद सहकारी समितियों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने और राज्य सरकार द्वारा सहकारी बोर्डों के अधिकार को अनिश्चितकाल तक अपने हाथों में लेने पर रोक लगाने जैसे मुद्दों को सुनिश्चित करना था।
पिछले हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात की जांच के लिए सुनवाई शुरू की है कि इस संशोधन ने राज्य को सहकारी समितियों के प्रबंधन के लिए कानून बनाने के उसके विशेष अधिकार से वंचित किया है या नहीं।

First Published - July 12, 2021 | 11:53 PM IST

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