इस महीने के शुरू में फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने यकृत (लिवर) की गंभीर बीमारी से जूझ रहे फिलीपींस के 12 बच्चों को एक चार्टर्ड विमान से मुंबई पहुंचाने में मदद की थी। इन बच्चों को तत्काल यकृत प्रत्यारोपण की जरूरत थी। इनमें करीब पांच बच्चे मैक्स हेल्थकेयर में भर्ती कराए गए, जबकि सात का अपोलो हॉस्पिटल में इलाज शुरू हुआ।
सूद जैसे लोगों के इन कदमों से जरूरतमंद लोगों के साथ ही देश के स्वास्थ्य क्षेत्र का उत्साह भी बढ़ा है। इस क्षेत्र को लगता है कि अक्टूबर-नवंबर से दूसरे देशों से इलाज कराने भारत आने वाले मरीजों की तादाद (मेडिकल टूरिज्म) बढऩी शुरू हो जाएगी। दूसरे देशों से मरीजों का आगमन आसान एवं सुरक्षित बनाने के लिए स्वास्थ्य उद्योग और सरकार दोनों ही एक मानक परिचालन दिशानिर्देश तैयार करने में जुट गए हैं। भारत कई देशों के साथ विमान सेवाएं शुरू करने के लिए समझौते कर रहा है और माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कई देशों के साथ हवाई यातायात बहाल हो जाएगा। कोविड-19 महामारी के बीच दुनिया के लगभग सभी देशों के बीच विमान सेवाएं थम गई हैं, ऐसे में यातायात बहाल करने के लिए विशेष द्विपक्षीय एवं त्रिपक्षीय समझौते अंतरराष्ट्रीय विमान सेवाएं शुरू करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल हैं।
पर्यटन उद्योग के अनुसार भारत वर्ष 2015 में पर्यटन के लिहाज से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश रहा था और उस समय इसका पर्यटन उद्योग करीब 3 अरब डॉलर आंका गया था। एक मोटे अनुमान के अनुसार 2020 के अंत तक यह उद्योग 9 अरब डॉलर (70,000 करोड़ रुपये) का आंकड़ा छू सकता है। हालांकि 2020 अब तक इस पर्यटन उद्योग के लिए अभिशाप साबित हुआ है और इस उद्योग से राजस्व भी न के बराबर रह गया है। रेटिंग एजेंसी इक्रा के विश्लेषक कपिल बग्गा ने कहा कि बड़े हॉस्पिटलों के कुल राजस्व में बाहर से इलाज कराने आने वाले मरीजों का योगदान 10-20 प्रतिशत रहेगा। बाहर से आने वाले मरीज ज्यादातर देश के बड़े अस्पतालों में ही आते हैं। बाहर से इलाज कराने आने वाले मरीजों के मामले में एवरेज रेवेन्यू पर ऑक्युपाइड बेड (एआरओपीओबी) अधिक होता है, क्योंकि वे अमूमन जटिल स्वास्थ्य समस्याओं के निदान के लिए आते हैं।
मणिपाल हॉस्पिटल्स के मुख्य कार्याधिकारी दिलीप होसे ने कहा कि बाहर से आने वाले मरीजों की दो श्रेणियां होती हैं। इनमें एक श्रेणी उन लोगों की होती है जिनके देश में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत खराब होती है और दूसरी श्रेणी में वे मरीज आते हैं, जो धनी देशों से तो होते हैं लेकिन उनके पास पर्याप्त स्वास्थ्य बीमा नहीं होता है। अमूमन पहली श्रेणी के मरीजों की तादाद अधिक होती है। होसे ने कहा,’द्विपक्षीय हवाई यातायात समझौते होने से अक्टूबर से दूसरे देशों से आने वाले मरीजों की संख्या बढऩी चाहिए। ओमान, केन्या, मलेशिया आदि देशों से मरीजों का आना शुरू हो सकता है।’ उन्होंने कहा कि ऐसे हवाई समझौते कारगर रहे तो इस वित्त वर्ष के अंत तक ऐसे मरीजों की संख्या कोविड-19 से पहले के स्तर का 70 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा।
मणिपाल हॉस्पिटल्स के राजस्व में बाहर से आने वाले मरीजों का योगदान करीब 10 प्रतिशत होता है। हालांकि कुछ प्रमुख अस्पतालों का मानना है कि कोविड-19 महामारी से बाहर से आने वाले मरीजों की तादाद पहले के मुकाबले और बढ़ सकती है। मैक्स हेल्थकेयर के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अभय सॉय का मानना है कि महामारी की वजह से दुनिया में आया आर्थिक संकट भारज जैसे देशों के स्वास्थ्य उद्योग के लिए वरदान साबित हो सकता है। उन्होंने कहा,’महामारी से दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। ऐसी हालत में लोग उन देशों में इलाज कराना चाहेंगे, जहां उन्हें किफायती दरों पर अच्छी सुविधाएं मिलेंगी। भारत उनके लिए एक ऐसा ही देश हो सकता है। अमेरिका में हृदय की बाईपास सर्जरी पर 1,20,000 लाख डॉलर, ब्रिटेन में 30,000 डॉलर और सिंगापुर में करीब 30,000 डॉलर खर्च होते हैं। इनके मुकाबले भारत के शीर्ष अस्पतालों में महज 4000-5000 डॉलर में यह इलाज हो जाता है।’
मैक्स हॉस्पिटल को 12-13 प्रतिशत राजस्व बाहर से आए मरीजों से मिलता है। फिक्की (स्वास्थ्य सेवा समिति) के चेयरमैन एवं मेडिका ग्रुप के चेयरमैन आलोक राय ने कहा कि ऐसा नहीं है कि संक्रमण के डर से बाहर से मरीज भारत नहीं आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल हवाई यातायात सुविधा प्रभावित होने से ऐसे मरीजों की संख्या में कमी आई है और एक बार हालात सामान्य होने के साथ ही चीजें पटरी पर आ जाएंगी। हालांकि अंतरराष्ट्रीय हवाई परिवहन संघ (आईएटीए) का अनुमान है कि 2024 तक हवाई यातायात पुन: कोविड-19 संक्रमण से पूर्व की स्थिति में आना संभव नहीं लग रहा है।
ऐसे में स्वास्थ्य उद्योग बाहर से मरीजों का आगमन सुरक्षित बनाने के लिए सरकार के साथ चर्चाएं शुरू कर दी हैं। मेडिकल टूरिज्म कंपनियों के हितों के लिए काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन मेडिकल ट्रैवल रिप्रजेंटेटिव एसोसिएशन (मेट्रा) के सह-संस्थापक अरुण सांगवान ने कहा हमें देशे में बाहर से आने वाले मरीजों के लिए सेवाएं अधिक चुस्त-दुरुस्त रखनी होंगी। सांगवान ने कहा कि हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि इससे भारत में इलाज का खर्च भी कोविड-19 के मुकाबले बढ़ जाएगा।
